Property Circle Rate: क्या होता है सर्किल रेट? नुकसान से बचना है तो प्रॉपर्टी खरीदने से पहले जानें पूरा हिसाब
Circle Rate in Property सर्किल रेट को जिला प्रशासन की ओर से निर्धारित किया जाता है। यह शहर के इलाकों के आधार पर अलग-अलग होता है। सर्किल रेट को देश में अलग- अलग नामों से जाना जाता है। महाराष्ट्र में रेडी रेडकॉर्नर रेट्स तो यूपी में कलेक्टर रेट्स कहते हैं।

नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। अगर आप कहीं भी प्रोपर्टी देखने जाते हैं, तो आपने अक्सर बिल्डरों से सर्किल रेट बारे में सुना होगा। कई बार बिल्डर इसी के आधार पर प्रोपर्टी का पूरा दाम निर्धारित करते हैं। किसी दूसरे इलाके में प्रोपर्टी के देखने के वक्त ये बदल जाता है। आज हमनी रिपोर्ट में सर्किल रेट के बारे में पूरी जानकारी देंगे कि ये कैसे आपकी प्रोपर्टी खरीदने के निर्णय में अहम भूमिका निभाता है।
क्या होता है सर्किल रेट?
भारत में जीमन राज्य के आधीन है। जिला प्रशासन शहरों में भूमि और अन्य संपत्तियों के लिए एक मानक दर तय करने के लिए जिम्मेदार है, जिसके नीचे लेनदेन पंजीकृत नहीं किया जा सकता है। क्योंकि यह काफी बड़ा होता है और इलाकों के आधार पर बांटा होता है। इस वजह से सर्कल दरें इलाके इलाके में भिन्न होती हैं।
सर्किल रेट को देश में अलग- अलग नामों से जाना जाता है। महाराष्ट्र में इसे रेडी रेडकॉर्नर रेट्स कहते हैं। हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में जिला कलेक्टर रेट्स, कर्नाटक में गाइडेंस वैल्यू के रूप में जानते हैं।
कैसे होता है तय?
किसी भी शहर में सर्किल रेट जिला प्रशासन की ओर से निर्धारित किया जाता है। प्रशासन उस इलाके में चल रही मार्केट रेट की एक निश्चित अवधि में समीक्षा करने के बाद सर्किल रेट तय करता है। प्रशासन की कोशिश होती है कि सर्किल रेट को बाजार कीमतों के बराबर ही रखा जाए। मार्केट रेट उस कीमत को कीमत को कहा जाता है जिस पर प्रोपर्टी की खरीद बिक्री की जाती है। बता दें, मार्केट रेट के आधार पर ही किसी प्रोपर्टी का रजिस्ट्रेशन शुल्क तय होता है।
अधिक सर्किल रेट होने से नुकसान
सर्किल रेट अधिक होने के प्रोपर्टी खरीददार को काफी सारे नुकसान हैं। सबसे पहले आपको प्रोपर्टी महंगी मिलती है। इसके साथ अगर आपर प्रोपर्टी लोन पर ले रहे हैं, तो आपको अधिक ईएमआई भरनी होगी। वहीं, घर का बीमा भी आपके लिए महंगा हो जाएगा।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।