मंहगाई पर RBI Governor ने दिया बड़ा अपडेट, जानिए कब तक मिलेगी लोगों को राहत
लंडन में आयोजित ग्रीष्मकालीन बैठक में बोलते हुए शक्तिकांत दास ने कहा कि आरबीआई के आकलन के मुताबिक अपस्फीति प्रक्रिया धीमी होने की संभावना है। दास के मुताबिक मुद्रास्फीति अनुमान 5.1 प्रतिशत से कम है लेकिन 4 प्रतिशत के लक्ष्य से ज्यादा है।

नई दिल्ली,बिजनेस डेस्क: भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने आज देश में जारी मंहगाई को लेकर एक बड़ी जानकारी दी है। शक्तिकांत दास ने कहा कि देश में अपस्फीति (Disinflation) की प्रक्रिया धीमी होगी।
लंडन में सेंट्रल बैंकिंग द्वारा आयोजित ग्रीष्मकालीन बैठक में अपने संबोधन के दौरान दास ने कहा कि
हमारे मौजूदा आकलन के अनुसार, अपस्फीति प्रक्रिया धीमी होने की संभावना है और इस साल के अंत तक मंहगाई 4 फीसदी के अंत तक आ सकती है।
मुद्रास्फीति में नरमी के संकेत
पिछले महीने मई के लिए मुद्रास्फीति में 4.25 प्रतिशत की गिरावट के आधिकारिक आंकड़ों के सुझाव के एक दिन बाद, गवर्नर ने कहा कि हाल के महीनों में मुद्रास्फीति में कुछ नरमी के संकेत मिले हैं, कंज्यूमर प्राइस इन्फ्लेशन अप्रैल 2022 में उच्च स्तर पर रही 7.8 प्रतिशत से नीचे आ रही है।
गवर्नर ने कहा कि चालू वित्त वर्ष 2023-24 के लिए आरबीआई का मुद्रास्फीति अनुमान 5.1 प्रतिशत से कम है, लेकिन अभी भी यह अनुमान 4 प्रतिशत के लक्ष्य से ज्यादा है।
विकास के साथ-साथ मंहगाई पर भी काबू रखना उद्देश्य
अपने संबोधन के दौरान दास ने कहा कि आरबीआई को विकास के उद्देश्य के साथ-साथ मंहगाई पर भी काबू रखने का लक्ष्य है। दास ने कहा कि कोविड महामारी के के दौरान आरबीआई ने मुद्रास्फीति के बजाए विकास को प्राथमिकता दी थी।
दास ने कहा कि आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति ने 2020 और 2021 के दौरान जब कोविड पीक पर था तब मुद्रास्फीति पर विकास को प्राथमिकता दी गई थी।
वित्त वर्ष 24 में जीडीपी 6.5 प्रतिशत पर आने का अनुमान
शक्तिकांत दास ने कहा कि वित्त वर्ष 24 में, आरबीआई ने वास्तविक जीडीपी में बढ़ोतरी कर 6.5 प्रतिशत पर रहने का अनुमान लगाया है और साथ ही साल 2023 में भारत सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक रहेगा।
इसके अलावा आरबीआई ने नियामक और निगरानी के मोर्चे पर भी कई कदम उठाए है जैसे सुपरवाइजरी रणनीति शामिल है जिसमें सुपरवाइजरी आर्किटेकट, ओनरशिप एगनोस्टिक में बदलाव देखा गया है।
गवर्नर ने कहा कि बैंकों में व्यावसायिक निर्णय लेने में हस्तक्षेप किए बिना, आरबीआई बैंकों और अन्य उधार देने वाली संस्थाओं के व्यापार मॉडल को समझा है और उनकी एसेट-लायबलिटी मिसमैच और फंडिंग स्थिरता पर बारीकी से नजर रखी है।
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