अभी भी बुनियादी समस्याओं से जूझ रहा फूड प्रोसेसिंग उद्योग, बड़े पैमाने पर इस क्षेत्र में मिल सकता है रोजगार
भारत का खाद्य प्रसंस्करण उद्योग चालू वित्त वर्ष में 535 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। यह उद्योग न केवल देश की आर्थिक विकास दर को 8% से अधिक बनाए रखने में योगदान दे रहा है। इसके साथ ही युवाओं को रोजगार देने और निर्यात बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। देश के कुल पंजीकृत कारखाना रोजगार में से लगभग 12.38% खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से जुड़े हैं।

जागरण टीम, नई दिल्ली। भारत के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का आकार चालू वित्त वर्ष के दौरान 535 अरब डालर पहुंचने की उम्मीद है। न सिर्फ यह देश की आर्थिक विकास दर की रफ्तार आठ फीसद से ज्यादा बनाए रखने में मदद कर रहा है, बल्कि युवा वर्ग को रोजगार देने और निर्यात बढ़ाने में भी इसका महत्व बढ़ता जा रहा है।
सरकार के आंकड़े बताते हैं कि देश में जितने पंजीकृत फैक्ट्री रोजगार हैं, उसमें तकरीबन 12.38 फीसद खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से जुड़े हैं। सीधे तौर पर ही इस उद्योग में 19 लाख से ज्यादा लोगों को नौकरियां मिली हुई हैं। परोक्ष तौर पर रोजगार के अवसरों की संख्या इससे काफी ज्यादा है। वर्ष 2022-23 में भारत खाद्य व खाद्य प्रसंस्कृत उत्पादों का निर्यात 51 अरब डालर का रहा था। केंद्र सरकार की तरफ से पिछले 20 वर्षों के दौरान इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए लगातार कोशिशें की जा रही हैं। हाल के वर्षों में प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (PMKSY) और पीएम माइक्रो प्रोसेसिंग इंटरप्राइजेज स्कीम (PMFME) जैसी स्कीमें लांच की हैं।
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में है संभावनाएं
जब दैनिक जागरण की टीम ने उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में स्थित खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से जुड़े उद्यमियों से बात की तो तस्वीर का एक दूसरा भी पहलू सामने आया है। अधिकांश उद्यमी यह मानते हैं कि खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में अभी काफी ज्यादा संभावनाएं हैं। लेकिन इस उद्योग को आज भी उन्हीं बुनियादी सुविधाओं की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है जो दो-ढाई दशक पहले थीं।
मसलन, देश में एयर कंडीशनिंग स्टोरेज सिस्टम का नेटवर्क अभी तक बहुत खास नहीं है। राज्यों में कृषि योग्य जमीन पर खाद्य प्रसंस्करण उद्योग स्थापित करने के लिए आवश्यक मंजूरी लेना स्थानीय अधिकारियों से अभी भी बहुत चुनौतीपूर्ण है। कुछ उद्यमी ब्रांडिंग करने, निर्यात करने और नई तकनीक अपनाने में सरकार से अतिरिक्त प्रोत्साहन की मांग कर रहे हैं। भारत निर्मित खाद्य उत्पादों के निर्यात की राह बहुत आसान नहीं है। खास तौर पर कई देशों की सरकारें भारतीय खाद्य उत्पादों के साथ बहुत सकारात्मक रवैया नहीं अपनाते।
इस समस्या का समाधान सरकार के स्तर पर ही किया जा सकता है। यह बात भी सामने आई है कि किसानों और उद्यमियों के बीच अभी बेहतर संपर्क नहीं बन पाया है। उद्यमियों के लिए सीधे किसानों से उनकी उपज खरीदने की प्रक्रिया आसान नहीं है और बिचौलियों की वजह से यह समस्या कुछ ज्यादा ही जटिल हो जाती है। हरिद्वार और फरीदाबाद के कुछ उद्यमियों ने छोटे स्तर पर उद्यम की शुरुआत तो कर दी है, लेकिन इसका किस तरह से व्यापक विस्तार किया जाए, इसको लेकर उन्हें सरकार से विशेष प्रोत्साहन की उम्मीद है।
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देश में हैं कुल 8683 कोल्ड स्टोरेज
कोल्ड स्टोरेज की कमी का मुद्दा जब किसानों ने उठाया तो दैनिक जागरण ने इसकी पड़ताल केंद्र सरकार के स्तर पर की। पीएमकेएसवाई के तहत खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय किसानों, संगठनों, एनजीओ, कंपनियों, सहकारी संगठनों आदि को सब्सिडी प्रदान करता है। ताजा आंकड़े बताते हैं कि फरवरी, 2024 तक देश में कुल 8683 कोल्ड स्टोरेज हैं, जहां 394 लाख टन खाद्य उत्पादों को संरक्षित कर रखा जा सकता है। दस वर्ष पहले यह क्षमता सिर्फ 351 लाख टन की थी, जबकि विगत वर्ष भारत में फलों और सब्जियों की कुल पैदावार 35 करोड़ टन की था। उद्योग चैंबर सीआइआई की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में फलों व सब्जियों की कुल पैदावार का 35 फीसद बर्बाद हो जाता है। जो क्षमता है उसके हिसाब से हम मुश्किल से 10 फीसद का इस्तेमाल ही खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में कर सकते हैं।
पीएचडीसीसीआई की कृषि समिति के प्रमुख एन.के. अग्रवाल का कहना है कि समग्र तौर पर खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए नीतियां आनी चाहिए क्योंकि इसमें कई दूसरे उद्योग भी शामिल है। जैसे कृषि रसायन बनाने वाले उद्योग की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। इन कंपनियों को बदलते मौसम, फसल उत्पादन बढ़ाने आदि पर काफी शोध करने की जरूरत है। सरकार इस तरह के शोध व अनुसंधान पर होने वाले खर्चे पर सब्सिडी देनी चाहिए। इसी तरह से इन पर 18 फीसद का जीएसटी लगता है जिसका बोझ आम किसानों पर पड़ता है, इसे घटा कर 12 फीसद किया जाए तो काफी सहूलियत होगी।
आर्टिफिशिएल इंटेलीजेंस की जरूरत
' केपीएमजी इंडिया के नेशनल हेड (कंज्यूमर गुड्स) निखिल सेठी का कहना है कि भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को अभी 'नेक्स्ट लेवल' की प्रौद्योगिकी की चुनौतियों से सामना करना है। उदाहरण के तौर पर दुग्ध उद्योग व कुछ दूसरे उद्योगों के लिए आर्टिफिशिएल इंटेलीजेंस की जरूरत महसूस की जा रही है।
इस उद्योग को खाद्य उत्पादों की बर्बादी को रोकने के लिए और आटोमेशन पर भी निवेश करना है। इन सभी निवेश को सरकार से प्रोत्साहन की जरूरत महसूस की जा रही है तभी किसानों को फायदा होगा और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की छोटे-मझोले उद्यमियों के सामर्थ्य का पूरा उपयोग होगा।
देहरादून (उत्तराखंड) की कंपनी फ्यूचर फूड प्रोडक्ट के सुबोध पुंडीर का कहना है कि, खाद्य प्रसंस्करण से संबंधित उत्पादों के विपणन में सरकार के स्तर पर कदम उठाए जाने चाहिए। इस सेक्टर के उद्यमियों को अपने प्रोडक्ट की टे¨स्टग के लिए दिल्ली न भागना पड़े, इसके लिए राज्य में एफएसएसएआइ के माध्यम से लैब खुलनी चाहिए। खाद्य प्रसंस्करण का सेक्टर तेजी से बूम करे, इसके लिए नए उद्यमियों को रियायत के साथ ही बैंकों का सक्रिय सहयोग सुनिश्चित किया जाना चाहिए। चूंकि खाद्य प्रसंस्करण उद्योग सीधे तौर पर किसानों की आय बढ़ाने का रास्ता बन सकता है, ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार के बजट में उक्त मांगों पर ध्यान दिया जाएगा।
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