अब रेलवे ट्रैक ही बनेगा बिजलीघर...मुफ्त में दौड़ेगी ट्रेन; भारतीय रेल की ऐतिहासिक उपलब्धि, देशभर में होगी लागू?
बनारस रेल इंजन कारखाना ने रेल पटरियों के बीच सोलर पैनल लगाकर बिजली बनाना शुरू कर दिया है। रेल मंत्रालय ने एक्स पर एक पोस्ट शेयर किया और लिखा कि भारतीय रेलवे ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। BLW ने रेलवे पटरियों के बीच भारत का पहला 70 मीटर लंबा रिमूवेबल सोलर पैनल सिस्टम स्थापित किया है जो ग्रीन और टिकाऊ रेल परिवहन की दिशा में एक कदम है।

नई दिल्ली। जरा सोचिए... जिस रेलवे ट्रैक पर ट्रेनें दौड़ती हैं, वहीं से बिजली भी बनने लगे तो? सुनने में अजीब है, लेकिन जल्द ही यह हकीकत होने वाला है। दरअसल, बनारस रेल इंजन कारखाना (Banaras Locomotive Works- BLW) ने रेल पटरियों के बीच सोलर पैनल लगाकर बिजली बनाना शुरू कर दिया है।
इस बात की जानकारी खुद रेल मंत्रालय ने दी। मंत्रालय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट शेयर किया, जिसमें सोलर पैनल वाले ट्रैक के ऊपर से इंजन दौड़ता दिख रहा है।
मंत्रालय ने पोस्ट में लिखा कि, "भारतीय रेलवे ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। बनारस लोकोमोटिव वर्क्स ने रेलवे पटरियों के बीच भारत का पहला 70 मीटर लंबा रिमूवेबल सोलर पैनल सिस्टम स्थापित किया है, जो ग्रीन और टिकाऊ रेल परिवहन की दिशा में एक कदम है।"
🚆 Indian Railways marks a historic first!
Banaras Locomotive Works, Varanasi commissioned India’s first 70m removable solar panel system (28 panels, 15KWp) between railway tracks—a step towards green and sustainable rail transport. pic.twitter.com/BCm2GTjk7O
— Ministry of Railways (@RailMinIndia) August 18, 2025
BLW ने 70 मीटर लंबे ट्रैक के हिस्से पर 28 सोलर पैनल लगाए हैं। इनसे रोजाना करीब 15 किलोवाट बिजली पैदा हो रही है। यह बिजली सीधे तौर पर इलेक्ट्रिक इंजन चलाने में, स्टेशन को रोशन करने में और सिग्नल सिस्टम को ऑपरेट करने में इस्तेमाल होगी।
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रेलवे का कहना है कि जब पटरी पर ही बिजली बनने लगेगी तो बाहर से बिजली खरीदने का खर्च काफी हद तक कम हो जाएगा। इसका मतलब है- सीधी बचत, और रेलवे होगा आत्मनिर्भर।
रिमूवेबल पैनल, प्लेट का वजन 32 KG
रेलवे अधिकारियों के मुताबिक, इन सोलर पैनलों को खास तरीके से डिज़ाइन किया गया है। इन्हें रबर पैड और एपॉक्सी एडहेसिव की मदद से पटरियों के बीच फिट किया गया है। ज़रूरत पड़ने पर कुछ ही घंटों में इन पैनलों को हटाया या दोबारा लगाया जा सकता है।
चूंकि ट्रैक पर नियमित अंतराल पर मेंटनेंस होता है, इसलिए पैनल को रिमूवेबल बनाया गया है। हर पैनल का साइज लगभग 2.2 मीटर × 1.1 मीटर है और वजन करीब 32 किलो है।
आत्मनिर्भर रेलवे की ओर बड़ा कदम
भारतीय रेल इस समय 100% विद्युतीकरण की दिशा में आगे बढ़ रही है। देशभर की सभी ट्रेनों को इलेक्ट्रिक इंजन से चलाने के लिए हर दिन करोड़ों रुपए की बिजली खरीदी जाती है।
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ऐसे में अगर पटरियों से ही बिजली बनने लगे तो यह खर्च काफी हद तक कम हो जाएगा। इतना ही नहीं, भविष्य में जब ज़्यादा बिजली बनने लगेगी तो रेलवे इसे ग्रिड में बेचकर अतिरिक्त कमाई भी कर सकेगा।
कार्बन उत्सर्जन को कम करेगा प्रयोग
रेलवे का यह प्रयोग न केवल पैसे की बचत करेगा, बल्कि पर्यावरण के लिहाज़ से भी फायदेमंद होगा। सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन कार्बन उत्सर्जन को कम करेगा और रेलवे को और अधिक "ग्रीन" बनाएगा। यह मॉडल सफल हुआ तो पूरे देश में इसे बड़े पैमाने पर लागू किया जा सकता है।
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