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    DBT के जरिए सरकार ने भेजा इतना पैसा कि गिनने में लग जाएंगे 833 साल, PM Kisan Yojana का पैसा इसी के जरिए आता है

    Updated: Thu, 20 Nov 2025 07:26 PM (IST)

    डीबीटी (Direct Benefit Transfer) योजना ने भारत के वेलफेयर सिस्टम में क्रांति ला दी है। इस योजना के तहत, PM Kisan Yojana समेत कई योजनाओं का पैसा सीधे लाभार्थियों के खाते में भेजा जाता है। अब तक 44 लाख करोड़ रुपये भेजे जा चुके हैं। पहले लाभार्थियों तक केवल 15% पैसा पहुंचता था, लेकिन डीबीटी ने भ्रष्टाचार को कम किया है और सही लाभार्थियों तक लाभ पहुंचाया है। आधार सिस्टम ने भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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    DBT के जरिए सरकार ने भेजा इतना पैसा कि गिनने में लग जाएंगे 833 साल, PM Kisan Yojana का पैसा इसी के जरिए आता है

    नई दिल्ली। DBT: हाल के सालों में भारत के वेलफेयर सिस्टम में बहुत बड़ा बदलाव आया है, क्योंकि टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल ब्यूरोक्रेटिक कमियों, एडमिनिस्ट्रेटिव लीकेज और करप्शन जैसी लंबे समय से चली आ रही चुनौतियों को मैनेज करने के लिए किया गया है। दशकों से, सोशल असिस्टेंस प्रोग्राम चाहे कैश के रूप में हों या इन-काइंड ट्रांसफर जटिल प्रोसेस और फंड के बड़े नुकसान से जूझ रहे थे। स्टडीज से पता चला है कि दिए गए हर 1 रुपये में से, सिर्फ 15 पैसे ही सही बेनिफिशियरी तक पहुंचते थे। इसी समस्या को सुलझाने के लिए सरकार ने DBT योजना की शुरुआत की थी। यह एक ऐसी योजना है जिसके जरिए PM Kisan Yojana से लेकर कई बड़ी योजनाओं का पैसा सीधे लाभार्थी के खाते में भेजा जाता है।

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    पीएम किसान योजना की 21वीं किस्त भी DBT के जरिए भेजी गई है। अब तक इस योजना के जरिए इतना पैसा भेजा गया है कि अगर हर मिनट कैश एक लाख रुपये गिना जाए तो इससे गिने में 833 साल लग जाएंगे।

    DBT ने बदल दिया गेम

    डीबीटी यानी डायरेक्ट बेनिफिशियरी। इसके जरिए सीधे बेनिफिशियरी के खाते में किसी भी योजना का लाभ दिया जाता है। एक समय था जब भारत में कोई भी योजना आती थी लाभार्थी तक उसका 15 फीसदी हिस्सा ही पहुंचता था। बाकी का 85 फीसदी हिस्सा घूंसखोरी में चला जाता था।

    यह कमी खास तौर पर इसलिए भी चौंकाने वाली थी क्योंकि भारत अपनी GDP का लगभग 3%-4% सब्सिडी (इकोनॉमिक सर्वे, 2017-18) और अपने नागरिकों की भलाई के लिए सोशल सपोर्ट प्रोग्राम पर खर्च करता है। हालांकि, असली लाभार्थियों को सही तरीके से पहचानने में सिस्टम की चुनौतियों और डिलीवरी में देरी के कारण, रिसोर्स का काफी नुकसान होता है—जो हर साल दिए जाने वाले इन फंड का लगभग आधा (पॉलिसी पेपर, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी) होता है।

    इसके जवाब में, सरकार ने 2013 में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) सिस्टम शुरू किया। यह एक बदलाव लाने वाली पहल थी जिसका मकसद लोगों की दखलअंदाजी को कम करते हुए सीधे लोगों के बैंक अकाउंट में फायदा पहुंचाना था।

    DBT के जरिए अब भेजा गया इतना पैसा

    DBT के जरिए अब तक 44 लाख करोड़ रुपये की राशी सीधे बेनिफिशियरी के खाते में भेजी जा चुकी है। अगर इस राशि को हम कैश में हर मिनट एक लाख रुपये गिने तो इसे गिनने में 833 साल लग जाएंगे।

    DBT Data

    2014 में जन धन योजना के लॉन्च होने से फाइनेंशियल इनक्लूजन को काफी बढ़ावा मिला, जिसने मोबाइल कनेक्टिविटी में तेजी से बढ़ोतरी के साथ मिलकर DBT सिस्टम के तेजी से विस्तार के लिए नींव रखी। इस डिजिटल क्रांति का सेंटर आधार सिस्टम है, जिसे 2009 में लॉन्च किया गया था और अब इसे दुनिया का सबसे बड़ा बायोमेट्रिक आइडेंटिटी प्रोग्राम माना जाता है। वेरिफिकेशन प्रोसेस को आसान बनाकर और डुप्लीकेट रिकॉर्ड को खत्म करके, आधार यह पक्का करने में मददगार रहा है कि सोशल मदद सही बेनिफिशियरी तक पहुंचे।

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