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    भारत ने गुपचुप तरीके से इन 4 मास्टरस्ट्रोक से कर दिया बड़ा खेला, दुनिया को कानोंकान खबर नहीं

    Updated: Sun, 16 Nov 2025 05:05 PM (IST)

    भारत में हो रहे व्यापक बदलावों जैसे तेल पर निर्भरता में कमी, चालू खाता घाटे में सुधार, जीसीसी का उदय और एफडीआई प्रवाह जैसे 4 प्रमुख कारकों ने भारत की बाहरी स्थिति को मजबूत किया है। अब भारत मंदी और तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से निपटने के लिए बेहतर स्थिति में है, क्योंकि इसने अपनी आर्थिक बुनियाद (India's Economic Transformation) को मजबूत किया है। यह भारत की खामोश आर्थिक क्रांति है।

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    नई दिल्ली। एक समय था जब भारत की अर्थव्यवस्था सिर्फ 1 ट्रिलियन डॉलर, एक महीने का तेल बिल 140 अरब डॉलर होता था, जो कि GDP का पूरा 14% था। दुनिया हंस रही थी और कह रही थी ये तो डूब जाएगा। लेकिन एक बड़े जाने-माने आर्थिक विशेषज्ञ ने बताया कि तेल पर निर्भरता कम करने और चालू खाता घाटे में सुधार से लेकर वैश्विक क्षमता केंद्रों (GCC) के उदय और संरचनात्मक FDI प्रवाह तक में बहुत बड़ा बदलाव हो चुका है।

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    मॉर्गन स्टेनली के प्रबंध निदेशक और मुख्य भारत इक्विटी रणनीतिकार, रिधम देसाई बताते हैं कि भारत की बाहरी स्थिति कैसे मजबूत हुई है और यह बदलाव भारत की दीर्घकालिक विकास कहानी को कैसे नया रूप दे सकता है? उन्होंने बताया कि भारत के व्यापक आर्थिक बदलाव (India's Economic Transformation) ने सालों की सतर्कता के बाद उन्हें भारत के प्रति आशावादी बना दिया है।

    यह बदलाव वो नहीं है, जो लोग सोच रहे हैं। यह बदलाव क्या हैं आइए, इसे बहुत आसान भाषा में समझते हैं।

    चालू खाता घाटा क्या है? बचत बनाम निवेश का अंतर



    भारत में हमेशा से निवेश (Investment), बचत (Saving) से ज्यादा रहा है। यानी हम जितना पैसा बचाते हैं, उससे ज्यादा खर्च करते हैं। देश में फैक्ट्रियां बनाने, सड़कें बनाने, बिजली प्लांट लगाने में खर्च होता है। इस खर्च को पूरा करने के लिए हमें विदेश से पैसा लाना पड़ता है। इसे हम चालू खाता घाटा (CAD) कहते हैं। पहले यह घाटा GDP का 2.5% से 5% तक रहता था।

     

    उन्होंने आगे बताया कि पहले की समस्या तेल का बोझ होता था। साल 2008 के समय भारत की अर्थव्यवस्था केवल 1 ट्रिलियन डॉलर की थी। तब हम 90 करोड़ बैरल तेल आयात करते थे। तेल का दाम 148 डॉलर प्रति बैरल पहुंचा। यानी 148 × 900 करोड़ = 140 अरब डॉलर (लगभग 14 लाख करोड़ रुपये) तेल पर खर्च था। जो कि हमारे GDP का 14% करीब था। इतना बड़ा बोझ उठाना बड़ा मुश्किल था। यही नतीजा रहा रुपया गिरा, ब्याज दरें बढ़ीं और शेयर बाजार धड़ाम हो गया। और यह सब तब हुआ जब भारत का वैश्विक वित्तीय संकट से कोई लेना-देना नहीं था।


    हमारे बैंक मजबूत होने के बावजूद भी हम दुनिया के दूसरे सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले बाजार बने। ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि विदेशी निवेशक भाग गए। अब सवाल है कि विदेशी पैसा कहां से आता था? बात पहले की करें तो यह FDI (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) से आता था जो बहुत कम था। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत में फैक्ट्री लगाना बहुत मुश्किल था। शेयर बाजार से पैसा FII के जरिए आता था, लेकिन अमेरिका में मंदी आने पर गायब हो जाता था। यानी जब हमें सबसे ज्यादा जरूरत होती, पैसा भाग जाता।

    अब क्या बदला? (पिछले 10 साल में)

    1. तेल पर निर्भरता 60% हुई है कम?

     

    साल 2008 के समय भारत की अर्थव्यवस्था केवल 1 ट्रिलियन डॉलर की थी। तब हम 90 करोड़ बैरल तेल आयात करते थे। तेल का दाम 148 डॉलर प्रति बैरल पहुचा। यानी 148 × 900 करोड़ = 140 अरब डॉलर (लगभग 14 लाख करोड़ रुपये) तेल पर खर्च था। जो कि हमारे GDP का 14% करीब था। इतना बड़ा बोझ उठाना बड़ा मुश्किल था। यही नतीजा रहा रुपया गिरा, ब्याज दरें बढ़ीं और शेयर बाजार धड़ाम हो गया। 

    साल अर्थव्यवस्था तेल आयात (नेट) तेल का दाम GDP का %
    2008 1 ट्रिलियन डॉलर 90 करोड़ बैरल 140 अरब डॉलर 14%
    2025 4 ट्रिलियन डॉलर 1.7 अरब बैरल 325-330 अरब डॉलर केवल 6%

    यानी अब तेल की कीमत 140 डॉलर हो जाए, तब भी हमारे लिए कोई बड़ी समस्या नहीं है। हमारी अर्थव्यवस्था 4 गुना बढ़ी, लेकिन तेल आयात केवल 80% बढ़ा है। यह साइलेंट रेवोल्यूशन है।

    2. नया निर्यात इंजन

    GCC (ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स) कोरोना के समय बड़ा बदलाव हुआ? विदेशी कंपनियों के CEO को पता चला कि कर्मचारी वर्क फ्रॉम होम काम करते हैं, तो उसने सोचा कि अगर घर से काम करना है, तो फ्लोरिडा की बजाय मुंबई से ही क्यों न काम करा लिया जाए? क्योंकि यहां टैलेंट सस्ता है, अच्छा है और ढेर सारा है।

    पिछले 12 महीनों में 70 अरब डॉलर का सेवा निर्यात होने वाला है और अगले 4-5 साल में दोगुना होने की संभावना है। यह IT सर्विसेज से अलग है और ये स्थायी है, जो मंदी में भी नहीं रुकेगा।

    नतीजा यह हुआ कि चालू खाता घाटा जो पहले 2.5–5% होता था वह अब केवल 0.5% (लगभग 20 अरब डॉलर) है। यह 20 अरब डॉलर वैश्विक बाजार में छुट्टा पैसा जैसा है।

    3. FDI भी अब आसान

    पहले विदेशी कंपनियां भारत में फैक्ट्री नहीं लगाती थीं और न ही खरीदती थीं। अब नई फैक्ट्रियां लगा रही हैं। FDI बढ़ रहा है। हम अब FII की भीड़ पर निर्भर नहीं हैं।

    भारत अब पहले जैसा नहीं

    2008 का भारत 2025 का भारत
    तेल पर 14% GDP का बोझ तेल पर केवल 6% का बोझ
    विदेशी पैसा भाग जाता था अब स्थायी FDI + GCC
    मंदी में डूब जाता था अब लचीलापन (रेजिलिएंस)
    चालू खाता घाटा: 5% अब: 0.5%

     

    यह बदलाव सरकार भी जोर-शोर से नहीं बता रही। लेकिन यह भारत की सबसे बड़ी आर्थिक जीत है। अगली बार जब दुनिया में मंदी आए, तेल का दाम बढ़े या अमेरिका छींके तो भारत को अब सर्दी नहीं लगेगी। हमने अपनी बुनियाद बदल दी है। यह भारत की खामोश क्रांति है।

     

    यह भी पढ़ें: 2025 में कैसे रहेगी भारत की इकोनॉमी, किन मोर्चों पर बढ़ने वाली है चुनौती?

     

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