मौद्रिक नीतिः आरबीआइ ने फंड फ्लो बढ़ाने को उठाया कदम
आरबीआइ ने कर्ज सस्ता बनाने के लिए बैंकों के पास पर्याप्त फंड भी सुनिश्चित किया है। इसके लिए बैंकों का दैनिक आधार पर नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) 95 से घटाकर 90 फीसद किया गया है।
जागरण न्यूज नेटवर्क, नई दिल्ली। आरबीआइ गवर्नर रघुराम राजन ने कर्ज सस्ता बनाने के लिए बैंकों के पास पर्याप्त फंड भी सुनिश्चित किया है। पर्याप्त फंड होने से भी कर्ज दरों में नरमी बनी रहती है। इसके लिए बैंकों का दैनिक आधार पर नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) 95 से घटाकर 90 फीसद किया गया है। इसके अलावा रिवर्स रेपो रेट (बैंक अतिरिक्त नकदी को आरबीआइ के पास जमा करके जिस दर से ब्याज प्राप्त करते हैं) में बढ़ोतरी भी इसी मकसद से की गई है।
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तकरीबन दो वर्ष पहले राजग जब सत्ता में आई थी, तब उसने कहा था कि पूर्व की तरह वह एक बार फिर कर्ज दरों को सस्ता करने की जमीन तैयार करेगी। राजग के पहले कार्यकाल में वर्ष 2002 से 2004 के दौरान कर्ज दरें काफी कम रही थीं। इससे मध्यवर्ग के लिए घर खरीदने का सपना सच हुआ था। अब अगर खराब मानसून और ग्लोबल उथल-पुथल इसमें खलल नहीं डाले तो वैसा ही माहौल फिर बन रहा है। भारत की सुस्त औद्योगिक रफ्तार के लिए यहां ब्याज की ऊंची दरों को एक अहम वजह माना जाता है।
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पेश होगा लेस कैश सोसाइटी का विजन
रिजर्व बैंक जल्द ही कम नकदी और ज्यादा डिजिटल समाज (लेस कैश और मोर डिजिटल सोसाइटी) का विजन पेश करेगा। आरबीआइ का यह विजन 2018 भुगतान और निपटान प्रणालियों को बेहतर बनाने से जुड़ा है। इसके तहत नियमों को तकनीकी विकास के मुताबिक ढाला जाएगा। साथ ही भुगतान प्रणाली से जुड़े ऑपरेटरों पर निगरानी बढ़ाने, ग्राहकों की शिकायतों के निपटान का तंत्र बेहतर करने और पेमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत बनाने का भी इंतजाम किया जाएगा।
सिर्फ आपराधिक मंशा की हो जांच
लोन डिफॉल्टरों के मामले में आपराधिक मंशा की जांच की जानी चाहिए। फंसे कर्जो के (एनपीए) मामले में जानबूझकर बैंकों को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए। यह कहना है आरबीआइ गवर्नर रघुराम राजन का। राजन के मुताबिक, इसकी वजह से बैंकों से उधारी घट सकती है। नतीजतन अर्थव्यवस्था 'ठंडी' पड़ सकती है। ऐसे समय में उनका यह कथन बेहद महत्वपूर्ण है, जब विजय माल्या के भाग जाने के बाद बैंकों व उनके अफसरों को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है।
गवर्नर ने कहा कि ऐसे सभी मामलों में उन परिस्थितियों की छानबीन की जानी चाहिए जिनके तहत डिफॉल्टर कंपनियों को कर्ज दिए गए थे। देखना चाहिए कि क्या उस वक्त उपलब्ध जानकारी के अनुसार कर्ज सही मंशा से दिए गए थे। आज या भविष्य के हालात के आधार पर कोई फैसला नहीं किया जाना चाहिए। यही राय वित्त मंत्री अरुण जेटली की भी है।