बोली में अदाणी को हरा दिया, लेकिन खुद की कंपनियों को लेकर फंसे अनिल अग्रवाल, क्या फिर टलेगा वेदांता का डीमर्जर?
मशहूर माइनिंग कारोबारी अनिल अग्रवाल के वेदांता समूह के डीमर्जर प्लान की डेडलाइन फिर से बढ़ सकती है। एक रिपोर्ट के अनुसार 5 सूचीबद्ध कंपनियों में विभाजित करने की महत्वाकांक्षी योजना को आगे चलकर कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। दरअसल सितंबर में डीमर्जर पर बड़ा फैसला होने की उम्मीद थी।

नई दिल्ली। मेटल किंग के नाम से मशहूर अरबपति कारोबारी अनिल अग्रवाल (Vedanta Chairman Anil Agrawal) ने हाल ही में जयप्रकाश एसोसिएट्स की नीलामी में ऊंची बोली लगाकर अदाणी ग्रुप को पटखनी दे दी थी। लेकिन, उनकी मूल कंपनी वेदांता लिमिटेड के डिमर्जर (Vedanta Demerger Plan) का प्लान फिर से टलता नजर आ रहा है। खबर है कि माइनिंग कारोबारी अनिल अग्रवाल के वेदांता समूह को 5 सूचीबद्ध कंपनियों में विभाजित करने की महत्वाकांक्षी योजना को आगे चलकर कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा, और एक बार फिर से इसकी टाइमलाइन बढ़ सकती है। दरअसल, सितंबर में डीमर्जर पर बड़ा फैसला होने की उम्मीद थी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अब इस पर संकट के बादल मंडराते नजर आ रहे हैं।
वेदांता लिमिटेड ने 2023 में पहली बार डीमर्जर की योजना को सामने रखा था। दरअसल, वेदांता को होल्डिंग कंपनी बनाकर इस समूह की एल्युमीनियम, ऑयल एवं एनर्जी, बिजली और इस्पात जैसे क्षेत्रों में अपने व्यवसायों को अलग से सूचीबद्ध संस्थाओं में विभाजित करनी प्लानिंग है। शुरुआत में, इस प्रोसेस के 2024 के अंत तक पूरा होने की उम्मीद थी, फिर इसे मार्च तक के लिए टाल दिया गया और इसके बाद सितंबर तक के लिए रिवाइज्ड किया गया।
2023 के बाद से तारीख पर तारीख
2023 में पहली बार सामने आई इस योजना में वेदांता को होल्डिंग कंपनी बनाकर एल्युमीनियम, तेल एवं गैस, बिजली और इस्पात जैसे स्वतंत्र, विशुद्ध रूप से सूचीबद्ध व्यवसायों में विभाजित करने की बात शामिल है। शुरुआत में, इस प्रक्रिया के 2024 के अंत तक पूरा होने की उम्मीद थी। फिर इसे मार्च तक के लिए टाल दिया गया और फिर सितंबर तक के लिए संशोधित किया गया।
जेपी एसोसिएट्स के अधिग्रहण से बढ़ी मुश्किल?
वेदांता लिमिटेड के डिमर्जर को लेकर कुछ कानूनी पेचीदगियां हैं। इसके अलावा, दिवालिया जयप्रकाश एसोसिएट्स के अधिग्रहण के लिए वेदांता का विजयी बोलीदाता के रूप में उभरना मामले को और जटिल बना देता है। हालांकि, कंपनी की ओर से ₹17,000 करोड़ की इस बोली को अभी तक लैंडर्स द्वारा अप्रूवल नहीं मिला है।
दरअसल, इस डील को पूरा करने के लिए वेदांता लिमिटेड को 3800 करोड़ रुपये अपफ्रंट देने होंगे और बाकी का पैसा अगले 5 सालों में देना होगा। चूंकि, जयप्रकाश एसोसिएट्स का बिजनेस, वेदांता ग्रुप के बिजनेसेज से बिल्कुल अलग है इसलिए क्रेडिट रिसर्च फर्म भी इससे चिंतित है। क्रेडिट साइट्स ने कहा, हम वेदांता के इस नए वेंचर की शुरुआत और इससे जुड़े जोखिमों पर नजर बनाए हुए हैं।
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