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    नई Mazagon Dock बन रहीं जहाज बनाने वाली ये 3 कंपनियां, इनके स्टॉक के मल्टीबैगर रिटर्न देख सब हैरान?

    Updated: Sat, 15 Nov 2025 06:00 PM (IST)

    भारत का रक्षा क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है, जिसमें मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स (Mazagon Dock Shipbuilders) ने मिसाल कायम की है। ऐसे में हम आपको अब वो कौन सी 3 प्राइवेट कंपनियां है जो इस क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रही हैं उसके बारे में बता रहे हैं। भारतीय नौसेना क्योंकि हर 40 दिनों में एक स्वदेशी जहाज लॉन्च कर रही है, जिससे इनके 2030 तक टॉप-10 में शामिल होने का लक्ष्य है। ये कंपनियां निवेशकों को आकर्षित कर रही हैं, पर क्या ये मझगांव की तरह बड़ी छलांग लगा पाएंगी चलिए? जानते हैं...

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    कौन सी 3 प्राइवेट कंपनियां सरकारी Mazagon Dock Shipyard की बराबरी करने में लगी हैं?

    नई दिल्ली। भारत का डिफेंस सेक्टर इन दिनों तेजी से बढ़ते कदमों के साथ आगे बढ़ रहा है। मेक इन इंडिया अभियान, स्वदेशी विनिर्माण पर जोर, बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव, घरेलू खरीद लक्ष्यों में इजाफा, प्राइवेट कंपनियों के लिए द्वार खोलना और निर्यात के नए अवसरों ने पूरे सेक्टर को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है।

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    मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स जिसकी बड़ी मिसाल है। यह पिछले पांच सालों में 30 गुना बढ़कर सबसे ज्यादा रिटर्न देने वाला साबित हुआ है। इसके शेयर में अगर आपने 16 अक्टूबर 2020 को एक लाख रुपये निवेश किए होते, तो आज आपके पास 30 लाख रुपये होते। कंपनी की आय 18% की चक्रवृद्धि वार्षिक दर (CAGR) से बढ़ी, जबकि नेट प्रॉफिट 38% की रफ्तार पकड़ चुका है।

    लेकिन मझगांव की सफलता के बाद नजरें अब प्राइवेट जहाज निर्माण कंपनियों पर हैं। हाल के आंकड़ों और बाजार के रुझानों से साफ है कि गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE), कोचिन शिपयार्ड और स्वान डिफेंस जैसी तीन प्राइवेट कंपनियां मझगांव की राह पर तेजी से कदम बढ़ा रही हैं।

    समाचारों की नई सुर्खियों के मुताबिक, भारतीय नौसेना हर 40 दिनों में एक नया स्वदेशी जहाज लॉन्च कर रही है, जो सेक्टर को 2030 तक वैश्विक टॉप-10 में शुमार करने का लक्ष्य दे रहा है। आंध्र प्रदेश में विजाग-स्रीकाकुलम कॉरिडोर पर नौसेना सिस्टम और शिपबिल्डिंग क्लस्टर की योजना भी इन कंपनियों के लिए नई संभावनाएं खोल रही हैं। आइए, इन तीनों पर नजर डालें, जो लंबे समय के ऑर्डर बुक और मजबूत वित्तीय प्रदर्शन के दम पर निवेशकों का ध्यान खींच रही हैं।

    1. गार्डन रीच शिपबिल्डर्स: छोटे जहाजों का बड़ा खिलाड़ी

    भारत के प्रमुख जहाज निर्माण कंपनियों में शुमार गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (जीआरएसई) कोचिन में स्थित है और भारतीय नौसेना व कोस्ट गार्ड के लिए युद्धपोत बनाने वाली पहली कंपनी है। इसका मुख्य कारोबार विनिर्माण और सेवाओं पर केंद्रित है, जो कुल टर्नओवर का 93.8% हिस्सा बनाता है। जीआरएसई छोटे जहाजों को बनाने में माहिर है। यह फ्रिगेट साइज के युद्धपोत तो बनाती ही है, पर नौसेना और कोस्ट गार्ड के लिए छोटे वेसल्स में इसकी ताकत है। अब तक इसने 111 युद्धपोत डिलीवर कर दिए हैं।

    31 मार्च 2025 तक कंपनी के पास 40 जहाज निर्माणाधीन थे। यह 30 एमएम नेवल सरफेस गन जैसी महत्वपूर्ण नौसेना तकनीकों पर भी काम कर रही है। श्रीलंका, मालदीव, मॉरीशस और सेशेल्स जैसे देशों के जहाजों की मरम्मत भी करती है, हालांकि मरम्मत सेगमेंट का रेवेन्यू योगदान महज 2.2% है। इंजीनियरिंग डिवीजन विविधीकरण पर फोकस्ड है, जो रेवेन्यू का 2.9% देता है। यहां पोर्टेबल ब्रिज और स्पेशलाइज्ड डेक मशीनरी जैसे उत्पाद बनते हैं। बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन और नेशनल हाईवे अथॉरिटी के साथ साझेदारी से यह मजबूत हो रहा है।

    Mazagon Dock

    भविष्य की दृष्टि से, प्रबंधन का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2026 के अंत तक ऑर्डर बुक 202 अरब रुपये से बढ़कर 500 अरब रुपये पार कर जाएगी, जो 10 साल की रेवेन्यू देने का दम रखती है।

    हाल ही में नेक्स्ट जेनरेशन कॉर्वेट कॉन्ट्रैक्ट (250 अरब रुपये) के लिए सबसे कम बोली लगाई है, जिसके साइनिंग में 3-4 महीने बाकी हैं। अगर पी7 ब्रावो कॉन्ट्रैक्ट भी मिला, तो 15-18 महीनों में ऑर्डर बुक 750 अरब रुपये तक पहुंच सकती है। डिफेंस एक्विजिशन काउंसिल (डीएसी) ने सात हाई-वैल्यू प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दी है, कुल 1.5 ट्रिलियन रुपये के थे। जिनमें पी7 ब्रावो (700 अरब), माइन काउंटरमेजर वेसल्स (320 अरब) और लैंडिंग प्लेटफॉर्म डॉक्स (350 अरब) शामिल हैं।

    कॉमर्शियल और निर्यात क्षेत्र में भी कदम

    यह जर्मन क्लाइंट के लिए आठ मल्टी-पर्पस वेसल्स (108 मिलियन डॉलर) का ऑर्डर मिल चुका है, जो यूरोपीय मार्केट में पहला कदम है। विस्तार की योजना में कोलकाता के बाहर 2028 तक ग्रीनफील्ड शिपयार्ड स्थापित करना शामिल है। रिफिट-रिपेयर बिजनेस को मजबूत करने के साथ-साथ ऑटोनॉमस वेसल्स और ग्रीन वेसल्स पर फोकस है। इनमें 'धेव' इलेक्ट्रिक फेरी और 13 हाइब्रिड फेरियां पश्चिम बंगाल सरकार के लिए शामिल हैं। हाइड्रोजन फ्यूल सेल फेरी और हाइब्रिड टग्स पर काम चल रहा है।

     

    वित्तीय मोर्चे पर, वित्त वर्ष 2026 के पहले हाफ में रेवेन्यू 38% बढ़कर 29.8 अरब रुपये और नेट प्रॉफिट 48% उछलकर 2.7 अरब रुपये हो गया। ऑपरेटिंग मार्जिन 300 बीपीएस बढ़कर 9% पहुंचा, जो कंपनी की 30% ऐतिहासिक ग्रोथ से बेहतर है। हाल ही में 14 नवंबर को आंध्र प्रदेश मैरीटाइम बोर्ड के साथ ग्रीनफील्ड शिपयार्ड प्रोजेक्ट पर गैर-बाध्यकारी एमओयू साइन किया गया।

    2. कोचिन शिपयार्ड: बड़े जहाजों का फ्लैगशिप बिल्डर

    केरल के कोचिन में स्थित कोचिन शिपयार्ड भारत के समुद्री क्षेत्र की प्रमुख कंपनी है, जो जहाज निर्माण (58.8%) और मरम्मत (42.2%) पर फोकस्ड है। 50 साल से ज्यादा के अनुभव वाली यह कंपनी भारत के पहले स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर से लेकर हाइब्रिड-इलेक्ट्रिक वेसल्स तक बना चुकी है। पोर्टफोलियो में एयरक्राफ्ट कैरियर, टेक्नोलॉजी डेमो वेसल्स, हाइड्रोग्राफिक सर्वे वेसल्स (डिफेंस) और ऑयल टैंकर-पैसेंजर वेसल्स (कॉमर्शियल) शामिल हैं।

    Mazagon Dock (2)

    'क्रूज 2030 2.0' रोडमैप के तहत कंपनी 2031 तक 10-12% की ग्रोथ रेट से टर्नओवर दोगुना करने का लक्ष्य रखे हुए है। वित्त वर्ष 2026 के पहले क्वार्टर में ऑर्डर बुक 211 अरब रुपये था, जो 4 साल की बात करता है। पाइपलाइन में 2.8 ट्रिलियन रुपये के शिपबिल्डिंग ऑर्डर हैं, जिनमें डिफेंस में 2.2 ट्रिलियन (माइन काउंटरमेजर, पी-17 ब्रावो, लैंडिंग प्लेटफॉर्म डॉक) और कमर्शियल में 650 अरब (घरेलू 250 अरब, अंतरराष्ट्रीय 400 अरब) शामिल है।


    कंपनी दक्षिण कोरिया की एचडी केएसओई के साथ मर्चेंट शिपबिल्डिंग पर लॉन्ग-टर्म एसोसिएशन से तकनीकी विशेषज्ञता साझा करने और क्षमता बढ़ाने पर फोकस कर रही है, जो 3-5 साल में अच्छा फायदा दे सकता है। कोचिन और वदिनार में वर्ल्ड-क्लास शिप रिपेयर क्लस्टर्स के लिए एमओयू साइन किया गया, जो 1.5-2 साल में पूरा होगा। मर्स्क के साथ शिप रिपेयर और स्किलिंग पर एमओयू भी है।

    वित्तीय रूप से, पहले हाफ में रेवेन्यू 6.7% बढ़कर 19.2 अरब रुपये हुआ, लेकिन नेट प्रॉफिट 22.7% गिरकर 2.9 अरब रुपये रह गया है। इसके पीछे की वजह पिछले साल के हाई-मार्जिन एयरक्राफ्ट कैरियर रिपेयर प्रोजेक्ट्स (आईएनएस विक्रांत और विक्रमादित्य) की कमी है। 12 नवंबर को कंपनी ने 4 रुपये प्रति शेयर का अंतरिम डिविडेंड (80%) घोषित किया जिसकी रिकॉर्ड डेट 18 नवंबर है। हालिया क्यू2 रिजल्ट्स के बाद शेयरों में 8% की गिरावट आई, लेकिन 13 नवंबर को 1,693 रुपये पर ट्रेडिंग हो रही थी।

    3. स्वान डिफेंस: विशाल क्षमता वाला नया चेहरा

    गुजरात के पिपावाव पोर्ट पर स्थित स्वान डिफेंस (पहले रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग) भारत का सबसे बड़ा इंटीग्रेटेड शिपबिल्डिंग और रिपेयर फैसिलिटी चलाती है। एनसीएलटी रिजॉल्यूशन के बाद हेजल इंफ्रा और स्वान एनर्जी द्वारा अधिग्रहित, यह जहाज निर्माण, मरम्मत, रिग्स रिफिटिंग और हेवी इंजीनियरिंग में सक्रिय है।

    इसकी ताकत है 662 मीटर लंबे ड्राई डॉक में, जो बड़े जहाजों को एक साथ संभाल सकता है। सालाना फैब्रिकेशन क्षमता 144,000 मीट्रिक टन है, और 300 टन तक के मॉड्यूलर ब्लॉक्स बना सकती है। अर्ध-स्वचालित टीटीएस पैनल प्रोडक्शन लाइन जैसी एडवांस्ड मशीनरी से लैस। यह पहली निजी कंपनी थी जिसने नौसेना के लिए नेवल ऑफशोर पेट्रोल वेसल्स बनाने का लाइसेंस पाया है। कोस्ट गार्ड के रिफिट प्रोजेक्ट्स समय से पहले पूरे कर चुकी है। घरेलू-अंतरराष्ट्रीय डिजाइन फर्मों के साथ समझौते से तकनीकी क्षमता बढ़ा रही है।

    Mazagon Dock (3)

    हाल ही में 11 नवंबर को नॉर्वे की रेडेरिएट स्टेनर्सेन एएस के साथ 220 मिलियन डॉलर का लेटर ऑफ इंटेंट साइन किया। केमिकल टैंकर बनाने के लिए, जो मेथनॉल/एलएनजी फ्यूल कन्वर्जन और 5,000 किलोवाट तक बैटरी अपग्रेड के साथ फ्यूचर-रेडी हैं। हालांकि, अभी ऑपरेशंस नई शुरुआत में हैं, लेकिन संपत्ति आधार और प्रबंधन टीम से शिपबिल्डिंग बूम का फायदा मिल सकता है।

    वैल्युएशन: पहले से ही शेयरों में झलक रही आश

    इन कंपनियों के शेयर ऑर्डर बुक और भविष्य को ध्यान में रखते हुए ऊंचे स्तर पर ट्रेड कर रहे हैं। जीआरएसई और कोचिन उद्योग के औसत पी/ई से नीचे या ऊपर हैं, जबकि स्वान नई लिस्टिंग होने से वैल्यूएशन में शामिल नहीं।

    कंपनी मौजूदा P/E 5-ईयर मीडियन P/E इंडस्ट्री P/E
    गार्डन रीच 53.9 26.4 67.7
    कोचिन शिपयार्ड 59.8 22 47.3

    (सोर्स: स्क्रीनर)

    भारत का जहाज निर्माण चक्र अब नीतिगत समर्थन, मजबूत बैलेंस शीट्स और मल्टी-ईयर डिफेंस पाइपलाइन के दौर में है। मझगांव ने दिखा दिया कि लगातार क्रियान्वयन क्या कर सकता है। जीआरएसई, कोचिन और स्वान भी इसी लहर पर सवार हो रही हैं। उनके ऑर्डर बुक निवेशकों को आकर्षित कर रहे हैं, लेकिन मूल्यांकन बताते हैं कि आशावाद पहले से ही कीमतों में बसी हुई है। अगला चरण पाइपलाइन को डिलीवरी में बदलने पर निर्भर करेगा। क्या ये कंपनियां मझगांव की तरह 30 गुना की छलांग लगाएंगी? बाजार इंतजार कर रहा है।

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