ऑनलाइन लोन देने वाली एजेंसियों की पेंच और कसी जाएगी, RBI जल्द ही लाएगा विस्तृत नियम
वेबसाइट या मोबाइल एप के जरिए कर्ज देने वाली एजेंसियों (वेब-एग्रीगेटर्स) को निगमित करने की पूर्व में कई कोशिशों के बावजूद अभी भी इस तरह की कुछ एजेंसियां बाजार में मौजूद हैं। पिछले हफ्ते मौद्रिक नीति की समीक्षा करते हुए आरबीआई गवर्नर ने यह बताया था कि लोन उत्पादों के वेब-एग्रीगेटर्स के लिए निगमन के लिए नये फ्रेमवर्क को तैयार कर लिया गया है और इनकी घोषणा जल्द की जाएगी।

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। वेबसाइट या मोबाइल एप के जरिए कर्ज देने वाली एजेंसियों (वेब-एग्रीगेटर्स) को निगमित करने की पूर्व में कई कोशिशों के बावजूद अभी भी इस तरह की कुछ एजेंसियां बाजार में मौजूद हैं। ये नियामक एजेंसियों की आंख में धूल झोंक कर व मौजूदा नियमों की खामियां निकाल कर अपना उल्लू सीधा कर रही हैं, लेकिन अब ज्यादा दिनों तक ऐसा नहीं होगा, क्योंकि इनके खिलाफ चौतरफा कार्रवाई की तैयारी है।
एक तरफ जहां आरबीआई ने लोन उत्पाद बेचने वाले इन वेब-एग्रीगेटर्स के नियमन को लेकर एक विस्तृत दिशानिर्देश तैयार करने की घोषणा की है तो दूसरी तरफ केंद्र सरकार की तरफ से भी ऐसे कानूनी प्रावधान करने की तैयारी है जिससे बगैर लाइसेंस के कोई एजेंसी या कंपनी किसी भी प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करके वित्तीय सेवा नहीं दे सकेगी। मकसद यहीं है कि बाजार से उन सभी एजेंसियों या कंपनियों को बंद किया जा सके जो किसी भी तरह के नियमों के दायरे में नहीं है।
ग्राहकों की सेवा की गुणवत्ता में होगा सुधार
पिछले हफ्ते मौद्रिक नीति की समीक्षा करते हुए आरबीआई गवर्नर ने यह बताया था कि लोन उत्पादों के वेब-एग्रीगेटर्स (WALP) के लिए निगमन के लिए नये फ्रेमवर्क को तैयार कर लिया गया है और इनकी घोषणा जल्द की जाएगी। इस बारे में केंद्रीय बैंक ने एक कार्य दल का गठन किया था जिसकी सिफारिशों को भी स्वीकार करने की घोषणा की गई है। नया फ्रेमवर्क डब्लूएएलपी को सीधे तौर पर आरबीआई के नियमो के दायरे में लाएगा। इससे इनके काम काज में ज्यादा पारदर्शिता आएगी। ग्राहकों की सेवा की गुणवत्ता में सुधार होगा और सबसे बड़ी बात अगर किसी ग्राहक के साथ किसी तरह की गड़बड़ी होती है तो वह इनके खिलाफ कार्रवाई कर सकेगा। यह ग्राहकों को भी सावधान करेगा।
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डब्लूएएलपी अभी काफी हद तक आजाद हैं। ये एक ही वेबसाइट पर लोन देने वाले दूसरे एनबीएफसी, बैंक या दूसरी वित्तीय संस्थानों की सेवाओं को एक ही जगह पर देते हैं और ग्राहक इनके बीच तुलनात्मक अध्ययन करने के बाद फैसला करता है। वैसे बाहरी तौर पर यह ग्राहकों के हिसाब से काफी सुविधाजनक लगता है, लेकिन आरबीआई को लगातार यह सूचना मिल रही है कि किस तर से यहां गड़बड़ियां भी होती हैं। मसलन, कुछ लोन एग्रीगेटर्स कुछ खास वित्तीय कंपनियों के उत्पादों को बढ़ावा देते हैं और ग्राहकों पर कुछ खास लोन उत्पादों को स्वीकार करने का दबाव बनाते हैं।
उधर, सरकारी सूत्रों ने बताया है कि वित्त मंत्रालय आरबीआई के साथ विमर्श करके एक ऐसा कानून बनाने पर विचार कर रही है, जो देश में ऐसी किसी भी एजेंसी की तरफ से वित्तीय उत्पादों को बेचने पर प्रतिबंध लगाने का काम करेगा जिन पर किसी तरह का नियमन नहीं हो। यह मुख्य तौर पर ऑनलाइन या वेब-साइट के जरिए वित्तीय उत्पाद बेचने वाली कंपनियों या मोबाइल एप के काम काज को साफ करने के लिए किया जाएगा। इसके लिए तकनीक तौर पर ऐसी व्यवस्था की जाएगी कि ग्राहक यह पता कर सकेगा कि मोबाइल एप या वेबसाइट पर लोन देने या दूसरी वित्तीय सेवा देने वाली एजेंसी पंजीकृत है या नहीं।
सनद रहे कि भारत अगर डिजिटल क्रांति अग्रणी देश बन कर उभरा है तो इसके कुछ दूसरे नकारात्मक असर भी देखने को मिल रहे हैं। देश के कई हिस्सों से मोबाइल एप या डिजिटल तरीके से कर्ज देने वाली सैकड़ों एजेंसियों की तरफ से गड़बड़ी करने की सूचना है। वैसे इसमें वैध तरीके से काम करने वाली भी सैकड़ों एजेंसियां हैं जिनसे ग्राहक काफी आसानी से कर्ज ले रहे हैं, लेकिन समस्या उन एजेंसियों से है, जो ग्राहकों से मनमाना ब्याज वसूल रहे हैं और कर्ज नहीं लौटाने वाले ग्राहकों को परेशान करते हैं। देशभर में इनके खिलाफ सैकड़ों मामले दर्ज हो चुके हैं।
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अर्नस्ट एंड यंग की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2022 में भारत में डिजिटल तरीके से 21.6 लाख करोड़ रुपये का कर्ज बांटा गया, जो वर्ष 2026 में 47.4 लाख करोड़ रुपये का हो सकता है। इसमें कर्ज देने वाले मोबाइल एप का योगदान सबसे ज्यादा है।
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