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    NSE Story: कैसे बना देश का सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज, BSE के होते क्यों पड़ी इसकी जरुरत, दिलचस्प है कहानी

    Updated: Sat, 27 Sep 2025 07:45 PM (IST)

    90 के दशक में फेरवानी समिति की सिफारिश के आधार पर सरकार ने एक अत्याधुनिक राष्ट्रव्यापी एक्सचेंज स्थापित करने पर विचार किया और इसकी जिम्मेदारी 5 लोगों की अहम टीम को दी गई। डेढ़ साल के अंदर 3 नवंबर 1994 को दीवाली की संध्या पर मुहूर्त ट्रेडिंग के साथ देश का पहला स्वचलित एक्सचेंज नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ट्रेडिंग के लिए लाइव हो गया।

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    नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ने 3 नवंबर 1994 को कामकाज करना शुरू किया।

    नई दिल्ली। एक जमाना था जब शेयरों में निवेश और ट्रेडिंग करना आसान नहीं हुआ करता था। 90 के दशक के शुरुआती दौर में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (Bombay Stock Exchange) की पुरानी तस्वीरें और वीडियो फुटेज, जब देखने को मिलती है तो लगता है कि वाकई उस समय में शेयर खरीदना बड़ा मुश्किल काम था। क्योंकि, घर बैठे ऑनलाइन स्टॉक खरीदने नहीं जा सकते थे। आमतौर पर शेयर खरीदने के लिए ब्रोकर्स के पास जाना पड़ता था या उसे फोन लगाना होता था। उस दौर में आज जैसी सुविधा नहीं थी कि ब्रोकर का मोबाइल ऐप ओपन किया, और किसी भी कंपनी के स्टॉक एक क्लिक के साथ खरीद लिए। स्टॉक मार्केट में हमें आज जो सुविधाएं मिल रही हैं, उसकी कल्पना 34 साल पहले किसी ने नहीं की थी।

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    1990 के दौर में शेयर बाजार बोले तो बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और बीएसई के बच्चन के तौर पर हर्षद मेहता को पहचाना जाता था। यह वह समय था जब एकाएक देश की बड़ी आबादी शेयरों में निवेश के लिए आकर्षित हुई। क्योंकि, हर्षद मेहता के वक्त में शेयर बाजार की तेजी और मिलने वाले रिटर्न से आम निवेशकों को हैरान कर दिया था। हालांकि, बुल मार्केट का यह बुलबुला हर्षद मेहता घोटाले के सामने आने के बाद फूटा और लाखों लोग बर्बाद हुए।

    यह घटना भारतीय शेयर बाजार के लिए एक बड़ा सदमा थी लेकिन यहीं से मार्केट में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए बड़े फैसले लिए गए और सुधारों पर काम शुरू हुआ। इसी कड़ी में जो एक अहम निर्णय लिया गया वह था 'नेशनल स्टॉक एक्सचेंज' की स्थापना का, जिसे देश और दुनिया में आज NSE के नाम से जाना जाता है। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ने भारत के परंपरागत शेयर बाजार को तकनीक के जरिए नई पहचान दी। एनएसई के एमडी व सीईओ आशीष चौहान के जीवन पर लिखी गई बुक 'स्थितप्रज्ञ' में उन्होंने नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की जरुरत से लेकर स्थापना की पूरी कहानी बताई है।

    हर्षद मेहता घोटाले से शुरू हुआ NSE का सिलसिला

    90 के दशक की शुरुआत में बीएसई में एक समस्या थी कि एक्सचेंज के कुछ सदस्य स्टॉक ब्रोकर, अपने ग्राहकों के साथ अनुचित व्यवहार में शामिल थे व उन्हें धोखा दे रहे थे। इस तरह के अनुचित लेनदेन स्टॉक ब्रोकर्स द्वारा संचालित सभी स्टॉक एक्सचेंज पर देखने को मिले थे। हर्षद मेहता घोटाले के बाद 1991-92 में स्टॉक एक्सचेंज में दलालों व अंपायरों के रूप में काम करने वालों के बीच हितों का टकराव स्पष्ट हो गया था। इसके बाद सरकार को कुछ कदम उठाने पड़े।

    इस मामले में फेरवानी समिति की सिफारिशों से समाधान निकला, जिसने एक नया एक्सचेंज स्थापित करने की सलाह दी और कहा गया कि इस एक्सचेंज में स्टॉक ब्रोकर मैनेजमेंट का हिस्सा नहीं होंगे। क्योंकि, यह प्रोफेशनल द्वारा संचालित किए जाने वाला मॉडल एक्सचेंज होगा।

    फेरवानी समिति की सिफारिशों के आधार पर केंद्र सरकार ने अत्याधुनिक कंप्यूटर टेक्नोलॉजी का उपयोग करते हुए एक राष्ट्रव्यापी एक्सचेंज स्थापित करने का विचार किया। इस आधुनिक स्टॉक एक्सचेंज को स्थापित करने के लिए IDBI को प्रमुख संगठन के रूप में चुना गया।

    5 लोगों के कंधों पर NSE के निर्माण का जिम्मा

    भारत में ऑनलाइन ट्रेडिंग की परिकल्पना को नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ने साकार किया। आज मोबाइल ऐप या लैपटॉप पर घर बैठे शेयरों की खरीदी-बिक्री की सुविधा नेशलन स्टॉक एक्सचेंज की देन है। इसके पीछे उन 5 लोगों का बड़ा हाथ है, जिन्हें एनएसई को स्थापित करने के लिए चुना गया था। इनमें रवि नारायण, राघवन पुथ्रन, के कुमार, चित्रा रामकृष्ण और आशीष कुमार चौहान (एनएसई के मौजूदा एमडी व सीईओ) शामिल रहे। इसके अलावा, आर एच पाटिल और एसएस नाडकर्णी को भी 1992 में आईडीबीआई द्वारा इसके लिए प्रतिनियुक्त किया गया था।

    चैलेंजिंग था अत्याधुनिक एक्सचेंज तैयार करना

    एनएसई सीईओ आशीष चौहान ने बुक में बताया कि आज से 34 साल पहले कंप्यूटराइज्ड व तकनीक से लैस एक्सचेंज का निर्माण काफी मुश्किल था। क्योंकि, उस जमाने में इंटरनेट की पहुंच और दूरसंचार के साधन बहुत सीमित थे। आशीष चौहान के अनुसार, नया एक्सचेंज स्थापित करने के लिए पहला काम था कि पट्टे पर ली गई लाइन के माध्यम से आंतरिक व बाहरी दूरसंचार नेटवर्क स्थापित किया जाए। लेकिन, उस समय पट्टे की लाइन बहुत महंगी हुआ करती थी। मुंबई में 64kbps की एक लाइन के लिए वार्षिक किराया 4 लाख रुपये था।

    आशीष चौहान ने बताया कि एनएसई को एक अत्याधुनिक स्टॉक एक्सचेंज के रूप में स्थापित करने की पहल से देश में पूरी तस्वीर बदलने की संभावना थी। इसी कड़ी में मैंने सैटेलाइट कनेक्टिविटी का एक नया विचार रखा। हालांकि, उस समय सैटेलाइट का इस्तेमाल सिर्फ रिसर्च से जुड़े कार्यों के लिए किया जाता था, व्यावसायिक संचार के लिए नहीं होता था। आशीष चौहान ने कहा, "मेरा मानना था कि अगर एनएसई में सैटेलाइट कनेक्टिविटी लग जाएगी तो पूरा देश आपस में जुड़ जाएगा।"

    फिर आया 3 नवंबर 1994 का वो दिन

    इस तरह एनएसई को अत्यानुधिक एक्सचेंज बनाने के लिए प्रयास जारी रहे और 3 नवंबर 1994 का वह दिन आया, जब दीवाली की संध्या पर मुहूर्त ट्रेडिंग के साथ देश का पहला स्वचलित एक्सचेंज 'नेशनल स्टॉक एक्सचेंज' ट्रेडिंग के लिए लाइव हो गया। हालांकि, डेट मार्केट के लिए एनएसई ने पहले ही काम करना शुरू कर दिया, लेकिन इक्विटी सेगमेंट में कारोबार 3 नवंबर 1994 से शुरू हुआ।

    बीएसई की तुलना में एनएसई पर शुरुआत में सौदे कम होते थे लेकिन धीरे-धीरे यह संख्या बढ़ती गई। बीएसई और रिलायंस के बीच हुआ विवाद, एनएसई के लिए एक अहम मोड़ साबित हुआ। क्योंकि, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज पर रिलायंस के शेयरों की लिस्टिंग से एक्सचेंज पर ट्रेड की संख्या कई गुना बढ़ गई।

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    आज की तारीख में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ़ इंडिया लिमिटेड, बाजार पूंजीकरण के हिसाब से दुनिया का 5वाँ सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज है। वहीं, कॉन्ट्रेक्ट की संख्या के लिहाज से दुनिया का सबसे बड़ा डेरिवेटिव एक्सचेंज है।

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