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    शिखर से फिसलकर आधे भी कम हो गया था स्टॉक मार्केट, क्या हमने कोई सबक सीखा?

    Updated: Sun, 09 Jun 2024 10:30 AM (IST)

    क्या कोई व्यक्ति बहुत जल्दी बेतहाशा अमीर बन सकता है? हां ये दुनियाभर में कुछ लोगों के साथ हर रोज होता है। क्या यही चीज किसी छोटे बिजनेस के साथ हो सकती है? बड़े बिजनेस के साथ? पूरे सेक्टर के साथ? पूरी दुनिया के साथ? जैसे-जैसे आप पैमाने पर ऊपर जाते हैं ऐसे बदलाव की क्षमता कम होती जाती है। ऐसे में बतौर निवेशक हमें सजग रहने की जरूरत है।

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    2008-09 जैसी इक्विटी निवेश की तबाहियां, मुनाफे की लंबी अवधि की तुलना में कहीं ज्यादा ध्यान खींचती हैं।

    धीरेंद्र कुमार। ऐसा लगता है कि ये एक प्राकृतिक नियम है कि नकारात्मक चीजें तेजी से होती हैं, जबकि सकारात्मक चीजें धीरे-धीरे और लगातार होती हैं। कोई भी एक दिन में अमीर नहीं बन जाता, लेकिन बहुत से लोग रातों-रात गरीब हो जाते हैं। इसे इस तरह से सोचें। क्या कोई ऐसी घटना हो सकती है जिससे दुनिया का आर्थिक उत्पादन सिर्फ एक साल में एक भयावह तरीके से गिर जाए, मान लीजिए 10 प्रतिशत तक? हां, बिल्कुल। कोरोना महामारी एक ऐसी घटना हो सकती थी।

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    हालांकि, क्या इसका उलटा भी हो सकता है? क्या कुछ ऐसा हो सकता है जिससे एक साल में इतनी ही बढ़ोतरी हो जाए? नहीं, कतई नहीं। ऐसे चमत्कार की संभावना शून्य के करीब है।

    क्या कोई व्यक्ति बहुत जल्दी बेतहाशा अमीर बन सकता है? हां, ये दुनियाभर में कुछ लोगों के साथ हर रोज होता है। क्या यही चीज किसी छोटे बिजनेस के साथ हो सकती है? बड़े बिजनेस के साथ? पूरे सेक्टर के साथ? एक देश के साथ? पूरी दुनिया के साथ? जैसे-जैसे आप पैमाने पर ऊपर जाते हैं, ऐसे बदलाव की क्षमता कम होती जाती है।

    हालांकि, संभावित नकारात्मक झटके का आकार और गति हमेशा बहुत बड़ी होती है। लॉटरी जीतने जैसे छोटी मिसालों के अलावा, हर पैमाने पर, नकारात्मक आश्चर्य सकारात्मक आश्चर्य की तुलना में बेहद शक्तिशाली और बेहद अचानक हो सकता है। इक्विटी मार्केट इस घटना का एक बेहतरीन उदाहरण है। इक्विटी मार्केट की तबाहियां (बड़े क्रैश) दिमाग पर छाई रहती हैं। जबकि प्राफिट चाहे कितने भी बड़े क्यों न हों, महीनों या सालों में मिलते हैं। नतीजा, अंतत: ग्रोथ को हल्के में लिया जाता है जबकि क्रैश दिमाग पर हावी रहते हैं।

    2008-09 जैसी इक्विटी निवेश की तबाहियां, मुनाफे की लंबी अवधि की तुलना में कहीं ज्यादा ध्यान खींचती हैं। 15-16 साल पहले, संकट से पहले के शिखर पर बीएसई सेंसेक्स 21 हजार से कुछ ही कम था। मार्च 2009 तक, ये 8,325 के निचले स्तर को छू गया। ये निवेश में बड़ी आपदा थी जिसे कोई भी इक्विटी निवेशक याद करेगा।

    बीएसई सेंसेक्स अब (जब मैं लिख रहा हूं) 76,000 अंक से ज्यादा (उस शिखर से करीब नौ गुना) पर है और निवेशक पिछले कई साल से कुछ रुकावटों के साथ लगातार पैसा कमा रहे हैं। यानी मुनाफे लगातार होते रहे हैं जिनमें कुछ रुकावटें भी शामिल रही हैं। क्योंकि ये लगातार हो रहे हैं इसलिए किसी घटना के तौर पर ये दिमाग पर कोई छाप नहीं छोड़ते।

    इसके अलावा, निवेश करने के तरीके को लेकर हमारा मानसिक मॉडल बदला है क्योंकि इक्विटी निवेश में सफलता का स्त्रोत पिछले कुछ साल में बदला है। एक समय था, जब आपको किसी तरह की सूचना या जानकारी का फायदा चाहिए होता था, तो उसके लिए आपकी पहुंच कुछ लोगों या संस्थानों तक होने की जरूरत होती थी जो आम तौर पर उपलब्ध नहीं होते थे।

    आज, ऐसा बिल्कुल नहीं है। सभी जानकारियां और विश्लेषण की सभी तकनीकें हर किसी के लिए मौजूद हैं और इसका ज्यादातर हिस्सा मुफ्त है। अगर कोई सीमा है, तो वो निवेशक की अपनी समझ, ज्ञान और निवेश के लिए समय दे पाने की उसकी क्षमता है। इसके अलावा, इक्विटी म्यूचुअल फंड के जरिये निवेश करने से तो समय देने जरूरत और रिस्क भी कम हो जाता है, जबकि धीरे-धीरे और लगातार मिलने वाले फायदे की संभावना उतनी ही बढ़ जाती है।

    इस इतिहास को ध्यान में रखकर, क्या आप भविष्यवाणी कर सकते हैं कि ये लिस्ट बीस साल में कैसी दिखेगी? या दस साल में भी? हालांकि, एक निवेशक के लिए, ये मायने नहीं रखना चाहिए। कंपनियों की असल पहचान केवल सूचना है, जो लगातार बदलती रहती है। निवेश की गाइड के तौर पर, आज की जानकारी एक दशक बाद उतनी ही अप्रासंगिक होगी जैसे एक दशक पहले का डाटा आज बेकार है।

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