Manufacturing PMI: महंगाई कम होने से नवंबर में बढ़ीं फैक्ट्री गतिविधियां, आउटपुट 3 महीने के उच्चतम स्तर पर
मांग में उछाल और 2023 में उत्पादन बढ़ने की उम्मीद के चलते कंपनियों का आउटपुट बढ़ा है। इससे अर्थव्यवस्था में सकारात्मक भावना का संचार हुआ है। पिछले आठ वर्षों में फैक्ट्री आउटपुट के लिहाज से यह सबसे अच्छा स्तर है।
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। Manufacturing PMI: वैश्विक आर्थिक स्थितियों के बिगड़ने के बावजूद पिछले तीन महीनों में भारत की फैक्ट्री गतिविधि सबसे तेज गति से बढ़ी है। एसएंडपी ग्लोबल द्वारा जारी डाटा से पता चलता है कि मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स पिछले महीने अक्टूबर के 55.3 की तुलना में बढ़कर 55.7 हो गया। यह लगातार 17वां महीना है, जब भारत में विनिर्माण उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है। आपको बता दें कि पीएमआई की रीडिंग 55.0 के रॉयटर्स पोल के औसत पूर्वानुमान से भी ऊपर है।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि मांग में लचीलापन आने से भारत में मैन्युफैक्चरिंग आउटपुट को बढ़ावा मिला है। तीन महीने की मध्य अवधि के लिए नए ऑर्डर और उत्पादन में तेज वृद्धि देखी। इसके अलावा कंपनियां विकास की संभावनाओं के प्रति आश्वस्त नजर आईं। सर्वे में कहा गया है कि देश इस समय रोजगार सृजन के दौर से गुजर रहा है।
वैश्विक उथल-पुथल का नहीं हुआ असर
अक्टूबर में तीन महीनों में पहली बार भारत का उपभोक्ता मूल्य लाभ 7 फीसद से नीचे गिर गया। अगले साल के लिए उम्मीद है कि भारत में विकास दर मजबूत स्थिति में रहेगी और मुद्रास्फीति का स्तर कम होगा। आरबीआई और सरकार मिलकर कठिन वैश्विक विपरीत परिस्थितियों के बीच एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं।
बुधवार को जारी जीडीपी अनुमानों से पता चलता है कि भारत में पिछली तिमाही में विकास दर घटकर 6.3% रह गई। पिछली तिमाही के मुकाबले इसमें गिरावट तो है, लेकिन अब भी भारत की विकास दर दुनिया में सबसे अधिक बनी हुई है।
आगे कैसी रहेगी स्थिति
एसएंडपी ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस में एसोसिएट डायरेक्टर पोलीअन्ना डी लीमा ने कहा कि भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ने नवंबर में अच्छा प्रदर्शन करना जारी रखा है। मंदी की आशंका और वैश्विक अर्थव्यवस्था में कमजोरी के डर से बीते कुछ सप्ताह राहत देने वाले थे, हालांकि अर्थव्यवस्था की चुनौतियां बरकरार रहीं। उत्पादकों ने मांग के लचीलेपन के बीच उत्पादन को बढ़ा दिया। लागत का प्रेशर कम होने के बाद कंपनियों की रिस्क लेने की क्षमता भी बढ़ी है।
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