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एक और परंपरा तोड़ने की तैयारी, अंग्रेजों के जमाने के वित्त वर्ष को बदलेगी सरकार

केंद्र सरकार अंग्रेजों के जमाने के वित्त वर्ष को बदलने की तैयारी कर रही है। ऐसा होने पर वित्त वर्ष की मौजूदा व्यवस्था में बदलाव आ जाएगा।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Wed, 06 Jul 2016 11:24 PM (IST)Updated: Thu, 07 Jul 2016 06:55 AM (IST)
एक और परंपरा तोड़ने की तैयारी, अंग्रेजों के जमाने के वित्त वर्ष को बदलेगी सरकार

हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली। भाजपा की एनडीए सरकार अंग्रेजों के जमाने की एक और परंपरा को तोड़ने की तैयारी कर रही है। मोदी सरकार वित्तीय लेखा-जोखा की मौजूदा व्यवस्था में बड़ा बदलाव लाते हुए अंग्रेजों के जमाने से चल रहे वित्त वर्ष को बदलने की तैयारी कर रही है। ऐसा होने पर एक अप्रैल से अगले वर्ष 31 मार्च तक चलने वाली वित्त वर्ष की मौजूदा व्यवस्था बदले जाने पर फरवरी में आम बजट पेश करने की परिपाटी भी बदल जाएगी।

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सूत्रों ने कहा कि वित्त मंत्रालय ने पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार शंकर आचार्य की अध्यक्षता में एक चार सदस्यीय समिति का गठन कर नए वित्त वर्ष की व्यवहारिकता परखने को कहा है। मंत्रालय की बजट डिवीजन की ओर से बनायी गयी इस समिति में पूर्व कैबिनेट सचिव के एम चंद्रशेखर, तमिलनाडु के पूर्व वित्त सचिव पीवी राजारमन और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के सीनियर फेलो डा. राजीव कुमार बतौर सदस्य शामिल हैं। मंत्रालय ने इस समिति को इस साल 31 दिसंबर तक रिपोर्ट सौंपने को कहा है।

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पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए की पहली सरकार ने शाम को बजट पेश किए जाने की परंपरा बदली थी। साल 2000 से पहले तक अंग्रेजों की परंपरा का पालन करते हुए आजादी के बाद से ही सरकार अपना बजट फरवरी की अंतिम तारीख को शाम साढ़े पांज बजे पेश करती थी। लेकिन वर्ष 2000 में वाजपेयी सरकार ने इस परंपरा को समाप्त कर प्रात: 11 बजे संसद में बजट पेश करना शुरू किया। उस वक्त इसके पीछे यही तर्क दिया गया था कि देश की अपनी परिस्थितियों के हिसाब से ही बजट पेश करने का वक्त निर्धारित होना चाहिए। यही तर्क वित्त वर्ष में बदलाव को लेकर भी है।

इन स्थितियों को ध्यान में रखते हुए ही समिति इस बात पर विचार करेगी कि नया वित्त वर्ष किस तारीख से शुरु किया जाए। संभावित तारीखों और वित्त वर्ष की मौजूदा तारीख की अच्छाइयों और कमियों दोनों पर चर्चा की जाएगी। इसके अलावा समिति मौजूदा वित्त वर्ष की शुरुआत तथा विगत में वित्त वर्ष में बदलाव के संबंध में हुए प्रयासों का अध्ययन भी करेगी।

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सूत्रों ने कहा कि समिति केंद्र और राज्य सरकारों की प्राप्तियों और व्यय के सटीक आकलन की दृष्टि से वित्त वर्ष की उपयुक्तता, विभिन्न कृषि फसलों के अंतराल, कार्यकारी सत्र (वर्किंग सीजन) और कारोबार पर इसके प्रभावों के बारे में विचार विमर्श करेगी। समिति को कहा गया है कि वह इन सभी विषयों पर विचार करने के बाद देश के लिए उपयुक्त नया वित्त वर्ष शुरु करने की तारीख की सिफारिश कर सकती है। इसके अलावा समिति यह भी बताएगी कि वित्त वर्ष में बदलाव कब से किया जाए और जब तक नया वित्त वर्ष शुरु न हो तब तक कर तथा अन्य मामलों के संबंध में क्या व्यवस्था अपनायी जाए।

सूत्रों ने कहा कि एक विगत में एक विकल्प यह भी सुझाया गया है कि वित्त वर्ष अप्रैल में शुरु होने के बजाय मानसून के बाद शुरु होना चाहिए ताकि सड़क सहित विभिन्न योजनाओं के निर्माण कार्य में रुकावट न आए। इसके पीछे विचार यह है कि फिलहाल अप्रैल से नया वित्त वर्ष होता है लेकिन जून से सितंबर तक मानसूनी मौसम होने के कारण देश के विभिन्न भागों में निर्माण कार्य नहीं हो पाते, इसलिए महत्वपूर्ण समय ऐसे ही चला जाता है। कई देशों में कलेंडर ईयर (जनवरी से दिसंबर) को ही वित्त वर्ष माना जाता है।

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