Move to Jagran APP

तो कंपनियों के लिए कर्मचारियों को बर्खास्त करना हो जाएगा आसान!

मोदी सरकार श्रम कानूनों में बदलाव करने जा रही है, लेकिन इससे श्रमिकों के हित प्रभावित हो सकते हैं। क्योंकि अब सरकार तीन अलग-अलग श्रम कानूनों को एक कोड में एकीकृत करने जा रही है। इस बदलाव से जिन कंपनियों के कर्मचारियों की संख्या 300 तक होगी, वे बड़ी आसानी

By Shashi Bhushan KumarEdited By: Published: Sat, 02 May 2015 09:35 AM (IST)Updated: Sat, 02 May 2015 10:48 AM (IST)
तो कंपनियों के लिए कर्मचारियों को बर्खास्त करना हो जाएगा आसान!

नई दिल्ली। मोदी सरकार श्रम कानूनों में अहम बदलाव करने जा रही है, लेकिन इससे श्रमिकों के हित प्रभावित हो सकते हैं। केंद्र सरकार तीन अलग-अलग श्रम कानूनों को एक कोड में एकीकृत करने जा रही है। इसे लागू होने के बाद जिन कंपनियों के कर्मचारियों की संख्या 300 तक होगी, वे बड़ी आसानी से श्रमिकों को बर्खास्त कर सकेंगी और उन्हें सरकार से किसी आधिकारिक इजाजत की जरूरत नहीं होगी।

loksabha election banner

इसके अलावा नए बदलावों के बाद कर्मचारियों के लिए वर्कर्स यूनियन बनाना भी मुश्किल हो जाएगा। श्रम मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए इंडस्ट्रियल रिलेशन बिल 2015 के मसौदे के मुताबिक वर्कर्स यूनियन के गठन के लिए कम से कम दस फीसदी कर्मचारी या कम से कम 100 कर्मचारियों की जरुरत होगी। वर्तमान कानून के तहत किसी कंपनी के कम से कम सात लोग मिलकर यूनियन बना सकते हैं, चाहे उस कंपनी का आकार कुछ भी हो। साथ ही वर्तमान कानून में यह प्रावधान है कि यूनियन में केवल कर्मचारी ही शामिल हो सकते है, जबकि असंगठित क्षेत्र में दो बाहरी अधिकारी भी यूनियन के सदस्य हो सकते हैं।

नए कानून के तहत इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट, 1947, द ट्रेड यूनियन एक्ट, 1926 और इंडस्ट्रियल एम्पलाइमेंट (स्टैंडिंग आडर्स) एक्ट, 1946 को एक ही कानून के अंतर्गत मिला दिया जाएगा। इस मसौदे पर सलाह-मशविरे के लिए सरकार ने 6 मई को ट्रेड यूनियन और कंपनियों के प्रतिनिधियों को बुलाया है।

मीडिया में इस बिल के श्रमिक विरोधी खबरें प्रकाशित होने के बाद सरकारी अधिकारियों ने इस बिल के संबंध में सफाई दी है। उन्होंने कहा कि यह बिल श्रमिक विरोधी नहीं है, बल्कि नौकरी से निकाले जाने की स्थिति में इसमें 45 दिन की सैलरी दिलवाने का प्रावधान है जबकि वर्तमान में यह महज 15 दिन है। इसके अलावा इस बिल में यह भी प्रावधान है अगर कोई कर्मचारी एक साल से ज्यादा कार्यरत है तो उसे निकालने के लिए कंपनी को कम से कम तीन महीने का नोटिस देना होगा। लेकिन तीन महीने का नोटिस वाला यह कानून बिल्डिंग, पुल, सड़क, नाले, डैम इत्यादि का निर्माण करने वाली उपक्रमों पर लागू नहीं होगा।

नए कानून के बाद कंपनियों के लिए नए कर्मचारियों को रखने की प्रक्रिया आसान होगी। इस बारे में अधिकारी ने कहा,' यूनियनों को श्रमिकों का सच्चा प्रतिनिधि बनना चाहिए। इसके साथ ही कानून भी मौजूदा समय के हिसाब से होना चाहिए।'

वहीं, विभिन्न ट्रेड यूनियन ने सरकार के इस कदम को कर्मचारी हितों का विरोधी बताया है। भारतीय मजदूर संघ के उपाध्यक्ष एम जगदेश्वर राव के मुताबिक, 'कई राज्य सरकारों ने ऐसे प्रस्ताव पहले भी दिए हैं और अब यह केंद्र सरकार के स्तर पर हो रहा है, जो चिंताजनक है। अगर यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है तो यूनियन बनाने की कोई गुंजाइश नहीं बचेगी। यूनियन के गठन के लिए श्रम मंत्रालय के पास 100 कर्मचारियों को लेकर जाना आसान नहीं है।'

नए प्रस्ताव के मुताबिक कंपनी के साथ सुलह की कोशिश के दौरान कर्मचारियों को काम धीमा करने, कंपनी के अहाते में धरना-प्रदर्शन करने या कंपनी के मैनेजरों के घरों के आगे धरना देने की इजाजत नहीं होगी। इसे उकसाने और भड़कानेवाली कार्रवाई मानकर गैरकानूनी घोषित किया जाएगा।

इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक देश में पंजीकृत यूनियनों की संख्या 1991-93 में 2,21,871 थी, जो 2005-08 में बढ़कर 3,47,330 हो चुकी है।

बिजनेस सेक्शन की अन्य खबरों के लिए यहां क्लिक करें


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.