H-1B वीजा लागू: ट्रंप ने उड़ाए TCS जैसी IT जाइंट्स के होश, इतना बढ़ाया बोझ; लाखों भारतीयों का सपना चकनाचूर!
H-1B visa fee 2025: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप प्रशासन ने H-1B वीजा वर्कर्स पर 1,00,000 डॉलर की भारी फीस लगाने का ऐलान किया है, जिसका असर TCS, इं ...और पढ़ें
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H-1B वीजा लागू: ट्रंप ने उड़ाए TCS जैसी IT जाइंट्स के होश, इतना बढ़ाया बोझ; खतरे में लाखों भारतीयों की नौकरी?
H-1B visa fee 2025: अमेरिका में काम करने का सपना देखने वाले हजारों आईटी प्रोफेशनल्स और उन्हें हायर करने वाली भारतीय आईटी कंपनियों पर बड़ा झटका लगा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप (donald trump) प्रशासन भारत समेत दुनियाभर से अमेरिका जाने वाले नए H-1B वीजा वर्कर्स पर 1,00,000 डॉलर (Trump H-1B $100k fee) यानी करीब 90 लाख रुपए की भारी फीस लगाने का ऐलान किया है।
इसका सीधा असर टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), इंफोसिस (Infosys) और कॉग्निजेंट (Cognizant) जैसी बड़ी आईटी कंपनियों पर पड़ने वाला है। क्योंकि H-1B से जुड़े सभी नियम 15 दिसंबर से लागू हो गए हैं।
एक्सपर्ट्स बोले- विदेशियों की भर्ती होगी सीमित
एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह फीस उन मल्टीनेशनल स्टाफिंग कंपनियों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाएगी, जो अमेरिकी कंपनियों के लिए H-1B कर्मचारियों की व्यवस्था करती हैं। इसे अब तक का सबसे सख्त कदम माना जा रहा है, जो स्किल्ड विदेशी कर्मचारियों की भर्ती को सीमित करेगा।
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4 साल में 90% हायरिंग अमेरिकी दूतावासों से
डेटा बताता है कि मई 2020 से मई 2024 के बीच TCS, इंफोसिस और कॉग्निजेंट (Tata Infosys H-1B impact) में करीब 90% नए H-1B कर्मचारियों की नियुक्ति अमेरिकी दूतावासों के जरिए हुई। अगर यह फीस उस वक्त लागू होती, तो इन कंपनियों को सैकड़ों मिलियन डॉलर अतिरिक्त खर्च करने पड़ते।
कंपनियों पर 9000 करोड़ रुपए तक का बोझ
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इंफोसिस के 10,400 से ज्यादा कर्मचारियों यानी 93% नई H-1B भर्तियों पर यह फीस लगती, जिससे कंपनी पर 1 बिलियन डॉलर (करीब 9000 करोड़ रुपए) से ज्यादा का बोझ पड़ता। TCS को करीब 6,500 कर्मचारियों (82%) के लिए फीस चुकानी होती, जबकि कॉग्निजेंट के 5,600 से ज्यादा कर्मचारियों (89%) पर इसका असर पड़ता।
एक्सपर्ट बोले- वीजा डिमांड में आएगी गिरावट
इमिग्रेशन लॉयर जोनाथन वासडेन का कहना है कि इस फैसले से वीजा डिमांड में तेज गिरावट आएगी और कंपनियां ज्यादा काम विदेशों में शिफ्ट करेंगी। हालांकि, कॉग्निजेंट का दावा है कि उसकी अमेरिकी ऑपरेशंस पर इसका तुरंत कोई बड़ा असर नहीं होगा, क्योंकि वह पहले ही वीजा पर निर्भरता कम कर चुकी है।
आखिर विवादों में क्यों रहता है H-1B प्रोग्राम?
H-1B प्रोग्राम लंबे समय से विवादों में रहा है। दोनों राजनीतिक दलों का आरोप रहा है कि कंपनियां इसे अमेरिकी वर्कर्स के सस्ते विकल्प के तौर पर इस्तेमाल करती हैं, हालांकि नियमों के मुताबिक H-1B कर्मचारियों को इंडस्ट्री का प्रचलित वेतन देना जरूरी होता है।
ट्रंप प्रशासन का कहना है कि यह फीस सिस्टम के दुरुपयोग को रोकेगी और अमेरिकी कामगारों के हितों की रक्षा करेगी। वहीं, यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स समेत कई संगठनों ने इस फैसले को अदालत में चुनौती दी है। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि आने वाले वर्षों में अमेरिकी कंपनियां भारत में निवेश बढ़ा सकती हैं, क्योंकि टैलेंट वहीं उपलब्ध है।

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