अनिल अंबानी की मुश्किलें फिर बढ़ीं, रिलायंस इन्फ्रा के इन 6 परिसरों पर ईडी की छापेमारी; क्यों हो रही कार्रवाई?
ED ने मंगलवार को अनिल अंबानी ग्रुप की कंपनी रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर के खिलाफ चल रही विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) जांच के तहत महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में छापेमारी की। मुंबई और इंदौर के महू में कम से कम छह परिसरों पर छापेमारी की गई। ईडी की टीमों ने महू स्थित पाथ इंडिया ग्रुप के मुख्यालय और उसके निदेशकों के आवासों की भी तलाशी ली।

नई दिल्ली| ईडी ने मंगलवार को अनिल अंबानी ग्रुप (Anil Ambani) की कंपनी रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर के खिलाफ चल रही विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) जांच के तहत महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में छापेमारी की। मुंबई और इंदौर के महू में कम से कम छह परिसरों पर छापेमारी की गई। ईडी की टीमों ने महू स्थित पाथ इंडिया ग्रुप के मुख्यालय और उसके निदेशकों के आवासों की भी तलाशी ली।
जांचकर्ताओं के अनुसार, रिलायंस समूह की कंपनियों और पाथ इंडिया ग्रुप के बीच विभिन्न निर्माण कार्यों से जुड़े समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसके तहत बड़ी रकम का लेन-देन हुआ होगा। रायटर के अनुसार, रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि ईडी द्वारा उसके कुछ परिसरों में की गई तलाशी राजस्थान में टोल रोड परियोजनाओं और अन्य उपक्रमों के लिए 2010 के एक अनुबंध से जुड़ी थी और इसका फेमा जांच से कोई संबंध नहीं था।
अवैध तरीके से विदेश में पैसे भेजने का आरोप
बहरहाल, ईडी से जुड़े सूत्रों ने बताया कि यह छापेमारी विदेश में अवैध तरीके से धन भेजने के आरोपों पर रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर के खिलाफ चल रही फेमा जांच का हिस्सा है। ईडी पहले से ही रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर सहित समूह की कई कंपनियों द्वारा कथित वित्तीय अनियमितताओं और 17,000 करोड़ रुपये से अधिक के सामूहिक ऋण ''डायवर्जन'' की जांच प्रीवेंशन आफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के आपराधिक प्रविधानों के तहत कर रही है।
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ईडी ने पीएमएलए के तहत यह कार्रवाई सेबी की एक रिपोर्ट के बाद की है, जिसमें आरोप लगाया गया था कि रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने सीएलई नाम की एक कंपनी के माध्यम से रिलायंस समूह की कंपनियों में इंटर-कार्पोरेट डिपोजिट (आइसीडी) के रूप में अवैध धनराशि ''डायवर्ट'' किया था। साथ ही यह भी आरोप लगाया गया था कि रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने शेयरधारकों और आडिट पैनल से अनुमोदन से बचने के लिए सीएलई को अपने ''संबंधित पक्ष'' के रूप में नहीं बताया।
हालांकि रिलायंस ग्रुप ने पहले किसी भी गड़बड़ी से इनकार किया था। कंपनी की ओर से जारी एक बयान में कहा गया था कि 10,000 करोड़ रुपये की राशि किसी अज्ञात पक्ष को कथित रूप से हस्तांतरित करने का आरोप लगभग 10 साल पुराना मामला है और कंपनी ने अपने वित्तीय विवरणों में बताया था कि उसका ऋण केवल 6,500 करोड़ रुपये का ही था। रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने लगभग छह महीने पहले नौ फरवरी को इस मामले के बारे में सार्वजनिक रूप से बताया था।
तब कंपनी ने कहा था, ''सुप्रीम कोर्ट के एक सेवानिवृत्त जज की ओर से आयोजित अनिवार्य मध्यस्थता कार्यवाही और बांबे हाईकोर्ट के समक्ष दायर मध्यस्थता के माध्यम से रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर 6,500 करोड़ रुपये के अपने 100 प्रतिशत ऋण की वसूली के लिए एक समझौते पर पहुंची।'' बयान के अनुसार, अनिल अंबानी तीन साल से अधिक समय से (मार्च 2022 से) रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर के बोर्ड में नहीं हैं।
रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर का आया बयान
रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने ईडी के FEMA सर्वे पर मीडिया रिपोर्ट्स पर सफाई दी है। कंपनी की ओर से कहा गया है कि यह मामला 15 साल पुराना है। 2010 में कंपनी ने जयपुर-रिंगस हाईवे के लिए प्रकाश एस्फाल्टिंग को EPC कॉन्ट्रैक्ट दिया था। यह घरेलू कॉन्ट्रैक्ट था। विदेशी मुद्रा का कोई लेन-देन नहीं हुआ। काम पूरा हो चुका है। कंपनी का ठेकेदार से कोई रिश्ता नहीं बचा। आखिरी 4 साल से टोल रोड एनएचएआई के पास है। कंपनी और अधिकारी पूरी तरह सहयोग कर रहे हैं। इस कार्रवाई से बिजनेस, फाइनेंशियल परफॉर्मेंस, शेयरहोल्डर्स, कर्मचारियों या स्टेकहोल्डर्स पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
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