ग्रीस के बाद गले पड़ा चीन का संकट
दुनिया भर के हुक्मरान ग्रीस के आर्थिक संकट से उबरने की उधेड़बुन में लगे हैं कि चीन के शेयर बाजार की ऐतिहासिक अस्थिरता ने चिंता की नई लहर दौड़ा दी है। चीन के शेयर बाजार व कमोडिटी बाजार में बुधवार को आई भारी गिरावट से भारत के वित्तीय बाजार में
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। दुनिया भर के हुक्मरान ग्रीस के आर्थिक संकट से उबरने की उधेड़बुन में लगे हैं कि चीन के शेयर बाजार की ऐतिहासिक अस्थिरता ने चिंता की नई लहर दौड़ा दी है। चीन के शेयर बाजार व कमोडिटी बाजार में बुधवार को आई भारी गिरावट से भारत के वित्तीय बाजार में कोहराम मच गया है। शेयर बाजार 484 अंकों तक टूट गया जबकि डॉलर के मुकाबले रुपया 14 पैसे कमजोर हुआ और सोना भी तीन महीने के न्यूनतम स्तर पर आ गया। आने वाले दिनों में देश के वित्तीय बाजारों का रुख चीन के बाजारों से आने वाली हवाएं ही तय करेंगी लेकिन वहां के धातु बाजार में गिरावट से भारत को कुछ फायदा मिलने की भी संभावना है।
अहम व्यापारिक साङोदार देश
चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार देश है। दोनों देशों का द्विपक्षीय कारोबार 100 अरब डॉलर को छूने वाला है और अगले वर्ष चीन अमेरिका को पछाड़ कर भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार देश बनने की राह पर है। पिछले वर्ष भारत में चीन से होने वाला आयात यहां से होने वाले निर्यात होने के मुकाबले (व्यापार घाटा) 42 अरब डॉलर ज्यादा था। इस वर्ष इसके 60 अरब डॉलर हो जाने की बात कही जा रही है। भारतीय लौह अयस्क व धातुओं का चीन सबसे बड़ा आयातक है।
दूसरी तरफ चीन भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स व मशीनरी उद्योग के लिए अब बहुत ही अहम बन गया है। भारत ने चीन से पिछले वर्ष 19 अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों और 10 अरब डॉलर के मशीनरी कल पुर्जो का आयात किया था। भारत अपनी जरुरत के तमाम तरह के धातु, प्लास्टिक, उर्वरक, रसायन के आदि के लिए चीन के भरोसे है। ऐसे में चीन की अर्थव्यवस्था सीधे तौर पर इन उद्योगों पर असर डालेगा।
धातु बाजार की मंदी के फायदे
जानकारों का कहना है कि चीन की अर्थव्यवस्था की सुस्ती कई मायने में भारत के लिए वरदान भी साबित हो सकता है। खास तौर पर आज धातु बाजार की वैश्विक कीमतों में जिस तरह से मंदी आई है उसका फायदा भारत को मिलेगा।
अल्यूमीनियम, तांबे की कीमत में बुधवार को छह फीसद तक की गिरावट हुई है। कच्चे तेल की कीमतें भी इससे घटी हैं।
यह सरकार को महंगाई थामने में मदद करेगा। साथ ही आम आदमी को भी सस्ते पेट्रोल व डीजल मिलेंगे और कच्चे माल की कीमत कम होने से कार व इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों की कीमतों में भी नरमी आ सकती है। इसके अलावा इससे मेक इन इंडिया कार्यक्रम को बढ़ावा मिलेगा।
सस्ते कर्ज पर लग सकता है ग्रहण
लेकिन इस पूरे घटनाक्रम का एक नकारात्मक असर यह हो सकता है कि कर्ज की दरों के घटने के लिए और इंतजार करना पड़ सकता है। वैश्विक अस्थिरता को देखते हुए आरबीआइ फिलहाल यथा स्थिति बनाये रख सकता है।
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