चीन के रेयर अर्थ एक्सपोर्ट में जोरदार उछाल, 3 महीने बाद अक्टूबर में 9% की बढ़ोतरी; रेस में क्यों पिछड़ रहा भारत?
चीन के रेयर अर्थ एक्सपोर्ट (China Rare Earth Export Surge) में अक्टूबर में 9% की वृद्धि हुई है, जो तीन महीने की गिरावट के बाद पहली बार है। इलेक्ट्रिक वाहनों और रक्षा उपकरणों में इस्तेमाल होने वाले इन मेटल्स की वैश्विक मांग बढ़ रही है, जिस पर चीन का दबदबा है। भारत, दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा भंडार होने के बावजूद, उत्पादन में पीछे है। सरकार अब 7,300 करोड़ रुपए की योजना के साथ घरेलू उत्पादन बढ़ाने की कोशिश कर रही है।
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चीन के रेयर अर्थ एक्सपोर्ट में जोरदार उछाल, 3 महीने बाद अक्टूबर में 9% की बढ़ोतरी; रेस में क्यों पिछड़ रहा भारत?
नई दिल्ली| दुनिया के सबसे बड़े रेयर अर्थ (China Rare Earth Export Surge) निर्यातक चीन की एक्सपोर्ट में अक्टूबर महीने में जबरदस्त उछाल देखने को मिला है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, चीन की रेयर अर्थ एक्सपोर्ट सितंबर के मुकाबले 9% बढ़कर 4,343.5 मीट्रिक टन पहुंच गई है। यह लगातार तीन महीने की गिरावट के बाद पहली बार बढ़ोतरी है।
रेयर अर्थ मेटल्स का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक वाहनों, मोबाइल फोन, चिप्स, और रक्षा उपकरणों में किया जाता है। इसलिए इनकी वैश्विक मांग लगातार बढ़ रही है और चीन इस बाज़ार पर सबसे ज़्यादा नियंत्रण रखता है। जनवरी से अक्टूबर 2025 तक चीन ने कुल 52,699.2 टन रेयर अर्थ का निर्यात किया, जो पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 10.5% ज़्यादा है।
हालांकि, अभी यह साफ नहीं है कि अक्टूबर में कौन से उत्पादों या किन देशों को ज्यादा निर्यात किया गया। इस पर पूरी रिपोर्ट 20 नवंबर को जारी की जाएगी। विशेषज्ञों का कहना है कि हालिया उछाल से साफ है कि चीन अब रेयर अर्थ एक्सपोर्ट में फिर से आक्रामक रुख अपना रहा है, जिसका असर वैश्विक सप्लाई और दामों पर दिख सकता है।
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रेयर अर्थ रेस में भारत क्यों पिछड़ा?
भारत ने रेयर अर्थ (Rare Earth) सेक्टर में शुरुआत तो 1950 में ही कर दी थी, जब सरकार ने इंडियन रेयर अर्थ लिमिटेड (Indian Rare Earth Limited- IREL) बनाई थी। लेकिन नियामकीय दिक्कतों, कम डिमांड, और तकनीकी निर्भरता के कारण भारत इस रेस में चीन से काफी पीछे रह गया। आज हालात यह है कि भारत दुनिया के पांचवें सबसे बड़े रेयर अर्थ भंडार का मालिक होने के बावजूद वैश्विक उत्पादन का 1% से भी कम हिस्सा देता है।
IREL फिलहाल हर साल करीब 3,000 टन रेयर अर्थ एलिमेंट्स बनाता है, जिसमें सिर्फ 500 टन NdPr ऑक्साइड (जो इलेक्ट्रिक वाहनों और रक्षा उद्योग के लिए जरूरी है) का उत्पादन होता है। वहीं, भारत ने 2024-25 में चीन से 43,610 टन (Rare Earth Permanent Magnets- REPMs) इंपोर्ट किए, जिनमें 90% चीन से आए।
विशाखापट्टनम में IREL ने एक आधुनिक प्लांट लगाया है, लेकिन कंपनी पिछले एक साल से चेयरपर्सन और MD के बिना चल रही है। हालांकि इसका मुनाफा 2023-24 में ₹1,012 करोड़ रहा, लेकिन उत्पादन क्षमता अब भी देश की जरूरतों के मुकाबले बहुत कम है।
एक्सपोर्ट बोले- IREL अकेले नहीं संभाल सकता
विशेषज्ञों का कहना है कि, "IREL अकेले इस सेक्टर को नहीं संभाल सकता। भारत को और कंपनियों को माइनिंग, एक्सप्लोरेशन और प्रोसेसिंग के लिए प्रोत्साहित करना होगा।" सरकार अब ₹7,300 करोड़ की योजना ला रही है, ताकि देश में रेयर अर्थ मैग्नेट प्रोसेसिंग यूनिट्स (Rare Earth Magnet Processing Units) और सप्लाई चेन तैयार की जा सके।
इसके साथ ही, नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन (National Critical Mineral Mission- NCMM) के जरिए देश और विदेश दोनों जगह से रेयर अर्थ खनन और अधिग्रहण को बढ़ावा देने की योजना है। जानकारों के मुताबिक, अगर भारत जल्दी नीति सुधार और निवेश बढ़ाए, तो अगले कुछ सालों में वह चीन की बढ़त को चुनौती दे सकता है।

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