खराब साख की वजह से 100 डॉलर कम में भी भारतीय माल में लेवाल नहीं
डबल डॉलर का निर्यात अभी तक ठंडा होने के बावजूद स्टॉकिस्टों ने इसे सहारा दे दिया है। वर्तमान में डबल डॉलर अन्य सभी दलहनों से नीचे होने से स्टॉकिस्टों ...और पढ़ें

इंदौर। डबल डॉलर का निर्यात अभी तक ठंडा होने के बावजूद स्टॉकिस्टों ने इसे सहारा दे दिया है। वर्तमान में डबल डॉलर अन्य सभी दलहनों से नीचे होने से स्टॉकिस्टों के आकषर्षण का केंद्र बन गया है। वायदे में कांटा चने के सटोरिए बुलेट ट्रेन का सफर करना चाहते हैं। डॉलर चने वाले इन्हीं के पीछे-पीछे चल रहे हैं। देखना है, आखिरी अंजाम क्या होता है।
डबल डॉलर की आवक अभी तक भरपूर मात्रा में हो रही थी। बिगड़ी साख की वजह से विदेशी लोग मैक्सिको के माल से 100 डॉलर कम में भी लेवाल नहीं बन रहे हैं। इस वर्ष भी डबल डॉलर का उत्पादन 4.50 से 4.75 लाख टन होने का अनुमान है। सामान्यत: डबल डॉलर की 50 फीसदी खपत विदेशों में होती है, शेष घरेलू बाजारों में।
केंद्र सरकार ने डबल डॉलर को निर्यात की प्राथमिकता वाली श्रेणी में रख रखा है। निर्यात की वजह से किसानों को अच्छे दाम भी मिलते रहे हैं। डबल डॉलर का उत्पादन करने वाले किसानों में संपन्नता भी आई है। इस वर्ष डबल डॉलर का व्यापार करने वालों ने निर्यात मांग कम होने एवं सस्ता होने से कांटा चने की तेजी के पीछे चलने लगा है। चने की तेजी के साथ डॉलर स्टॉक में जाने लगा है।
आम धारणा यह भी है कि निर्यात में बड़े आर्डर नहीं मिले तो डॉलर चना बेसन पीसने में चला जाएगा। उल्लेखनीय है कि डॉलर के बारीक दाने का बेसन बनाने में गुजरात वालों को महारथ हांसिल है। इसके बेसन का स्वाद थोड़ा सा मीठेपन पर होता है, जिसे गुजरात में अधिक पसंद किया जाता है।
पिछले वर्षो में कुछ दलालों ने भावों की तेजी-मंदी में निर्यात में हल्का माल भर दिया था, जिससे आयातक अब भारत के माल के नाम से बिचकने लगे हैं। डॉलर का उत्पादन मैक्सिको में भी होता विश्व बाजार में पहले मैक्सिको के माल की मांग रहती है। उसके बाद मजबूरी में भारत से आयात किया जाता है। वर्तमान में मैक्सिको का डॉलर चना 1150 डॉलर प्रति टन में लेवाल हैं, जबकि भारत 1050 डॉलर में बेचवाल है किन्तु लेवाल नहीं हैं।
पिछले वर्षो में निर्यात क्वालिटी की जांच करने वाली प्रयोग शालाओं के प्रबंधकों एवं इंस्पेक्टरों ने गलत तरीके से प्रमाण पत्र देकर लाखों रुपये कमाए थे। किन्तु इन्होंने भारत की साख पर बट्टा लगा दिया है, जिसका भुगतान आज डॉलर उत्पादक व्यापारी कर रहे हैं।
सामान्यत: देश से 2 से 2.50 लाख टन डबल डॉलर का निर्यात किया जाता है। इस वर्ष अभी तक 50 से 60 हजार टन का निर्यात हो सका है, जबकि 75 हजार से एक लाख टन का निर्यात हो जाना था। अर्थात अभी तक कम से कम 25 से 40 हजार टन की निर्यात में गिरावट आ गई है। इस अंतर को आने वाले महीनों में पाटा जा सकेगा, या नहीं यह अनुमान लगाना कठिन है।
भारत से डबल डॉलर का निर्यात टर्की, अल्जीरिया एवं दुबई के लिए होता है। इन सेंटरों से विश्व के अन्य देशों में चला जाता है। डबल डॉलर की आवक इंदौर, जावरा, रतलाम, ब़़डनगर, बदनावर, देवास, तराना, खातेगांव, उज्जैन एवं कुछ मात्रा में नीमच में भी होती है। इस वर्ष निमाड़ की फसल पूरी तरह से ठीक उतरी बताई जाती है, जबकि मालवा क्षेत्र की 10 से 20 फीसदी कम उतरने की संभावना व्यक्त की जा रही है।
पिछले कुछ दिनों से मप्र में लगातार 40 से 50 हजार बोरी डबल डॉलर की आवक हो रही थी। निर्यात मांग कमजोर होने के बाद स्टॉक में जा रहा है। इस बार स्टॉकिस्ट अधिक मात्रा में सक्रिय है। लगातार बड़ी मात्रा में आवक के बाद भी भाव लगभग स्थिर बने हुए हैं। अक्षय तृतीया की मांग की वजह से घरेलू मांग अच्छी चल रही थी। देखना है, आने वाले दिनों में घरेलू मांग एवं पाकिस्तान की बारीक माल में मांग कैसी रहती है।
डबल डॉलर में मीठापन अधिक होता है, अत: इसमें डंक जल्दी लगने लगता है। 15 मई के बाद कुरावन हवाएं चलने लगती हैं, अत: लेवाल डंक लगने की आशंका से पीछे हट जाते हैं। डॉलर चने के भावों का भविष्य कांटा चने के साथ जुड़ गया है। कांटा चने के सटोरिए वायदे में बड़ी तेजी में बैठ गए हैं। अर्थात बुलेट की रफ्तार से वायदे में तेजी लाने की फिराक में हैं। किन्तु काटां चने के सटोरिए शायद यह भूल कर रहे हैं काटां चने के भाव अधिक होने पर बेसन में डॉलर जाने लगेगा, जिससे तेजी पर ब्रेक लग सकता है।
सामान्यत: डबल डॉलर कांटा वाले चने से ऊपर ही बिकता आया है। कुछ वर्षो पूर्व 8-10 दिन के लिए नीचे भावों पर बिक गया था। फिलहाल निर्यात मांग ठंडी है। देखना है मई में विदेशी मांग कैसी निकलती है। उसी पर सभी व्यापारियों-स्टॉकिस्टों का ध्यान लगा हुआ है। --मुकेश कचोलिया निर्यातक इंदौर
मालवा क्षेत्र की उत्पादक मंडियों में डबल डॉलर की आवक बनी हुई है। चने की तेजी से स्टॉक करने का रख बना है। --विजय आंचलिया व्यापारी जावरा
घरेलू ग्राहकी कम है। अन्य दलहनों से सबसे नीचे भाव हैं, जिससे स्टॉकिस्ट इसे छो़ड़ नहीं रहे हैं। --पंकज अग्रवाल डबल डॉलर के दलाल, इंदौर

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