क्या आपको भी नहीं मिल रहा है IPO Allotment? कहीं आप तो नहीं कर रहे हैं ये गलतियां
IPO allotment tips आईपीओ को Initial Public Offering भी कहा जाता है। कई बार ऐसा होता है कि हम किसी आईपीओ के लिए अप्लाई तो करते हैं लेकिन हमेशा ही हमारे हाथ कुछ नहीं लगता। चलिए जानते हैं कि आईपीओ की अलॉटमेंट कैसे की जाती है और इसे मिलने में दिक्कत कब आती है?
बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। किसी भी कंपनी को शेयर बाजार में प्रवेश करने से पहले प्राइमरी मार्केट में आईपीओ लॉन्च करने पड़ते हैं। प्राइमरी मार्केट में लेन-देन दो लोगों के बीच होता है। इनमें कंपनी और निवेशक शामिल होते हैं। कंपनी आईपीओ के जरिए अपने लिए फंड जुटाने का काम करती है।
कई बार ऐसा होता है कि हम आईपीओ के लिए अप्लाई तो करते हैं, लेकिन हमें हमेशा खाली हाथ लौटना पड़ता है। लेकिन ऐसा होता क्यों है? इसका कारण ओवरसब्सक्रिप्शन है।
क्या होता है ओवरसब्सक्रिप्शन?
ओवरसब्सक्रिप्शन की स्थिति तब बनती है, जब कंपनी ने जितने शेयर इश्यू किए हों, उससे ज्यादा लोग उसे खरीदना चाहें। ऐसे में ये कनफ्यूजन रहती है कि किसे शेयर्स दिए जाएं?
ऐसे में रजिस्ट्रार शेयर आवंटित करने के लिए लॉटरी प्रक्रिया का उपयोग करता है।
इसके जरिए ये कोशिश की जाती है कि किसी भी निवेशक के साथ भेदभाव ना हो।
उदाहरण से समझें पूरी प्रक्रिया
चलिए अब एक उदाहरण के जरिए समझते हैं कि कंपनी किस तरह से आईपीओ का अलॉटमेंट करती है। मान लेते हैं कि एक कंपनी ने आईपीओ लॉन्च किया है। इसके लिए 10 निवेशकों ने कट-ऑफ प्राइस पर आवेदन किया है।
इन निवेशकों ने लगभग 1 से 5 शेयर्स खरीदने की डिमांड रखी है। हालांकि कंपनी द्वारा अभी सिर्फ 29 शेयर्स ही इश्यू किए गए हैं। इस स्थिति को ओवरसब्सक्रिप्शन कहा जाता है।
अब रजिस्ट्रार लॉटरी प्रक्रिया के जरिए ये तय करेगा कि किन्हें ये शेयर्स अलॉट किए जाए। इसके तहत ये तय होता है कि निवेशक 4,5,6,7,8,1,2 को 1 शेयर्स अलॉट किए जाएंगे। बाकी के बचे लोगों को कुछ नहीं मिलेगा।
ये ध्यान रखें कि आप जब आईपीओ के तहत शेयर्स खरीद रहे हैं, तो उसे कट ऑफ प्राइस या उससे ज्यादा कीमत पर ही खरीदें। ऐसा ना करने पर आपको लॉटरी में ही नहीं रखा जाएगा।
शेयर और आईपीओ में अंतर?
कोई कंपनी डायरेक्ट Secondary Market में नहीं प्रवेश करती। उसे पहले प्राइमरी मार्केट में आईपीओ लॉन्च करने पड़ते हैं। ये आईपीओ एक तरह से शेयर्स ही हैं। जिसे निवेशकों द्वारा खरीदा जाता है। प्राइमरी मार्केट में निवेशक और कंपनी के बीच लेन-देन होता है। जिसके बाद यही शेयर स्टॉक एक्सचेंज बीएसई और एनएसई में लिस्ट हो जाते हैं और इनकी ट्रेडिंग होने लगती है।
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