आठ फीसद से ज्यादा भी रह सकती है विकास दर, तेज विकास की नींव तैयार करना संभव : RBI
वर्ष 2023-24 की पहली तीनों तिमाहियों में जीडीपी की विकास दर क्रमश 8.2 फीसद 8.1 फीसद और 8.4 फीसद रहने का आंकड़ा सरकार ने दिया है। आरबीआइ ने वो सारे तथ्य भी गिनाये हैं कि आठ फीसद से ज्यादा विकास दर आगे भी हासिल होने के पीछे क्या संभावनाएं हैं। आइए इसको लेकर पूरी खबर के बारे में जान लेते हैं।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। क्या सरकार फिर से दहाई अंक में आर्थिक विकास दर को ले जाने का सपना देख सकती है? आरबीआइ ने इसके लिए सरकार को परोक्ष तौर पर प्रोत्साहित किया है। केंद्रीय बैंक ने मंगलवार को जारी अपनी मासिक रिपोर्ट (मार्च, 2024) में वर्ष 2021 से वर्ष 2024 के दौरान देश की औसत आर्थिक विकास दर आठ फीसद से ज्यादा रही है, जो इकोनॉमी के जो आधारभूत तथ्य अभी मौजूद हैं उससे संकेत मिलता है कि इसे बनाये रखा जा सकता है और इसके आधार पर तेज विकास की नींव भी तैयार की जा सकती है।
अब तक के आंकड़े
वर्ष 2023-24 की पहली तीनों तिमाहियों में जीडीपी की विकास दर क्रमश: 8.2 फीसद, 8.1 फीसद और 8.4 फीसद रहने का आंकड़ा सरकार ने दिया है। आरबीआइ ने वो सारे तथ्य भी गिनाये हैं कि आठ फीसद से ज्यादा विकास दर आगे भी हासिल होने के पीछे क्या संभावनाएं हैं।नएक समय था जब भारत का योजना आयोग 10 फीसद से ज्यादा की विकास दर हासिल करने का एजेंडा तैयार कर रहा था।
इस बारे में अंतिम बार शीर्ष स्तर पर चर्चा वर्ष 2009 में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने की थी। लेकिन उसके बाद विकास दर की रफ्तार वैसी नहीं रही लेकिन कोरोना काल के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था ने जो दम दिखाया है उससे अब सरकारी एजेंसियों का भरोसा वापस लौटने के संकेत है।
आरबीआइ की रिपोर्ट इसका उदाहरण है। केंद्रीय बैंक के भरोसे के पीछे एक वजह महंगाई की स्थिति है जिसमें कमी आ रही है। रिपोर्ट में इसने कहा है कि चार फीसद के महंगाई दर लक्ष्य की तरफ बढ़ा जा रहा है लेकिन खाद्य कीमतों को लेकर ही थोड़ी चिंता है।
बढ़ गई खुदरा महंगाई
खुदरा महंगाई के हाल के दो महीनों के आंकड़े बताते हैं कि सर्दियों में खाद्य कीमतों में नरमी आने का सिलसिला अस्थाई ही था। मोटे अनाजों की कीमतों में भी तेजी बरकरार है। मछली व मीट में भी महंगाई दिख रही है। लेकिन इसके अलावा दूसरे उत्पादों की कीमतों में नरमी है। रिपोर्ट में ईंधन की कीमत का हवाला दिया है।
केंद्र सरकार ने हाल ही में एलपीजी, पेट्रोल और डीजल की कीमतें घटाई हैं। रिपोर्ट में उन तथ्यों को एक एक करके गिनाया है जो विकास दर की तेजी को बनाये रखने में मदद करेंगे।
इसमें प्रमुख है चालू खाते में घाटे का कम होना, विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार बढ़ोतरी होना और लगातार तीसरे वर्ष राजकोषीय घाटे का लक्ष्य के मुताबिक रहना। इसके अलावा कंपनियों की तरफ से कर्ज चुकाने की स्थिति और वित्तीय क्षेत्र की कंपनियों की आर्थिक स्थिति में लगातार सुधार होना दो अन्य सकारात्मक पहलू हैं।
वित्तीय बाजार पर इन सकारात्मक तथ्यों का ही असर दिख रहा है। निवेशकों में भारतीय बाजार का आकर्षण और मजबूत हुआ है। इसके अलावा प्रौद्योगिकी ने भारतीय इकोनमी की रफ्तार को और तेज करने का मौका दिया है।
ऐसे में भारत को अब विश्व स्तर की ढांचागत सुविधाओं को खड़ा करने और मैन्युफैक्चरिंग पर जोर देना चाहिए। साथ ही सर्विस सेक्टर में वैश्विक नेतृत्व देने पर काम करके और उच्च स्तर का श्रम उपलब्ध कराने से हम अगले दस वर्षों में भारतीय इकोनमी की चुनौतियों को अवसरों में बदल सकते हैं।
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