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    दो कमरों का घर, गरीबी में पले-बढ़े, 16 साल की उम्र में घर छोड़ खड़ा किया अरबों का साम्राज्य; धीरूभाई अंबानी की कहानी

    Updated: Sun, 28 Dec 2025 06:30 AM (IST)

    Dhirubhai Ambani Birthday 2025: धीरूभाई अंबानी की कहानी संघर्ष और सफलता का प्रतीक है। दो कमरों के घर में पले-बढ़े धीरूभाई ने मात्र 16 साल की उम्र में ...और पढ़ें

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    दो कमरों का घर, गरीबी में पले-बढ़े, 16 साल की उम्र में घर छोड़ खड़ा कर दिया साम्राज्य; धीरूभाई अंबानी की कहानी

    Dhirubhai Ambani Birth Anniversary: आज 28 दिसंबर है और आज भारत के सबसे प्रभावशाली उद्योगपतियों में गिने जाने वाले धीरूभाई अंबानी का जन्मदिन है। यह सिर्फ एक उद्योगपति का जन्मदिन नहीं, बल्कि उस सोच के जश्न का दिन है, जिसने आजादी के बाद के भारत में पूंजी, बाजार और आम निवेशकों की परिभाषा बदल दी। दो कमरों के छोटे से घर में पले-बढ़े धीरूभाई ने बेहद कम उम्र में समझ लिया था कि गरीबी से बाहर निकलने के लिए बड़े सपने और साहस चाहिए।

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    16 साल की उम्र में घर छोड़कर विदेश गए, बाजार को समझा, मौके पहचाने और जोखिम उठाया। यही सफर आगे चलकर अरबों के साम्राज्य की नींव (Dhirubhai Ambani success story) बना। आज उनके जन्मदिन (Dhirubhai Ambani birthday today) पर जानिए कि कैसे धीरूभाई ने इतिहास रच दिया।

    धीरूभाई को दो कमरों के घर में मिली सबसे बड़ी प्रेरणा

    28 दिसंबर 1932 को गुजरात के सौराष्ट्र इलाके के चोरवाड़ गांव में जन्मे धीरूभाई का बचपन अभावों में बीता। पिता हीराचंद अंबानी स्कूल मास्टर थे- ईमानदार और सख्त अनुशासन वाले, लेकिन आमदनी बेहद सीमित। मिट्टी के फर्श वाला दो कमरों का घर, सीमित साधन और बड़ा परिवार यही धीरूभाई की शुरुआती दुनिया थी। धीरूभाई ने बहुत कम उम्र में समझ लिया था कि गरीबी सिर्फ सुविधा नहीं, आत्मसम्मान भी छीनती है। यही एहसास उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा बना।

    स्कूल से राजनीति तक: सिस्टम को समझने की पहली ट्रेनिंग

    जूनागढ़ के बहादुर कंजी हाई स्कूल में पढ़ते हुए धीरूभाई आजादी के आंदोलन से जुड़े। वे जूनागढ़ विद्यार्थी संघ के सचिव बने। इसी दौर में उनकी वह खासियत दिखी जो आगे चलकर पहचान बनी- कानून की भाषा को समझकर रास्ता निकालना। एक कार्यक्रम में पुलिस ने राजनीतिक भाषण पर रोक लगाई। धीरूभाई ने लिखित में आश्वासन दे दिया, लेकिन भाषण खुद न देकर किसी और से करवा दिया। नियम नहीं टूटा, पर मकसद पूरा हो गया। यह छोटी घटना उनके भविष्य के बड़े फैसलों की झलक थी।

    यह भी पढ़ें- धीरूभाई अंबानी और रतन टाटा के बीच है यह खास कनेक्शन, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं

    16 साल की उम्र में घर छोड़ा, देश छोड़ा और जब लौटे तो...

    1949 में मैट्रिक के बाद घर में हालात ऐसे थे कि आगे पढ़ाई संभव नहीं थी। धीरूभाई ने वही किया जो उस दौर में सौराष्ट्र के कई बनिया युवक करते थे- देश छोड़कर कमाने निकल पड़े। 16 साल की उम्र में वे यमन के अदन (Dhirubhai Ambani Aden Yemen) पहुंचे, जो तब ब्रिटिश कॉलोनी और अंतरराष्ट्रीय ट्रेडिंग हब था। यहां उन्हें A. Besse & Company में नौकरी मिली। अदन का बाजार सूक, उनके लिए असली यूनिवर्सिटी साबित हुआ।

    चांदी के सिक्कों से लाखों कमाने की पहली बड़ी कहानी (dhirubhai ambani yemen coins story)

    अदन में धीरूभाई ने देखा कि यमन की मुद्रा 'रियाल' चांदी से बनी है और उसकी चांदी की असली कीमत, सरकारी कीमत से ज्यादा है। उन्होंने बाजार से सिक्के खरीदे, पिघलवाए और चांदी बेच दी। तीन महीने में सरकार को भनक लगी और यह रास्ता बंद हो गया, लेकिन तब तक धीरूभाई लाखों रुपए कमा चुके थे। यह कोई जुआ नहीं था। यह जानकारी, समय और जोखिम की समझ थी। यहीं से उनकी सोच बनी- मुनाफा छोटा हो सकता है, लेकिन मौका कभी छोटा नहीं होता।

    जल्दी अमीर बनने की नहीं, लंबी दौड़ की सोच

    अदन में धीरूभाई ने सिर्फ पैसा नहीं कमाया, बल्कि सिस्टम सीखा। अकाउंटिंग, सप्लाई चेन, अनुशासन और अंतरराष्ट्रीय व्यापार की भाषा सीखी। वे सादगी से रहते, कम खर्च करते और पूंजी जोड़ते रहे। यही वह दौर था जब उन्होंने धैर्य सीखा। जल्दी अमीर बनने की नहीं, लंबी दौड़ की सोच को बारीकी से समझा।

    भारत वापसी: 'जिदा सांप' पकड़ने का खेल

    कुछ साल बाद धीरूभाई भारत लौटे। उनके पास बड़ी पूंजी नहीं थी, लेकिन बाजार की गहरी समझ थी। उन्होंने सीधे फैक्ट्री नहीं लगाई, बल्कि ट्रेडिंग बिजनेस से शुरुआत की। मसाले और यार्न (धागे) का आयात-निर्यात किया। पूंजी कम थी, लेकिन अनुभव और जोखिम उठाने का हौसला काफी बड़ा था। उस दौर का भारत लाइसेंस-परमिट राज में जकड़ा था- हर फाइल एक 'जिंदा सांप' जैसी।

    धीरूभाई ने सिस्टम से लड़ने के बजाय उसे समझा, साधा और मोड़ा। वे अफसरशाही से टकराते नहीं थे- रिश्ते, भरोसे और धैर्य से रास्ता बनाते थे। धीरूभाई नियमों की भाषा को गहराई से सशब्द पढ़ते, ताकि उसी दायरे में रास्ता निकाला जा सके।

    ट्रेडिंग से मिले अनुभव और पूंजी ने उन्हें अगला कदम उठाने की ताकत दी। उन्होंने देखा कि भारत में कपड़े की भारी मांग है और भविष्य पॉलिएस्टर का है। यही सोच आगे चलकर उद्योग की ओर ले गई।

    छोटे कदम, साफ रणनीति और बड़े सपनों की तैयारी

    भारत वापसी के बाद धीरूभाई की सबसे बड़ी ताकत यही रही- छोटे कदम, साफ रणनीति और बड़े सपनों की तैयारी। यही मॉडल बाद में एक विशाल कारोबारी साम्राज्य की नींव बना और खड़ी हो गई अरबों की कंपनी। जिसका नाम है- रिलायंस इंडस्ट्रीज। आज जिसकी मार्केट वैल्यू 21,09,983 करोड़ रुपए है। बता दें कि धीरूभाई अंबानी की निधन 6 जुलाई 2002 को हुआ था।

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