Indian Rupee: डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोर हो रहा रुपया, भारत की इकोनॉमी पर क्या होगा असर?
Dollar vs Indian Rupee अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया लगातार कमजोर हो रहा है। इसकी बड़ी वजह इक्विटी मार्केट में FII यानी फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स की बिकवाली है। आरबीआई की भी रुपये के प्रदर्शन बारीक नजर है। आइए जानते हैं कि रुपये में गिरावट का भारत के आयात और निर्यात के साथ ओवरऑल इकोनॉमी पर क्या असर पड़ेगा।

राजीव कुमार, नई दिल्ली। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप के जीतने के बाद डॉलर के मुकाबले रुपए में हो रही लगातार गिरावट से इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल्स व नॉन-इलेक्ट्रिकल्स मशीनरी, फार्मा, केमिकल्स जैसे सेक्टर में मैन्युफैक्चरिंग लागत बढ़ने की आशंका गहरा रही है। मंगलवार को भी डालर के मुकाबले रुपए के मूल्य में गिरावट जारी रही और एक डालर का मूल्य 84.40 रुपए हो गया।
इन सेक्टर में निर्माण से जुड़े अधिकतर कच्चे माल का आयात करना पड़ता है। रुपए में कमजोरी से पहले की तुलना में अब आयात के लिए अधिक कीमत चुकानी होगी। दूसरी तरफ, पेट्रोलियम व खाद का आयात बिल बढ़ने से सरकार पर वित्तीय दबाव भी बढ़ेगा।
सरकार खाद का आयात करके उसे काफी कम दाम पर किसानों को देती है। वैसे ही गैस सिलेंडर से लेकर ऊर्जा के कई अन्य माध्यम पर भी सरकार सब्सिडी देती है और आयात बिल बढ़ने से सरकार पर बोझ बढ़ेगा। इससे निपटने के लिए सरकार अन्य मद के खर्च में कटौती कर सकती है।
इलेक्ट्रिॉनिक्स प्रोडक्ट का निर्यात अधिक है या आयात?
विशेषज्ञों के मुताबिक, इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन और निर्यात दोनों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, लेकिन अब भी इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम का आयात हमारे निर्यात से अधिक है। मोबाइल फोन समेत अन्य सभी इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम के कच्चे माल के लिए हम आयात पर निर्भर है।
चालू वित्त वर्ष 2024-25 के अप्रैल-सितंबर में भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात 15.6 अरब डॉलर तो इलेक्ट्रॉनिक्स आयात 48 अरब डॉलर का रहा। वैसे ही इलेक्ट्रिकल और नॉन-इलेक्ट्रिकल मशीनरी का इस अवधि में 26 अरब डॉलर का आयात किया गया। फार्मा, केमिकल्स से जुड़े कच्चे माल का भारी मात्रा में आयात किया जाता है।
क्या निर्यातकों को रुपया गिरने से फायदा होगा?
कच्चे माल की कीमत बढ़ने से उत्पादित वस्तुओं की कुल लागत बढ़ जाएगी और वह वस्तु घरेलू बाजार में महंगी हो सकती है क्योंकि निर्माता एक समय तक ही लागत में बढ़ोतरी को बर्दाश्त कर सकता है। मैन्युफैक्चरिंग लागत बढ़ने से विदेशी बाजार में भी इन वस्तुओं की प्रतिस्पर्धा क्षमता घटेगी और निर्यात प्रभावित होगा।
डॉलर के मुकाबले रुपए में गिरावट से निर्यातकों को फायदा होता है क्योंकि उन्हें डालर में भुगतान मिलता है। लेकिन फिलहाल देश के निर्यात का प्रदर्शन बेहतर नहीं चल रहा है। इसलिए निर्यातकों को भी रुपए में गिरावट का खास फायदा नहीं होने वाला है। चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) में निर्यात में मात्र एक प्रतिशत की बढ़ोतरी रही। इस अवधि में आयात में छह प्रतिशत से अधिक का इजाफा रहा।
विदेश में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता पर बढ़ेगा बोझ
रुपए में गिरावट से विदेश में पढ़ रहे बच्चों के माता-पिता पर आर्थिक बोझ बढ़ जाएगा। वे अपने बच्चों को मुख्य रूप से डालर में खर्च भेजते हैं और डालर में मजबूती से उन्हें पहले के मुकाबले अधिक भुगतान करना पड़ेगा। हालांकि उन परिवारों को रुपए में कमजोरी का फायदा मिलेगा जिन्हें विदेश से उनके रिश्तेदार पैसे भेजते हैं।
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