भारत में आठ लाख करोड़ की हलाल अर्थव्यवस्था, जानिए क्या है इसकी तेज रफ्तार का राज
देश में हलाल सर्टिफिकेशन के साथ कई प्रोडक्ट बेचे जा रहे हैं। कंपनी सालाना हलाल सर्टिफिकट पाने के लिए 60000 रुपये की राशि चुकाते हैं। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण द्वारा यह सर्टिफिकेट दिया जाता है। देश में हलाल अर्थव्यवस्था में तेजी देखने को मिली है। ऐसे में कई लोगों के मन में सवाल है कि आखिर देश में यह अर्थव्यवस्था में तेजी क्यों आ रही है।
जागरण रिसर्च, नई दिल्ली। अगर आपको चाय या नमकीन के पैकेट पर हलाल सर्टिफिकेट दिख जाए तो चौंकने की जरूरत नहीं है, भारत में ऐसे उत्पाद भी हलाल सर्टिफिकेशन के साथ बेचे जा रहे हैं, जिनका मांसाहारी उत्पादों से कोई लेना-देना नहीं है। कंपनियों को हलाल सर्टिफिकेट के लिए प्रति उत्पाद सालाना 60,000 रुपये चुकाने पड़ते हैं। यही वजह है कि भारत में हलाल अर्थव्यवस्था आठ लाख करोड़ रुपये को पार कर चुकी है।
इसके साथ ही हलाल सर्टिफिकेट जारी करने वाली एजेंसियों पर भी सवाल उठ रहे हैं। कुछ संगठनों का तर्क है कि जब देश में खाद्य उत्पादों के लिए भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआइ) खाने पीने के उत्पादों के लिए सर्टिफिकेट जारी कर रहा है तो निजी एजेंसियां कैसे ये काम कर रहीं हैं। आइये जानते हैं हलाल अर्थव्यवस्था की तेज रफ्तार का राज।
कहां से आया हलाल
हलाल का संबंध इस्लामिक दुनिया से है। हलाल और हराम अरबी भाषा के शब्द हैं। हलाल का अर्थ है वैध और हराम का अर्थ है अवैध। इस्लाम में जिन चीजों को खाने पीने, पहनने ओढ़ने, करने या न करने के बारे में बताया गया है, उनको दो श्रणियों में बांटा गया है। एक है हलाल और दूसरा है हराम। इस्लाम में हलाल की श्रेणी में बताई गई बातों या चीजों को करना जरूरी बताया गया है। वहीं हराम की श्रेणी में बताई गई चीजों को ना करने के लिए कहा गया है।
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कब शुरू हुआ हलाल सर्टिफिकेट
1974 में मांस के लिए हलाल सर्टिफिकेट जारी करने का चलन शुरू हुआ। मुस्लिम वर्ल्ड ने 1993 में हलाल सर्टिफकेट के दायरे का विस्तार किया और इसमें दूसरी चीजें भी शामिल की गईं। आज हलाल सिर्फ मांस तक सीमित नहीं है। शाकाहारी उत्पाद जैसे काफी, पनीर, सोया, चाय और नमकीन और दूसरे उत्पाद भी हलाल सर्टिफिकेट के साथ बाजार में बिक रहे हैं। इसका मकसद ग्राहकों को ये बताना है कि उत्पादों में
शराब, शुअर का मांस जैसी हराम चीजें शामिल नहीं हैं।
बिक्री बढ़ाने के लिए बाटे जा रहे हैं सर्टिफिकेट
आरोप है कि किसी खास उत्पाद की बिक्री बढ़ाने के लिए हलाल सर्टिफिकेट बांटे गए हैं। निजी कंपनियां शाकाहारी चीजों जैसे साबुन, मंजन, यहां तक कि कास्टमेटिक बनाने वाली कंपनियों को भी हलाल सर्टिफिकेट बांट रहीं है, जबकि इन चीजों के लिए हलाल सर्टिफिकेट की जरूरत ही नहीं होती है। कंपनियों पर भी दबाव बढ़ रहा है कि अगर वे अपने उत्पादों के लिए हलाल सर्टिफिकेट नहीं लेंगी तो उनको बिक्री के मोर्चे पर नुकसान उठाना पड़ सकता है।
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विश्व में बढ़ रहा हलाल अर्थव्यवस्था का दबदबा
भारत में हलाल अर्थव्यवस्था का लगभग 8 लाख करोड़ रुपये की है और ये हर दिन तेजी से बढ़ रही है। जानकारों का कहना है कि यहां हलाल अर्थव्यवस्था बड़ी चीज है। शरिया अनुपालक कंपनियां और हलाल फूड इंडेक्स की लोकप्रियता बढ़ रही है। इससे हलाल इंडस्ट्री में निवेश को बढ़ावा मिल रहा है। हलाल से मिलने वाला पैसा वापस सिस्टम में डाल कर और उत्पाद लाए जाते हैं। इस पैसे का इस्तेमाल इस्लामिक बैंकिंग और वित्तीय सेवाओं में हो रहा है। ये निश्चित तौर पर विश्व में इस्लाम को मजबूत करने में मदद कर रहा है। वैश्विक स्तर पर हलाल अर्थव्यवस्था 2 लाख करोड़ से अधिक की हो चुकी है और इसका आकार और बढ़ने की उम्मीद है।
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