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    पहचानों तो जानें! ये हीरा खान से निकला है या लैब में बना है?

    वैसे तो बचपन से यही कहावत सुन रहे हैं कि हीरे की असली परख सिर्फ बादशाह को होती है या फिर जोहरी को। लेकिन कुछ हीरे न तो जौहरी परख सकता है ना ही आप। यह हीरे भारत के डायमंड कारोबार की सबसे बड़ी चिंता का विषय बन गए हैं। क्योंकि ये कोई खान से नहीं बल्कि चीन या यूरोप में स्थित किसी प्रयोगशाला में बनाए गए हीर

    By Edited By: Updated: Tue, 29 Apr 2014 09:44 AM (IST)

    नई दिल्ली। वैसे तो बचपन से यही कहावत सुन रहे हैं कि हीरे की असली परख सिर्फ बादशाह को होती है या फिर जोहरी को। लेकिन कुछ हीरे न तो जौहरी परख सकता है ना ही आप। यह हीरे भारत के डायमंड कारोबार की सबसे बड़ी चिंता का विषय बन गए हैं।

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    क्योंकि ये कोई खान से नहीं बल्कि चीन या यूरोप में स्थित किसी प्रयोगशाला में बनाए गए हीरे हैं। हालांकि, कृत्रिम हीरे कोई नया आविष्कार नहीं हैं पर असली हीरे की चमक के बीच छुपाकर भारत के कई शहरो में बेचा जा रहा है। वही रूप, वही रंग, वही चमक, लेकिन इन कृत्रिम हीरे की कीमत असली से कई गुना कम होती है लेकिन क्या आप के आभूषणों को चमक देने वाले वाले हीरे असली है या फिर नकली?

    एक अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित खबर के मुताबिक, इन लैब में ऐसे प्रेशर कूकर होते हैं जो हीरों को महज 24 घंटे के अंदर तैयार कर देते हैं। अब आप कोहिनूर पाने के लिए अगले दिन का ऑर्डर दे सकते हैं। ज्वैलरी कारोबार के लोगों का कहना है कि वह आखिरकार ऐसे हीरे बनाने में कामयाब हो गए हैं जो 'शीर्ष प्राकृतिक हीरों की तरह' हैं और इन हीरों को न ही आंखों से देखकर और न ही मैग्नीफाइंग लूप से ही नैचरल हीरों से अलग कहा जा सकता है। इसी बात ने कई जूलर्स को इस बात के लिए प्रेरित किया कि वे हीरे की बनने की प्राकृतिक प्रक्रिया से इतर एक प्रॉक्सी प्रक्रिया अपनाएं।

    खबर के मुताबिक, लैब में बने हीरे की कीमत 7 लाख रुपये प्रति कैरट होती है जबकि नैचरल हीरे की कीमत 15 लाख रुपये प्रति कैरट होती है। फॉक्स वैरियंट की कीमत 1 से 3 हजार रुपये ज्यादा होती है। फैक्टरी में बने हीरे पिछले साल के अंत में भारत पहुंचे। भारत में यह तेजी से बढ़ने वाला बिजनस है।

    फ्लोरिडा से सूरत तक ऐसी कंपनियां तेजी से फैल रही हैं। लैब में हीरों के निर्माण के लिए मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स में इन पत्थरों को उच्च तापमान पर विशेष यंत्रों के साथ रखा जाता है। इसके लिए दो तरीके अपनाए जाते हैं। पहला केमिकल वेपर डिपोजिशन (सीवीडी) और दूसरा हाई प्रेशर हाई टेंपरेचर (एचपीएचटी) तरीका।

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