GST स्लैब में क्यों नहीं हो पा रहे बदलाव, राज्य सरकारों के सामने क्या है चुनौती?
जीएसटी दरों में बदलाव की संभावना वर्षों से बनी हुई है लेकिन राज्यों की वित्तीय चिंताओं के कारण यह प्रक्रिया अटकी हुई है। पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मासिक जीएसटी संग्रह एक लाख करोड़ रुपये से अधिक होने पर दरों में सुधार का वादा किया था लेकिन अब जब संग्रह दो लाख करोड़ रुपये तक पहुंच रहा है फिर भी बदलाव संभव नहीं दिख रहा।

राजीव कुमार, नई दिल्ली। वर्ष 2017 में जीएसटी प्रणाली की शुरुआत के बाद तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली अक्सर कहते थे कि कुछ सालों में जीएसटी की दरों में बदलाव करेंगे।
कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के अध्यक्ष बी.सी. भरतिया इन बातों को याद करते हुए बताते हैं कि जेटली ने जीएसटी कलेक्शन प्रतिमाह एक लाख करोड़ रुपए से अधिक होते ही दरों में बदलाव की बात कही थी। अब जीएसटी संग्रह दो लाख करोड़ का आंकड़ा छूने को है। इसके बावजूद जीएसटी दरों में बदलाव नहीं हो सका और अब भी यह बहुत आसान नहीं दिख रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह है राज्यों को इसके लिए राजी करना।
राज्य को तैयार करने की जद्दोजहद
राज्यों की अपनी वित्तीय जरूरत तथा चुनौतियां हैं ऐसे में कोई भी राज्य किसी भी हाल में अपने राजस्व में कमी नहीं होने देना चाहेगा। स्लैब में परिवर्तन की स्थिति में राज्यों को जरा सा भी अपने राजस्व में चुनौती की कोई आंशका दिखेगी राज्य इस बदलाव के लिए तैयार होंगे इसकी गुंजाइश कम ही है। वर्ष 2020 में कोरोना महामारी से भी जीएसटी दरों के बदलाव का कार्य प्रभावित हुआ।
बिहार के उप मुख्यमंत्री और जीएसटी दरों में बदलाव से जुड़े मंत्रियों के समूह के अध्यक्ष सम्राट चौधरी भी कहते हैं कि सभी राज्यों की सहमति पर ही निर्णय लिया जाएगा। कुछ लोगों ने स्लैब में बदलाव का प्रस्ताव दिया है। इस पर जब चर्चा शुरू होगी तो विचार किया जाएगा। राज्यों का अवरोध इस बात से भी समझा जा सकता है कि जीएसटी काउंसिल की पिछली तीन बैठकों में राज्यों की सहमति नहीं मिलने से ही स्वास्थ्य व लाइफ इंश्योरेंस के प्रीमियम पर जीएसटी की दरें कम नहीं हो रही है।
काउंसिल की बैठक में राजी नहीं होते राज्य
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण खुद भी यह बात कह चुकी है कि काउंसिल की बैठक के बाहर तो राज्य कह देते हैं कि जीएसटी की दरें कम होनी चाहिए, लेकिन काउंसिल की बैठक में वे तैयार नहीं होते हैं क्योंकि उनका राजस्व प्रभावित होता है।
केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) के पूर्व चेयरमैन विवेक जोहरी कहते हैं, "जीएसटी प्रणाली को सामान्य रूप से स्थिर होने में थोड़ा वक्त लगा और उसके बाद कोरोना की मार से हालात बिगड़ गए। उस समय दरों में बदलाव को लेकर नहीं सोचा जा सकता था।"
"जीएसटी काउंसिल सभी राज्य व केंद्र की रजामंदी पर चलती है। दो-तीन राज्य भी अगर आपत्ति कर देते हैं तो काउंसिल उस फैसले को टाल देती है।" विवेक जोहरी, पूर्व चेयरमैन, सीबीआईसी
जीएसटी काउंसिल में लगातार कई सालों तक छत्तीसगढ़ के प्रतिनिधि रहे राज्य के पूर्व डिप्टी सीएम टी.एस. सिंह देव कहते हैं, "जीएसटी लागू करने के दौरान राज्यों को हर साल 14 प्रतिशत की दर से टैक्स राजस्व में बढ़ोतरी का भरोसा दिया गया था। स्लैब का सरलीकरण होना चाहिए परंतु बदलाव होगा तो किसी वस्तु की दरें कम होंगी तो किसी की बढ़ेगी। सभी राज्य चाहेंगे कि उनके राजस्व में 14 प्रतिशत की दर से ही बढ़ोतरी होती रहे।"
किन चीजों पर कितना लगता है GST?
विशेषज्ञों के मुताबिक आरंभ में जीएसटी की दरें तय करने के दौरान यह ध्यान रखा गया था कि आम आदमी से जुड़ी जरूरत की वस्तुओं पर कम टैक्स लिया जाए और आरामदायक और विलासिता संबंधी वस्तुओं पर अधिक टैक्स वसूला जाए।
सोने पर तीन प्रतिशत के टैक्स के अलावा जीएसटी वसूली के लिए पांच, 12, 18 और 28 प्रतिशत की दरें हैं। पांच प्रतिशत के स्लैब में अधिकतर खाने-पीने की और रोजमर्रा की चीजें शामिल हैं। अब अगर 18 और 12 प्रतिशत को खत्म कर 15 प्रतिशत का एक स्लैब लाया जाता है तो इससे 18 प्रतिशत के स्लैब वाली वस्तुओं की बिक्री बढ़ जाएगी क्योंकि ये वस्तुएं सस्ती हो जाएंगी लेकिन 12 प्रतिशत के स्लैब में शामिल वस्तुओं को बिक्री प्रभावित हो सकती है।
जिन राज्यों को 12 प्रतिशत के टैक्स स्लैब से अधिक राजस्व मिल रहा होगा, वे इसे समाप्त करने में आनाकानी करेंगे। अन्य राज्य भी अपने सभी नफा-नुकसान को देखकर ही कोई सहमति देंगे। इसीलिए चाहे जीएसटी टैक्स स्लैब में परिवर्तन समय की मांग है तथा उपभोक्ता और कारोबार दोनों के हित में है। मगर केंद्र तथा राज्यों के बीच अपने-अपने राजस्व की चिंता बदलाव की राह को मुश्किल बना रही हैं।
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