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    टेंडर पाम हॉस्पिटल ने एक साल में किए 100 से ज्यादा वास्कुलर ऑपरेशन, किडनी के मरीजों के लिए राहत

    Updated: Wed, 31 Dec 2025 02:58 PM (IST)

    टेंडर पाम हॉस्पिटल, लखनऊ ने 2025 में 100 से अधिक जटिल डायलिसिस एक्सेस (एवी फिस्टुला) मामलों का सफलतापूर्वक प्रबंधन किया। इनमें असफल फिस्टुला और गंभीर ...और पढ़ें

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    टेंडर पाम हॉस्पिटल ने 2025 में 100 से अधिक जटिल एवी फिस्टुला मामलों का सफल प्रबंधन किया

    ब्रांड डेस्क, नई दिल्ली। किडनी फेल्योर के कारण डायलिसिस पर निर्भर मरीजों के लिए वर्ष 2025 राहत भरा रहा। टेंडर पाम हॉस्पिटल, लखनऊ के वास्कुलर एवं एंडोवैस्कुलर सर्जरी विभाग में इस वर्ष 100 से अधिक जटिल डायलिसिस एक्सेस (AV Fistula) मामलों का सफलतापूर्वक प्रबंधन किया गया। इनमें बड़ी संख्या ऐसे मरीजों की रही, जिनकी पहले बनी फिस्टुला असफल हो चुकी थी या जिनमें डायलिसिस एक्सेस से जुड़ी गंभीर जटिलताएँ विकसित हो गई थीं।

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    डॉ. अशुतोष कुमार पांडेय के अनुसार, डायलिसिस मरीजों में एवी फिस्टुला का समय से खराब होना एक आम लेकिन गंभीर समस्या है। इसके कारण मरीजों को बार-बार डायलिसिस कैथेटर लगवाना पड़ता है, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ता है और डायलिसिस की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

    वर्ष 2025 में प्रबंधित जटिल मामलों में फेल हो चुकी या लगभग बंद हो चुकी एवी फिस्टुला, बार-बार सुई लगने से क्षतिग्रस्त नसें, पतली या कमजोर नसों वाले मरीज तथा वे रोगी शामिल रहे, जिन्हें पहले कई अस्पतालों में असफल उपचार के बाद रेफर किया गया था। इन मरीजों में जटिल एवी फिस्टुला निर्माण तकनीकों, री-कंस्ट्रक्टिव वास्कुलर सर्जरी और एंडोवैस्कुलर एंजियोप्लास्टी के माध्यम से बड़ी संख्या में फिस्टुला को दोबारा कार्यशील बनाया गया। उद्देश्य स्पष्ट रहा—डायलिसिस कैथेटर पर निर्भरता कम करना और मरीज को दीर्घकालिक, सुरक्षित डायलिसिस एक्सेस उपलब्ध कराना।

    विशेषज्ञों का मानना है कि डायलिसिस एक्सेस की संपूर्ण देखभाल—जिसमें फिस्टुला का निर्माण, नियमित निगरानी, जटिलताओं की पहचान और समय पर सुधार शामिल है—किसी अन्य विशेषज्ञता द्वारा नहीं, बल्कि केवल वास्कुलर सर्जरी के अंतर्गत ही संभव है। यही कारण है कि टेंडर पाम हॉस्पिटल में डायलिसिस एक्सेस के मामलों का प्रबंधन एक समर्पित वास्कुलर सर्जरी यूनिट के माध्यम से किया जा रहा है, जहाँ यह सेवा पूर्णकालिक, औपचारिक रूप से प्रशिक्षित M.Ch वास्कुलर सर्जन (PGI चंडीगढ़ एवं श्री चित्रा तिरुनल, त्रिवेंद्रम) द्वारा प्रदान की जाती है।

    डॉ. पांडेय का कहना है, “एवी फिस्टुला केवल एक बार की सर्जरी नहीं है। इसकी निरंतर निगरानी और समय पर हस्तक्षेप अत्यंत आवश्यक है। यदि मरीज सही समय पर वास्कुलर सर्जन से संपर्क करें, तो अधिकांश फिस्टुला को बचाया जा सकता है।”

    डायलिसिस पर चल रहे मरीजों और उनके परिजनों को सलाह दी जाती है कि फिस्टुला में सूजन, दर्द, डायलिसिस के दौरान कम फ्लो या बार-बार सुई लगाने में परेशानी जैसे संकेतों को नजरअंदाज न करें। समय पर परामर्श लेकर फिस्टुला को बचाया जा सकता है।

    वर्ष 2025 में 100 से अधिक जटिल एवी फिस्टुला मामलों का सफल प्रबंधन यह दर्शाता है कि सही विशेषज्ञता और समन्वित वास्कुलर केयर से डायलिसिस मरीजों की जीवन-गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार संभव है।