'विनाशकारी फैसला', ट्रंप पर फायर हो गए अमेरिकी सांसद और नेता; H-1B वीजा पर 88 लाख की फीस को बता दिया 'खतरनाक'
अमेरिकी सांसद राजा कृष्णमूर्ति ने कहा कि 88 लाख रुपए की फीस लगाने का प्रस्ताव अमेरिका को हाई-स्किल्ड वर्कर्स से काटने की कोशिश है। इन्हीं लोगों ने अमेरिकी वर्कफोर्स को मजबूत किया है इनोवेशन को बढ़ावा दिया है। H-1B वीज़ा होल्डर बाद में अमेरिका के नागरिक बनते हैं और खुद के स्टार्टअप शुरू कर वहां नई नौकरियां पैदा करते हैं।

नई दिल्ली| अमेरिका की राजनीति और टेक्नोलॉजी सेक्टर में इस समय एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। वजह है- राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का नया प्रस्ताव, जिसके तहत H-1B वीज़ा आवेदन पर 1 लाख डॉलर (लगभग 88 लाख रुपए) की भारी-भरकम फीस लगाने की बात कही जा रही है। इस फैसले की अमेरिकी सांसदों और प्रवासी भारतीय समुदाय के नेताओं ने कड़ी आलोचना की है। उनका कहना है कि यह कदम लापरवाह है और इससे आईटी इंडस्ट्री पर बेहद नकारात्मक असर पड़ेगा।
सांसदों की कड़ी आपत्ति
अमेरिकी सांसद राजा कृष्णमूर्ति ने कहा कि,
"यह 88 लाख रुपए की फीस लगाने का प्रस्ताव एक तरह से अमेरिका को हाई-स्किल्ड वर्कर्स से काटने की कोशिश है। इन्हीं लोगों ने अमेरिकी वर्कफोर्स को मजबूत किया है, इनोवेशन को बढ़ावा दिया है और ऐसे उद्योग खड़े किए हैं जिनमें लाखों अमेरिकियों को रोजगार मिला है।"
उन्होंने आगे कहा कि कई H-1B वीज़ा होल्डर बाद में अमेरिका के नागरिक बनते हैं और खुद के स्टार्टअप शुरू कर वहां नई नौकरियां पैदा करते हैं।
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टेक्नोलॉजी सेक्टर पर खतरा
जो बाइडेन सरकार के पूर्व सलाहकार और एशियन-अमेरिकन कम्युनिटी लीडर अजय भूटोरिया ने चेतावनी दी है कि इस कदम से अमेरिका का टेक्नोलॉजी सेक्टर अपनी बढ़त खो सकता है। उन्होंने कहा कि अभी तक H-1B प्रोग्राम ने दुनिया भर से टैलेंट को सिलिकॉन वैली की ओर आकर्षित किया है, लेकिन अचानक फीस को 2000-5000 डॉलर से बढ़ाकर 1 लाख डॉलर करना छोटे कारोबार और स्टार्टअप्स के लिए विनाशकारी होगा।
ग्लोबल टैलेंट पर असर
भूटोरिया का कहना है कि यह कदम कुशल पेशेवरों को अमेरिका से दूर कर देगा और वे कनाडा या यूरोप जैसे देशों का रुख करेंगे। उन्होंने सुझाव दिया कि सुधार की जरूरत है, लेकिन रास्ता संतुलित होना चाहिए। जैसे स्टार्टअप्स को छूट देना या मेरिट आधारित चयन को प्राथमिकता देना।
भारतीयों पर भी गहरा असर
फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज के खांदेराव कंद ने कहा कि इतनी महंगी फीस से सबसे ज्यादा नुकसान सॉफ्टवेयर और टेक इंडस्ट्री को होगा। खासकर उन भारतीय छात्रों और STEM प्रोफेशनल्स को, जो पहले से ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और टैरिफ नीतियों के असर से संघर्ष कर रहे हैं।
यानी साफ है कि अगर यह प्रस्ताव लागू हुआ तो न केवल अमेरिकी कंपनियों को झटका लगेगा, बल्कि हजारों भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स और छात्रों का सपना भी टूट सकता है।
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