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    सस्ते होंगे इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहन

    By Edited By:
    Updated: Sat, 19 Apr 2014 11:39 AM (IST)

    आने वाले समय में ग्राहकों को इलेक्ट्रिक व हाइब्रिड कारें और दोपहिया वाहन कम कीमत पर मिल सकते हैं। केंद्र सरकार ऐसे वाहनों पर भारी-भरकम सब्सिडी देने की ...और पढ़ें

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    नई दिल्ली। आने वाले समय में ग्राहकों को इलेक्ट्रिक व हाइब्रिड कारें और दोपहिया वाहन कम कीमत पर मिल सकते हैं। केंद्र सरकार ऐसे वाहनों पर भारी-भरकम सब्सिडी देने की तैयारी कर रही है। यह 8,000 से लेकर 12 लाख रुपये तक हो सकती है।

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    केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय एक्सईवी (इलेक्टिक/हाइब्रिड कारें) के लिए सब्सिडी की सीमा निर्धारित करने पर राजी हो गया है। इसका मकसद ऐसे वाहनों की मांग बढ़ाना है। इस रणनीति से ऐसे वाहनों का विकास और उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा जो वैकल्पिक ईंधन से चलेंगे और पर्यावरण के अनुकूल होंगे।

    कंपनियों की तैयारी

    सरकार की इस पहल से टाटा मोटर्स और महिंद्रा एंड महिंद्रा जैसी घरेलू कंपनियों को ज्यादा फायदा होगा। दोनों कंपनियां इलेक्टिक और हाइब्रिड टेक्नोलॉजी पर काम कर रही हैं। महिंद्रा ने ई20 नाम से इलेक्ट्रिक कार बाजार में उतार रखी है। मगर कीमत ज्यादा होने से बिक्री कम हो रही है। इसे देखते हुए ही कंपनी अब वेरिटो और मैक्सिमो जैसे मॉडलों का इलेक्टिक वर्जन पेश करने से पहले सरकारी प्रोत्साहन के इंतजार में है। टाटा ने पहले से ही सीएनजी-हाइब्रिड बस तैयार कर ली है। फिलहाल ये बसें मैडिड की सड़कों पर दौड़ रही हैं।

    भारत में फिलहाल इसकी बिक्त्री नहीं शुरू हो पाई है क्योंकि यहां इसकी कीमत एक करोड़ रुपये से ऊपर बैठेगी। इलेक्टिक-हाइब्रिड कारें और एसयूवी की कीमत 7.5 लाख रुपये से शुरू होती है। इन पर 1.5 लाख रुपये तक सब्सिडी मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। वहीं बाइक और स्कूटरों की कीमत 40 हजार रुपये से शुरू होती है। इन पर अधिकतम 30,000 रुपये तक सब्सिडी मिलने की संभावना है। हाइब्रिड बसों पर 12 लाख रुपये तक और हल्के वाणिज्यिक वाहनों पर एक लाख रुपये तक की सब्सिडी दी जा सकती है। किस वाहन पर कितनी सब्सिडी दी जाएगी, इसका फैसला बैटरी की साइज और वास्तविक फैक्टरी कीमत जैसी चीजों पर निर्भर करेगा।

    कीमतों का अंतर घटेगा

    एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इलेक्टिक और पेट्रोल, डीजल से चलने वाले वाहनों की कीमत में 30-40 प्रतिशत का अंतर होता है। सब्सिडी के जरिये इस अंतर को पाटने की योजना है। इसके बाद ऐसे वाहन फायदेमंद साबित होंगे क्योंकि इन्हें चलाने की लागत काफी कम होगी। ऑटो कंपनियां लंबे समय से ऐसे वाहनों को बढ़ावा देने की मांग कर रही हैं। छह साल में इस मद में सरकारी खर्च करीब 12,000 करोड़ रुपये बैठेगा। अधिकारी ने कहा कि फिलहाल इस मसले पर वाहन उद्योग के साथ विचार-विमर्श चल रहा है, लेकिन कंपनियां सरकार के इस प्रस्ताव से पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। फिर भी मोटे तौर पर सहमति बन गई है। भारी उद्योग मंत्रलय एक महीने में व्यय वित्त समिति के समक्ष इसकी अंतिम रूपरेखा रखेगा। नई सरकार बनने के बाद इसे मंत्रिमंडल की मजूंरी के लिए भेजा जाएगा।

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