सस्ते कर्ज के नए दौर की शुरुआत, RBI ने ब्याज दरों में कटौती कर किया रास्ता साफ
इसे मोदी सरकार का वित्त प्रबंधन कहिए या महज इत्तेफाक। कारण जो भी हो लेकिन देश सस्ते कर्ज के एक नए दौर के मुहाने पर खड़ा है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। इसे मोदी सरकार का वित्त प्रबंधन कहिए या महज इत्तेफाक। कारण जो भी हो लेकिन देश सस्ते कर्ज के एक नए दौर के मुहाने पर खड़ा है। आरबीआइ के नए नियम, काबू में महंगाई और बेहतर मानसून के आसार से आने वाले दिनों में होम लोन, ऑटो लोन व अन्य कर्जों की दरों में अच्छी खासी कमी आने के आसार हैैं।
आरबीआइ गवर्नर डॉ. रघुराम राजन ने उम्मीद के मुताबिक प्रमुख ब्याज दरों में 0.25 फीसद कटौती कर तमाम कर्ज की दरों को घटाने का रास्ता साफ कर दिया है। सुधारों को तेज करने में जुटी मोदी सरकार के लिए यह एक उत्साहित करने वाली खबर है क्योंकि इससे औद्योगिक रफ्तार को तेज करने और लाखों रोजगार के नए अवसर पैदा करने में सहूलियत होगी। हालांकि बाजार ने इस कटौती को कम मानते हुए खारिज कर दिया जिसके चलते शेयर बाजार में तेज गिरावट देखी गई।
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वित्त मंत्री अरुण जेटली ने एक दिन पहले ही ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद जताई थी। मंगलवार को वित्त वर्ष 2016-17 की पहली मौद्रिक नीति पेश करते हुए आरबीआइ गवर्नर रघुराम राजन ने रेपो रेट (जिस दर पर बैंक अल्पकालिक आवश्यकताओं के लिए आरबीआइ से कर्ज लेते हैं) को 6.50 फीसद करने का ऐलान किया। साथ ही उन्होंने इस बात के संकेत दिए कि यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा।
राजन ने कहा कि, 'कर्ज लेना अब सस्ता हो गया और यह आगे भी ऐसा ही रहेगा। बैैंक की तरफ से मार्जिनल फंड आधारित ब्याज दर लागू करने का नया फार्मूला लागू करने से कर्ज की दरों में पहले से ही 25 से 50 आधार अंकों की कटौती की सूरत बनी है। अब रेपो रेट में कटौती के बाद यह सिलसिला और तेज होगा।Ó वित्त मंत्रालय के आला अधिकारी और वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने भी इस कदम को अर्थव्यवस्था को तेज गति प्रदान करने वाला एक अहम कदम माना है।
इस वर्ष मानसून के सामान्य रहने की बढ़ती उम्मीदों की वजह से महंगाई की स्थिति ठीक रहने के आसार हैं। यही वजह है कि आरबीआइ ने इस वित्त वर्ष के लिए महंगाई दर का लक्ष्य 5 फीसद तय किया है। इससे भी कर्ज की दर नीचे रखने में मदद मिलेगी। वैसे वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने से महंगाई की दर में कुछ बढ़ोतरी की संभावना भी है।
बताते चलें कि आरबीआइ महंगाई बढऩे की स्थिति में ब्याज दरों को बढ़ा देता है। आरबीआइ गवर्नर ने कर्ज सस्ता बनाने के लिए बैैंकों के पास पर्याप्त फंड होना भी सुनिश्चित किया है। पर्याप्त फंड होने से भी कर्ज की दरों में नरमी बनी रहती है। आरबीआइ ने आर्थिक विकास दर के 7.6 फीसद रहने की उम्मीद जताई है जो बहुत हद तक अन्य एजेंसियों के अनुमान के मुताबिक ही है।
सनद रहे कि तकरीबन दो वर्ष पहले राजग जब सत्ता में आई थी तब उसने कहा था कि पूर्व की तरह वह एक बार फिर कर्ज की दरों को सस्ता करने की जमीन तैयार करेगी। एनडीए के पहले कार्यकाल में वर्ष 2002 से वर्ष 2004 के दौरान कर्ज की दरें काफी कम रही थी जिससे मध्यम वर्ग के घर खरीदने का सपना सच हुआ था। अब अगर खराब मानसून और वैश्विक उथल-पुथल इसमें खलल नहीं डाले तो वैसा ही माहौल फिर बन रहा है। भारत की सुस्त औद्योगिक रफ्तार के लिए यहां ब्याज की ऊंची दरों को एक अहम वजह माना जाता है।
मौद्रिक नीति : मुख्य बातें-
रेपो दर 6.75 फीसद से घटकर 6.50 फीसद- रिवर्स रेपो रेट 0.25 फीसद बढ़कर 6 फीसद के स्तर पर- बैंकों के पास ज्यादा फंड उपलब्ध कराने की व्यवस्था- आर्थिक विकास दर 7.6 फीसद रहने के आसार- पांच फीसद पर महंगाई की दर भी रहेगी काबू में- वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने से कुछ बढ़ेगी महंगाई दर - लंबी अवधि का कर्ज देने के लिए खुलेंगे नए बैंक- बड़े कॉरपोरेट ग्राहकों के लिए जारी होंगे नए नियम- एनबीएफसी के पंजीयन के नियम आसान बनेंगे