सितंबर में कम रह सकती है महंगाई दर, फिलहाल पेट्रोल-डीजल की कीमतों में राहत मिलने की उम्मीद कम
आरबीआई को उम्मीद है कि आपूर्ति शृंखला में सुधार के कारण सितंबर में खुदरा मुद्रास्फीति काफी कम हो जाएगी। अगस्त में खुदरा महंगाई दर 6.83 फीसदी थी लेकिन जुलाई में बढ़कर 15 महीने के उच्चतम स्तर 7.44 फीसदी पर पहुंच गई। मुख्य रूप से सब्जियों की कीमतों में भारी बढ़ोतरी के कारण खुदरा महंगाई दर बढ़ी है। पढ़िए क्या है पूरी खबर।
नई दिल्ली, जेएनएन: आरबीआई का कहना है कि सप्लाई चेन दुरूस्त होने से सितंबर की खुदरा महंगाई दर में खासी कमी आ सकती है। अगस्त में खुदरा महंगाई दर 6.83 प्रतिशत थी जबकि जुलाई में यह दर 15 महीने के उच्चतम स्तर के साथ 7.44 प्रतिशत पर पहुंच गई थी।
इस वजह से महंगाई दर में हो रही थी बढ़ोतरी
मुख्य रूप से सब्जी के दाम में भारी बढ़ोतरी से खुदरा महंगाई दर में बढ़ोतरी हो रही थी। आरबीआई का अनुमान है कि सितंबर में खुदरा महंगाई दर अगस्त से कम रहेगी। क्योंकि टमाटर, प्याज व आलू के दाम में अगस्त माह की तुलना में गिरावट दिख रही है।
कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से चिंतित आरबीआई
दूसरी तरफ आरबीआई के मासिक बुलेटिन में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों को लेकर भी चिंता जाहिर की गई है।मंगलवार को ब्रेंट क्रूड की कीमत 95 डॉलर प्रति बैरल को पार कर गई जो कि पिछले साल नवंबर के बाद सबसे अधिक कीमत है और यह कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल तक जाने की आशंका है।
सऊदी अरब और रूस की तरफ से कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती के फैसले से कच्चे तेल की कीमत बढ़ रही है। भारत में भी इसका असर पेट्रोलियम कंपनियों पर दिखने लगा है।
सूत्रों के मुताबिक पेट्रोलियम कंपनियों का घाटे का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। हालांकि फिलहाल उनकी तरफ से पेट्रोल-डीजल की खुदरा कीमत में कोई बदलाव नहीं किया गया है।
पिछले महीने कम थी कच्चे तेल की कीमत
पिछले महीने तक कच्चे तेल की कीमतों को 75-80 डॉलर प्रति बैरल के आसपास देखते हुए पेट्रोलियम कंपनियों की तरफ से पेट्रोल-डीजल की खुदरा कीमतों में राहत देने का अनुमान लगाया जा रहा था। क्योंकि पिछले साल नवंबर के बाद से कच्चे तेल के दाम लगातार कम हो रहे थे।
दूसरी तरफ भारत रूस से काफी कम कीमत पर भारी मात्रा में कच्चे तेल की भी खरीदारी की थी।कच्चे तेल के दाम में हो रही तेजी से वैश्विक स्तर पर महंगाई और बढ़ने की आशंका पैदा हो गई है। विशेषज्ञों के मुताबिक रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से यूरोपीय देश पहले से ही ऊर्जा संकट झेल रहे हैं।
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