Yamuna Expressway बनाने वाली JP Associates कैसे हुई दिवालिया, आखिर गौड़ परिवार से कहां हुई चूक? बिका साम्राज्य
JP Associates की नई मालिक अनिल अग्रवाल की वेदांता होगी। Vedanta ने जेपी को खरीदने के लिए बोली जीत ली है। वेदांता ने जेपी को खरीदने के लिए 17 हजार करोड़ रुपये की बोली लगाई। ये तो हो गई जेपी के बिकने की बात। लेकिन जेपी का उदय कैसे हुआ और जिस कंपनी की एक समय पूरे उत्तर भारत में तूती बोलती थी आखिर उसका सूरज अस्त कैसे हुआ?

नई दिल्ली। आज से 15 साल पहले उत्तर भारत में एक नाम बहुत सुना जाता था। वो नाम था जयप्रकाश एसोसिएट्स यानी जेपी (JP)। ये नाम नहीं एक ब्रांड था। इस ब्रांड को कभी भारत का राजा कहा जाता था। रियल एस्टेट क्षेत्र में एक प्रमुख कंपनी मानी जाने वाली जयप्रकाश एसोसिएट्स 2000 के दशक की शुरुआत में आई तेजी की महत्वाकांक्षा का पर्याय बन गई थी।
सीमेंट और बिजली से लेकर रियल एस्टेट और निर्माण तक, कंपनी ने तेजी से विस्तार किया और प्रमुख परियोजनाओं और भारत के विकास की कहानी पर सवार रही। लेकिन अब यह दिवालिया हो गई है और बिक चुकी है। 5 सितंबर को खबर आई कि वेदांता समूह ने JP Associates को खरीदने की बोली जीत ली है। Vedanta ने यह बोली 17,000 करोड़ रुपये में जीती। इस रेस में अदाणी भी थे, लेकिन वह पीछे रह गए।
जेपी तो बिक गई है लेकिन कहानी जानेंगे जेपी साम्राज्य के उदय से अस्त होने की। हम जानेंगे कि यमुना एक्सप्रेस वे, बुद्धा सर्किट जैसे विशाल इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने वाली JP एसोसिएट कैसे दिवालिया हुई? गौड़ परिवार से कहां हुई चूक? आपके मन भी में सवाल उठ रहे होंगे। इन सभी सवालों का जवाब जानेंगे। साथ ही यह भी जानेंगे कि कैसे JP ग्रुप की शुरुआत हुई थी। और कैसे जयप्रकाश गौड़ (JP Group Founder Jaiprakash Gaur) ने इसकी शुरुआत की थी।
किसने शुरू किया JP Group?
जेपी समूह की शुरुआत जयप्रकाश गौड़ ने की थी। उनका जन्म 1931 में उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के एक छोटे से गांव में हुआ था। छोटे शहरों में अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने 1948 में थॉम्पसन कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया और 1950 में सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा प्राप्त किया (यह कॉलेज IIT Roorkee में परिवर्तित हो गया था, जिसे अब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कहा जाता है)।
सरकारी इंजीनियर थे जयप्रकाश गौड़
पढ़ाई पूरी करने के बाद गौड़ उत्तर प्रदेश के सिंचाई विभाग में शामिल हो गए और वहाँ 7 वर्षों तक कार्य किया। इस अवधि के दौरान प्राप्त अनुभव ने उन्हें विश्वास दिलाया कि यदि प्रमुख निर्माण परियोजनाएँ, विशेष रूप से नदी-घाटी और जलविद्युत परियोजनाएँ, गुणवत्ता, तकनीक, समय और लागत के संदर्भ में कुशलतापूर्वक संचालित की जा सके, तो यह भारत के अति आवश्यक बुनियादी ढांचे के निर्माण में उत्प्रेरक का काम करेंगी।
10 हजार रुपये से शुरू किया बिजनेस
साल 1979 था। बुलंदशहर के एक सिविल इंजीनियर जयप्रकाश गौड़ ने एक विजन और कुछ निर्माण ठेकों के साथ शुरुआत की थी। सड़कों और बांधों से लेकर ताप विद्युत और जल विद्युत संयंत्रों तक, उनकी कंपनी, जयप्रकाश एसोसिएट्स ने बुनियादी ढांचे से कहीं अधिक बनाया। जयप्रकाश ने मात्र 10 हजार रुपये की छोटी सी पूंजी के साथ अपने बिजनेस की शुरुआत की।
हर जगह छाया JP ग्रुप
2000 के दशक की शुरुआत तक, जेपी समूह हर जगह छा गया था। बिजली (Power), सीमेंट (Cement), hospitality और सबसे महत्वपूर्ण रियल एस्टेट। हर सेक्टर में जेपी की तूती बोलती थी।
जेपी ने बनाया यमुना एक्सप्रेस वे
जेपी ग्रुप ने साल 2003 में एक बड़ा प्रोजेक्ट हासिल कया। यह प्रोजेक्ट था नोएडा और आगरा को जोड़ने का। यानी 165 किलोमीटर लंबा यमुना एक्सप्रेस वे (Yamuna Expressway) बनाने का। इस प्रोजेक्ट की कल्पना यूपी सरकार ने 2001 में की थी।
इस परियोजना को पूरा करने के लिए, उत्तर प्रदेश सरकार के एक सांविधिक निकाय, ताज एक्सप्रेस वे प्राधिकरण (TEA) का गठन 20 अप्रैल, 2001 को किया गया था। TEA को अब यमुना एक्सप्रेस वे प्राधिकरण (YEA) के रूप में जाना जाता है।
165 किलोमीटर लंबे यमुना एक्सप्रेस वे का विकास जेपी समूह द्वारा सार्वजनिक-निजी भागीदारी के तहत किया गया है। टीईए और जेआईएल (जयप्रकाश इंडस्ट्रीज लिमिटेड) के बीच रियायत समझौता 7 फरवरी, 2003 को हुआ था।
यमुना एक्सप्रेस वे परियोजना का औपचारिक उद्घाटन 9 अगस्त, 2012 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने किया और इसे जनता के लिए खोल दिया। परियोजना की कुल लागत लगभग 13,000 करोड़ रुपये थी।
यहां से खराब होने लगी जेपी ग्रुप की हालत
कहते हैं कि हर साम्राज्य की तरह, विस्तार की भी एक कीमत चुकानी पड़ी। जेपी ने बिजली संयंत्रों, रियल एस्टेट और बुनियादी ढाँचे के लिए एक साथ भारी कर्ज (JP Group Loan) लिया। उन्होंने खुद को आर्थिक और परिचालन दोनों ही दृष्टि से कमजोर कर दिया।
जेपी को पहला झटका 2008 का वैश्विक वित्तीय संकट पहला झटका था। लेकिन असली झटका 2011 के बाद लगा। खरीदारों ने परियोजनाओं में मंदी, निर्माण कार्य रोकने और संचार की कमी की शिकायत की। विश टाउन, जो कभी एक सपना था, 30,000 से अधिक घर खरीदारों के लिए एक दुःस्वप्न बन गया। फिर भी जेपी ने अपनी शुरुआत जारी रखी।
सीमेंट, बिजली, आतिथ्य और निर्माण क्षेत्र में कार्यरत विविध बुनियादी ढाँचा कंपनी जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (जेएएल) के खिलाफ पहली दिवालियापन याचिका 2018 में दायर की गई थी, जब आईसीआईसीआई बैंक ने पहली बार लोन वसूली के लिए न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटाया था। भारतीय स्टेट बैंक द्वारा भी 2022 में समाधान में तेजी लाने के लिए एक याचिका दायर करने के बाद मामले ने और तूल पकड़ लिया।
स्वीकार हुई दिवालियापन की याचिका
3 जून, 2024 को, जयप्रकाश एसोसिएट्स को झटका देते हुए, राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (NCLT) की इलाहाबाद पीठ ने कंपनी के खिलाफ आईसीआईसीआई बैंक और एसबीआई की दिवालियापन याचिका स्वीकार कर ली।
20 फरवरी, 2025 तक, जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (JAL) पर मूलधन और संचित ब्याज दोनों सहित कुल ₹55,493.43 करोड़ का बकाया ऋण (Loan) था।
अब वेदांता देंगे JP Associates को नई जिंदगी?
शुक्रवार को खबर आई कि वेदांता ग्रुप ने जेपी एसोसिएट्स को खरीदने की बोली जीत ली। ग्रुप ने करीब 17 हजार करोड़ रुपये की बोली लगाई थी। जेपी को खरीदने में अदाणी ग्रुप का नाम सबसे आगे था। लेकिन बाजी अनिल अग्रवाल की वेदांता ने मारी।
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