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    ..कहीं आपको एटीएम से खाली हाथ न लौटना पड़े!

    त्योहारों को मौसम लोगों के लिए खुशियों की सौगात लेकर आता है, लेकिन इस साल ये अपने साथ मुसीबतें लेकर आ रहा है। लोगों की जेब में कैश की कमी तो है ही अब घर और बाजार में लगे एटीएम में भी कैश का आकाल पड़ सकता है।

    By Edited By: Updated: Mon, 30 Mar 2015 06:40 PM (IST)

    नई दिल्ली। त्योहारों को मौसम लोगों के लिए खुशियों की सौगात लेकर आता है, लेकिन इस साल ये अपने साथ मुसीबतें लेकर आ रहा है। लोगों की जेब में कैश की कमी तो है ही अब घर और बाजार में लगे एटीएम में भी कैश का आकाल पड़ सकता है।

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    बैंकों को लॉजिस्टिक्स सेवाएं देने वाली निजी सुरक्षा एजेंसियों के पास हथियारबंद कर्मचारियों की काफी कमी हो गई है। यही कारण है कि इस बार एटीएम मशीनें सूखी पड़ सकती हैं। उद्योग के एक अनुमान के मुताबिक, नकदी का रखरखाव करने वाली एजेंसियों में हथियारबंद गार्डो की संख्या 6 माह पहले की तुलना में घटकर एक-तिहाई रह गई है, जिससे लॉजिस्टिक्स परिचालन प्रभावित हुआ है।

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    इसके अलावा नवरात्र, दशहरा और दिवाली जैसे त्योहारों की वजह से भी गार्ड छुट्टी पर जा सकते हैं। उद्योग के अधिकारियों का कहना है कि इस समय ज्यादातर एटीएम में हर 5वें दिन नकदी डाली जा रही है। आमतौर पर एटीएम में प्रत्येक दूसरे दिन नकदी डाली जाती है। लॉजिस्टिक्स कंपनी के एक अधिकारी ने कहा, 'एटीएम में नकदी की कमी हो सकती है। विभिन्न कंपनियों में सुरक्षा गार्डो की कमी है। इससे एटीएम में नकदी डालने की अवधि 5 दिन हो गई है।'

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    हालांकि, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के एक अधिकारी ने कहा कि बैंक एटीएम त्योहारी सीजन के मद्देनजर अतिरिक्त नकदी डालने के लिए कदम उठा रहे हैं। कैश लॉजिस्टिक्स एसोसिएशन के अनुसार, बैंकों की ओर से हर दिन एटीएम में 15,000 करोड़ रुपये की नकदी डाली जा रही है। एसोसिएशन ने कहा कि हथियारबंद सुरक्षा गार्डो में कमी की एक वजह यह है कि कई राज्यों में पुलिस ने इस मुद्दे पर आपत्ति जताई है। पुलिस का कहना है कि निजी हथियार लाइसेंस का इस्तेमाल कानून में बताए गए तरीके के अलावा दूसरी जगह कहीं नहीं हो सकता। इससे कैश लॉजिस्टिक्स कंपनियों में कर्मचारियों की कमी हो गई है, क्योंकि उन्हें नकदी रख-रखाव के लिए हथियार को औपचारिक लाइसेंस नहीं मिलता। पिछले वित्त वर्ष में नकदी भरी वैन लूटने की घटनायें हर महीने बढ़कर एक तक पहुंच गई, जबकि इससे पहले 2011-12 तक तीन महीने में एक घटना होती थी।