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    भारत के बजाय चीन से अपने नोट छपवा रहा नेपाल; बीजिंग ने कैसे ली नई दिल्ली की जगह, क्या है ड्रैगन की करेंसी स्ट्रैटजी?

    Updated: Fri, 14 Nov 2025 10:06 PM (IST)

    Nepal currency printing in China: नेपाल पहले भारत में अपनी मुद्रा छपवाता था, लेकिन 2015 से उसने चीन को यह ठेका देना शुरू कर दिया। हाल ही में, नेपाल ने फिर से 1000 के नोट छापने का कॉन्ट्रैक्ट चीन को दिया है। भारत द्वारा कुछ क्षेत्रों को लेकर आपत्ति जताने के बाद नेपाल ने चीन का रुख किया। चीन सस्ती प्रिंटिंग और आधुनिक तकनीक प्रदान करता है, जिससे वह करेंसी प्रिंटिंग का बड़ा केंद्र बन गया है।

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    भारत के बजाय चीन से अपने नोट छपवा रहा नेपाल; बीजिंग ने कैसे ली नई दिल्ली की जगह, क्या है ड्रैगन की करेंसी स्ट्रैटजी?

    Nepal currency printing in China: दशकों तक नेपाल अपनी करेंसी भारत में छपवाता था। 1945 से 1955 तक नेपाल के सभी बैंकनोट नासिक की इंडिया सिक्योरिटी प्रेस में बनते थे। इसके बाद भी 2015 तक नेपाल की नोट छपाई में भारत की बड़ी भूमिका रही। लेकिन 2015 नेपाल के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ और उसने नोट प्रिंटिंग का ठेका चीन को देना शुरू कर दिया।

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    पिछले दिनों नेपाल ने एक बार फिर अपने 1000 के नोट (China replaces India in Nepal banknotes) चीन को छापने का ठेका दिया है। नेपाल राष्ट्र बैंक (NRB) ने चीन की सरकारी कंपनी चाइना बैंकनोट प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉरपोरेशन (China Banknote Printing and Minting Corporation) को 430 मिलियन यानी 43 करोड़ नोट छापने का कॉन्ट्रैक्ट दिया है।

    बैंक अधिकारियों के मुताबिक, इस प्रोजेक्ट की कुल लागत करीब 16.98 मिलियन डॉलर (लगभग ₹142 करोड़) तय की गई है। अब सवाल यह है कि आखिर जब भारत, नेपाल के नोट छापता था, तो आखिर चीन ने साउथ एशिया की करेंसी पॉलिटिक्स (China's currency politics in South Asia) में जगह कैसे ले ली? चलिए समझते हैं।

    यह भी पढ़ें- पाकिस्तान, बांग्लादेश के बाद नेपाल की करेंसी छापेगा चीन, ड्रैगन को मिला ₹142 करोड़ का ठेका; भारत से बढ़ेगी टेंशन?

    नक्शे पर भार की आपत्ति, नेपाल ने बदल लिया पाटर्नर

    नेपाल के नए नोटों में जो नक्शा छापा गया है, उसमें लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी को नेपाल का हिस्सा दिखाया गया है। ये इलाके भारत भी अपना बताता है। राजनीतिक संवेदनशीलता की वजह से भारत ने ऐसे नोट छापने से इनकार कर दिया। इसके बाद नेपाल ने नए विकल्प ढूंढे और कॉन्ट्रैक्ट चीन को दे दिया।

    नेपाल को चीन से क्या-क्या फायदे मिले?

    नेपाल की अपनी नोट छापने की क्षमता सीमित है। हाई-एंड सिक्योरिटी प्रिंटिंग के लिए उसे बाहर पर निर्भर रहना पड़ता है। चीन ने नेपाल को जो दिया, उनमें शामिल है:

    • सस्ती प्रिंटिंग
    • एडवांस टेक्नोलॉजी
    • तेजी से सप्लाई
    • राजनीतिक बाधा नहीं

    आज नेपाल की सारी करेंसी चाइना बैंकनोट प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉर्पोरेशन (CBPMC) प्रिंट करती है।

    पूरी एशिया की करेंसी छाप रहा चीन?

    हालांकि, नेपाल अकेला देश नहीं जिसने चीन पर भरोसा किया है। बांग्लादेश, श्रीलंका, मलेशिया, थाईलैंड और अफगानिस्तान भी अपने बैंकनोट चीन में तैयार करते हैं। पिछले 10 साल में चीन डेवलपिंग देशों का सबसे बड़ा करेंसी प्रिंटिंग हब बन चुका है। इसका कारण है CBPMC की हाई-टेक सुविधाएं, जिनमें शामिल हैं:

    • वॉटरमार्क
    • होलोग्राफिक थ्रेड
    • कलर-शिफ्टिंग इंक
    • और इसकी खास तकनीक 'कलरडांस' (Colordance), जो नकली नोट बनाना बेहद मुश्किल बनाती है।

    बैंकनोट इंडस्ट्री में चीन कैसे बना सुपर पावर?

    CBPMC की ताकत सिर्फ वॉल्यूम में नहीं है। 2015 में कंपनी ने ब्रिटेन की प्रसिद्ध De La Rue के बैंकनोट डिविजन को खरीद लिया। इससे चीन को, दुनिया की एडवांस प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी, ग्लोबल क्लाइंट बेस और एक भरोसेमंद ब्रांड वैल्यू, सब एक साथ मिल गया। इसके बाद चीन एशिया के बाहर यूरोप, अफ्रीका और मिडिल ईस्ट तक नोट छापने लगा।

    साउथ एशिया में भारत का असर कम होता दिख रहा?

    नेपाल जैसे छोटे देशों के नोट अब चीन छाप रहा है। ये सिर्फ आर्थिक कदम नहीं बल्कि रणनीतिक बदलाव है। करीबियों पर भारत का पारंपरिक प्रभाव कम होता दिख रहा है और साउथ एशिया की करेंसी पॉलिटिक्स में चीन नई भूमिका निभा रहा है।

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