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    नौकरी के लिए सऊदी अरब जाने वाले लोगों के लिए खुशखबरी, खत्म हुआ 'कफाला सिस्टम', 75 साल बाद मिली ये आजादी

    Updated: Wed, 22 Oct 2025 03:44 PM (IST)

    सऊदी अरब ने आधिकारिक तौर पर दशकों पुरानी 'कफाला प्रणाली' को खत्म कर दिया है, और इसके साथ ही विवादित स्पॉन्सरशिप फ्रेमवर्क का अंत हो गया है। मानवाधिकार समूह लंबे समय से कफ़ाला व्यवस्था की निंदा "आधुनिक दास प्रथा" के रूप में करते आ रहे थे।

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    यह रिफॉर्म, सऊदी अरब की लेबर पॉलिसी में सबसे महत्वपूर्ण बदलावों में से एक है।

    नई दिल्ली। सऊदी अरब में काम कर रहे लाखों अप्रवासी मजदूरों के लिए एक राहत भरी खबर आई है। दरअसल, एक ऐतिहासिक कदम के तहत सऊदी अरब ने आधिकारिक तौर पर अपनी दशकों पुरानी कफाला प्रणाली को समाप्त कर दिया है, जिससे विवादित स्पॉन्सरशिप फ्रेमवर्क का अंत हो गया है, जो 70 वर्षों से अधिक समय से लाखों प्रवासी श्रमिकों के जीवन को नियंत्रित कर रहा था।

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    जून 2025 में घोषित यह रिफॉर्म, सऊदी अरब की लेबर पॉलिसी में सबसे महत्वपूर्ण बदलावों में से एक है। इसका सीधा असर लगभग 1.3 करोड़ विदेशी कामगारों पर पड़ने की उम्मीद है, जिनमें से ज़्यादातर दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया से आते हैं। भारत से भी बड़ी संख्या में श्रमिक काम के लिए सऊदी अरब जाते हैं। इस फ़ैसले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खाड़ी देशों में प्रवासी कल्याण और मानवाधिकारों के लिए एक मील का पत्थर माना जा रहा है।

    क्या था 'कफाला सिस्टम'

    कफ़ाला शब्द, जिसका अरबी में अर्थ "प्रायोजन (स्पॉन्सरशिप)" होता है। दरअसल, यह एक ऐसी व्यवस्था को दर्शाता था जो हर प्रवासी मज़दूर को एक स्थानीय नियोक्ता, या कफ़ील, से बांधती थी। 1950 के दशक में स्थापित, इस व्यवस्था का मूल उद्देश्य सऊदी अरब में ऑयल बूम के दौरान आने वाले विदेशी मज़दूरों के प्रवाह को नियंत्रित करना था।

    हालांकि, समय के साथ यह फ्रेमवर्क नियोक्ताओं और कर्मचारियों के बीच एक असमान और अक्सर अपमानजनक शक्ति व व्यवहार का प्रतीक बन गया। क्योंकि, प्रायोजकों (नौकरी देने वाले) का कर्मचारी के रोज़गार, निवास और कानूनी स्थिति पर पूरा नियंत्रण था। कई नियोक्ता नियमित रूप से पासपोर्ट ज़ब्त कर लेते थे, वेतन में देरी करते थे या उसे रोक लेते थे, और कर्मचारियों की यात्रा करने या नौकरी बदलने की क्षमता पर प्रतिबंध लगा देते थे।

    सालों से होती आ रही थी आलोचना

    ऐसे में प्रायोजक की मंज़ूरी के बिना, प्रवासी कर्मचारी देश नहीं छोड़ सकते थे, कंपनी नहीं बदल सकते थे, या अधिकारियों से संपर्क भी नहीं कर सकते थे। मानवाधिकार समूह लंबे समय से कफ़ाला व्यवस्था की निंदा "आधुनिक दास प्रथा" के रूप में करते आ रहे थे। ह्यूमन राइट्स ग्रुप का मानना था कि कफाला सिस्टम ने मज़दूरों को बुनियादी आज़ादी और सुरक्षा से भी वंचित कर दिया।

    कफाला सिस्टम का अंत क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के विजन 2030 एजेंडे का हिस्सा है, जो सऊदी समाज को बदलने, अर्थव्यवस्था में विविधता लाने और राज्य की अंतर्राष्ट्रीय छवि में सुधार लाने के उद्देश्य से लिया गया फैसला और नेक पहल है।

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    बता दें कि सऊदी अरब दुनिया की सबसे बड़ी प्रवासी मज़दूर आबादी वाले देशों में से एक है। आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, लगभग 13.4 मिलियन विदेशी मज़दूर, राज्य की कुल आबादी का लगभग 42 प्रतिशत हिस्सा हैं। ये मज़दूर निर्माण, घरेलू काम, कृषि और अन्य कम वेतन वाले सेक्टर में काम करते हैं। यहां आने वाले ज़्यादातर श्रमिक भारत, बांग्लादेश, नेपाल और फ़िलीपींस से हैं।