गिरते रुपये को RBI ने संभाला, 46 पैसे उछलकर डॉलर के मुकाबले 89.20 के स्तर पर बंद
24 नवंबर को आरबीआइ के दखल से रुपये में जारी गिरावट थम गई। डॉलर के मुकाबले एक दिन में रुपये ने 46 पैसे की छलांग लगाई। शुक्रवार को मुद्रा बाजार में रुपया 89.66 के रिकार्ड स्तर पर बंद हुआ था। यह डॉलर के मुकाबले एक दिन में 98 पैसे की गिरावट देखी थी, जो 3 सालों में सबसे बड़ी गिरावट रही।

नई दिल्ली। आरबीआइ के हस्तक्षेप से सोमवार को रुपये ने तमाम विश्लेषकों के दावों को गलत साबित करते हुए डालर के मुकाबले एक दिन में 46 पैसे की छलांग लगाई और यह 89.20 के स्तर पर बंद हुआ। हालांकि, वैश्विक बाजार में जारी अस्थिरता और भारतीय शेयर बाजार से लगातार विदेशी संस्थागत निवेशकों की तरफ से की जा रही निकासी के चलते जानकार मान रहे हैं कि रुपये में अभी मजबूती आने की कोई सूरत नहीं दिखती है। कुछ विश्लेषक पिछले एक महीने के दौरान रुपये की चाल को देखते हुए यह कयास भी लगा रहे हैं कि इसका असर घरेलू महंगाई पर भी दिख सकता है। खासतौर पर ऐसे उत्पादों पर जिन्हें हम आयात करते हैं। पेट्रोलियम उत्पाद, उर्वरक, आटोमोबाइल पार्ट्स, इलेक्ट्रानिक्स उपकरण, रसायनों आदि की कीमतों में महंगाई पांव पसार सकती है।
शुक्रवार को मुद्रा बाजार में रुपया 89.66 के रिकार्ड स्तर पर बंद हुआ था। उस दिन डालर के सापेक्ष रुपये ने एक दिन में 98 पैसे की गिरावट देखी था। यह तीन सालों में सबसे बड़ी गिरावट थी। पिछले सप्ताह (17 से 21 नवंबर) के दौरान रुपये में कुल 1.17 रुपये की कमजोरी देखी गई थी। पिछले हफ्ते डालर के मुकाबले एशियाई बाजारों में भारतीय रुपया सबसे ज्यादा गिरने वाली करेंसी बन गई थी। इसका सबसे बड़ा कारण विदेशी संस्थागत निवेशकों का भारतीय बाजार से पैसा निकालना ही बताया गया।
RBI ने बेचा डॉलर
जानकारों का कहना है कि सोमवार (24 नवंबर) को कारोबार की शुरुआत होने के साथ ही आरबीआइ की तरफ से रुपये को संभालने के लिए खुलकर डालर की बिकवाली की गई। यही वजह है कि शेयर बाजार की मंदी (सेंसेक्स 331 अंकों की गिरावट के बाद 84,901 पर बंद हुआ) का असर मुद्रा बाजार पर नहीं पड़ा। साफ है कि आरबीआइ बाहरी तौर पर भले ही यह कहता है कि रुपये की कीमत को लेकर वह बहुत ज्यादा हस्तक्षेप के खिलाफ है, लेकिन वह इसे पूरी तरह से खुला भी नहीं छोड़ना चाहता।
एचडीएफसी सिक्युरिटीज के दिलीप परमार, रिसर्च एनालिस्ट ने कहा कि एशियाई मुद्राओं में सबसे तेजी भारतीय रुपये में ही देखी गई है जो संभवत: केंद्रीय बैंक के हस्तक्षेप से संभव हुआ है। हालांकि जो ट्रेंड है वह कमजोर ही है क्योंकि विदेशी फंड निवेशकों की तरफ से भारतीय बाजार से पैसा निकालने का रुख बना हुआ है। इसके अलावा, कारोबारी घाटा भी लगातार बढ़ रहा है और सभी प्रमुख मुद्राओं के सापेक्ष डालर की मजबूती बढ़ती जा रही है।
रुपये में गिरावट से देश के निर्यात को नहीं हो रहा कोई खास फायदा वैश्विक कारोबार पर रिसर्च करने वाली एजेंसी जीटीआरआइ ने रुपये की कीमत में लगातार हो रही गिरावट से देश के निर्यात को कोई खास फायदा नहीं होने की बात कही है। आमतौर पर रुपया कमजोर होता है तो माना जाता है कि निर्यातकों की प्रतिस्पद्र्धात्मक क्षमता बढ़ेगी।
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हालांकि, जीटीआरआइ के अजय श्रीवास्तव का कहना है कि वर्ष 2013 में एक डालर की कीमत 60 रुपये थी और तब भारत का कुल वस्तु निर्यात 313 अरब डालर था आज रुपया 90 के करीब पहुंच चुका है लेकिन निर्यात 440 अरब डालर ही है। यानी भारतीय मुद्रा में 50 प्रतिशत की गिरावट से भारतीय निर्यात को जो फायदा होना चाहिए था वैसा नहीं हुआ।

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