TATA को पीछे छोड़ Indigo कैसे बनी सबसे बड़ी मुनाफे वाली Airline, IIT कानपुर के लड़के ने की थी इसकी शुरुआत
Indigo के को-फाउंडर राकेश गंगवाल ने अपनी कुछ हिस्सेदारी बेच दी। इस खबर के बाद InterGlobe Aviation Limited के शेयर आज 4 फीसदी से अधिक गिरे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इंडिगो ने अपनी पहली उड़ान 2006 में भरी थी और 4 साल में ही घरेलू बाजार में इसने 17.3% हिस्सेदारी हासिल कर ली थी
नई दिल्ली। दूर की यात्रा करने के लिए अक्सर हम लोग हवाई जहाज का सहारा लेते है। भारत में कई कंपनियां है जो हवाई यात्रा की सर्विस देती है। लेकिन वर्तमान दौर में एक नाम सबसे ज्यादा प्रचलित है। और ये नाम है Indigo का। एक समय इस कंपनी का भारत में नामोनिशान नहीं थी। लेकिन आज ये भारत की सबसे बड़ी बड़ी और सबसे ज्यादा मुनाफे वाली कंपनी बन गई है।
इस समय इंडिगो चर्चा में है। कारण हैं कि इसके को-फाउंडर राकेश गंगवाल और उनका परिवार अपनी कुछ हिस्सेदारी बेच दी है। इससे पहले भी उन्होंने हिस्सेदारी बेची है। इस खबर के बाद हवाई जहाज कंपनियों के शेयरों में 28 अगस्त को गिरावट भी देखी गई। InterGlobe Aviation Limited के भी शेयर आज 4 फीसदी से अधिक गिरे। इन सबके बीच आज हम आपको इंडिगो की कहानी बताएंगे कि आखिर ये कैसे शुरू हुई।
ऐसे आया था Indigo को शुरू करने का Idea
1984 में कनाडा से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके भारत लौटे राहुल भाटिया पहले टेलीकॉम बिजनेस शुरू करना चाहते थे। लेकिन फिर वह पिता के ट्रैवल बिजनेस के साथ जुड़े और यहीं से उन्होंने देखा एयरलाइन कंपनी शुरू करने का सपना। इस सपने को साकार करने के लिए उन्होंने अपने पिता के बिजनेस को आगे बढ़ाया। एयरलाइनों और होटलों के साथ कई वैश्विक साझेदारियां की। 2004 में एयरलाइन लाइसेंस मिलने के बाद उन्होंने इंडिगो की पैरेंट कंपनी InterGlobe Aviation Limited की शुरुआत की।
इन सबके बीच भाटिया को समझ आ चुका था कि बिना किसी अनुभवी बंदे के वह इस बिजनेस को आगे नहीं बढ़ा सकते थे। उन्हें एविएशन कंपनी के लिए ऐसे दिमाग की जरूरत थी जिसे इस क्षेत्र में पहले से अनुभव हो। ये अनुभव था IIT Kanpur से पढ़े राकेश गंगवाल के पास। राकेश अमेरिका में यूनाइटेड एयरलाइंस में नौकरी कर रहे थे।
नहीं मान रहे थे राकेश गंगवाल
जिस समय में राहुल और राकेश की मुलाकात हुई थी उस समय भारतीय विमानन उद्योग कठिनाइयों से गुजर रहा था। गंगवाल पहले से ही भारतीय विमानन बाजार की चुनौतियों से घबराए हुए थे। भारत में यह एक अपवाद था, क्योंकि उस समय एयरलाइनों का कब्रिस्तान बन चुका था और अधिकतर एयरलाइन 5 साल के भीतर ही बंद हो गईं। हालांकि, बाद में वह किसी तरह मान गए।
एक बाजार का दूसरा एयरलाइन के कामकाज का जादूगर
राहुल भाटिया को भारतीय विमानन बाजार का आइडिया था तो राकेश को एयरलाइन के ऑपरेशन का। दोनों ने मजबूती के साथ कदम रखा और इतिहास रच दिया। विमानन लाइसेंस मिलने के बाद दोनों के सामने सबसे बड़ी चुनौती लॉन्चिंग को लेकर थी। 2005 में इंडिगो ने 100 एयरबस विमानों की खरीद का ऑर्डर दे दिया।
100 एयरबस विमानों की खरीदारी की, जो किसी भी एयरलाइन के लिए एक बड़ा ऑर्डर था। इंडिगो ने यह सौदा इसलिए किया क्योंकि विमान निर्माता कंपनी एयरबस का प्रबंधन गंगवाल की मौजूदगी से संतुष्ट था। विशेषज्ञों का कहना है कि गंगवाल की जोखिम उठाने और सफल सौदे करने की क्षमता इंडिगो के पहले 100 विमानों के ऑर्डर में झलकती है, जो रणनीतिक और वित्तीय दोनों ही लिहाज से क्रांतिकारी साबित हुआ।
2006 में इंडिगो ने भरी पहली उड़ान
4 अगस्त 2006 को इंडिगो ने पहली उड़ान नई दिल्ली से इंफाल के लिए भरी और तब से लेकर आज तर यह सिलसिला जारी है। दो दशक से भी कम समय में, दोनों ने भारतीय विमानन उद्योग की दिशा और दशा बदल दी। सालों से स्थापित कंपनियों को पीछे छोड़कर इंडिगो बहुत कम ही समय में भारत की सबसे बड़ी और सबसे मुनाफे वाली कंपनी बन गई।
बन गई भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन कंपनी
लॉन्च के 4 साल बाद ही यानी 2010 में, इंडिगो ने 17.3% घरेलू बाजार हिस्सेदारी हासिल कर ली थी और एयर इंडिया को तीसरे स्थान पर ला दिया था। 2012 में, इंडिगो 27% बाजार हिस्सेदारी हासिल करके भारत की सबसे बड़ी और एकमात्र लाभदायक घरेलू एयरलाइन बन गई।
DGCA के आंकड़ों के अनुसार, जुलाई 2025 में इंडिगो एयरलाइन ने 82.15 लाख घरेलू यात्रियों को सेवाएं दी, जिससे उसकी बाजार हिस्सेदारी 65.2 प्रतिशत हो गई। जनवरी-जुलाई की अवधि में, इंडिगो की संचयी बाजार हिस्सेदारी 64.4 प्रतिशत रही, जो एयर इंडिया समूह की 26.7 प्रतिशत हिस्सेदारी से काफी आगे थी। एयर इंडिया टाटा की है। वर्तमान में Indigo का मार्केट कैप 2,33,125.31 लाख करोड़ रुपये का है।
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