चिप, कार, टैंक-फाइटर प्लेन... क्या अमेरिका और यूरोप की लगाम बनेगा चीन, दुनिया भर में ड्रैगन की इस आग का डर!
चीन के संभावित निर्यात प्रतिबंधों की आशंका से वैश्विक बाजार में डर का माहौल है। चिप्स, कार, टैंक और लड़ाकू विमान जैसे उत्पादों पर प्रतिबंध लगने की संभावना है। इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, खासकर उन देशों पर जो चीन पर निर्भर हैं। इस किस इंडस्ट्री को नुकसान हो सकता है और कहां भू-राजनीतिक तनाव बढ़ सकता है, जानते हैं।

कंप्यूटर चिप्स, कार से लेकर टैंकों और लड़ाकू विमानों तक चीन इन सभी चीजों पर नए निर्यात प्रतिबंध लगाने की तैयारी में है।
नई दिल्ली। कंप्यूटर चिप्स, कार से लेकर टैंकों और लड़ाकू विमानों तक चीन इन सभी चीजों पर नए निर्यात प्रतिबंध लगाने की तैयारी में है। यह उसकी वैश्विक व्यापार को नियंत्रित करने की बहुत बड़ी चाल हो सकती हैं। उसके इस खुराफात ने नए व्यापारिक संघर्ष को जन्म दे दिया है। यह चीन को न केवल अमेरिका, बल्कि यूरोप को भी अपना दुश्मन बना लेगा।
यह नियम 8 नवंबर और 1 दिसंबर तक कई चरणों में लागू होने वाले हैं। ये नए नियम पूरी दुनिया पर लागू होते हैं। जिससे व्यापार को लेकर बढ़ते अंतरराष्ट्रीय तनाव के दौर में महत्वपूर्ण विनिर्माण क्षेत्र में चीन का दबदबा तेजी से बढ़ रहा है।
इन्हीं प्रतिबंधों का नतीजा था कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को 1 नवंबर से चीनी आयात पर 100% नए टैरिफ लगाने की धमकी दी।
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ये नियम अप्रैल से चीन के लागू की गई दुर्लभ मृदा धातुओं (Rare Earth Element) जिनका खनन और प्रसंस्करण मुख्यतः चीन में होता है और उनसे बने चुम्बकों के निर्यात की सीमा से कहीं आगे निकल गए हैं।
गुरुवार को कई घोषणाओं के जरिए चीन ने इलेक्ट्रिक मोटरों, कंप्यूटर चिप्स और अन्य उपकरणों के विश्वव्यापी निर्यात पर अपने प्रतिबंध बढ़ा दिए हैं, जो आधुनिक जीवन का अभिन्न अंग बन गए हैं और अब मुख्यतः चीन में निर्मित होते हैं।
ये नियम चीन से किसी भी देश को सैन्य उपकरणों में इस्तेमाल होने वाली सामग्री या पार्ट्स के निर्यात पर प्रतिबंध लगाते हैं। प्रतिबंधित वस्तुओं में मिसाइलों और लड़ाकू विमानों में लगने वाली छोटी लेकिन शक्तिशाली इलेक्ट्रिक मोटरें और टैंकों व तोपखाने में लगे महत्वपूर्ण रेंजफाइंडर की सामग्री शामिल हैं, जिनका इस्तेमाल दूर के लक्ष्यों पर निशाना साधने के लिए किया जाता है।
इन नियमों ने पश्चिमी देशों में विशेष चिंता पैदा की है क्योंकि इनसे यूक्रेन को हथियार आपूर्ति करने और रूसी आक्रमण का मुकाबला करने के लिए यूरोप की अपनी सेनाओं के पुनर्निर्माण के यूरोप के प्रयासों को कमजोर करने की संभावना है।
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