Savlon Swasth India Mission की पावरफुल स्टोरीटेलिंग ने हैंड हाइजीन कैंपेन को घर-घर तक पहुंचाया
Savlon Swasth India Mission ने फैसला लिया कि स्वच्छता जैसे अहम विचार को स्कूल की नींव में शामिल करके पूरे समाज के भविष्य को स्वस्थ बनाया जा सकता है। हाइजीन सिर्फ एक सोच नहीं बल्कि जिंदगी का एक अहम हिस्सा है- Savlon Swasth India Mission इसी दृष्टि के साथ काम कर रहा है और स्वच्छता की ये शुरुआत की उन्होंने हाथों की सफाई से।

ब्रांड डेस्क, नई दिल्ली। बचपन की यादों में एक तस्वीर हमेशा साफ रहती है – मां का हाथ पकड़कर पहली बार स्कूल जाना, नए दोस्तों से मिलना, और वही पहला दिन जब किसी छोटी सी चोट पर पहली बार एंटीसेप्टिक लगाया गया था। यह सिर्फ एक व्यक्ति का अनुभव नहीं, बल्कि हर किसी की यादों में बसी एक कहानी है। और इसी कहानी का एक महत्वपूर्ण अंग है – स्वच्छता और स्वास्थ्य।
भारत जैसे विशाल देश में, जहां स्वच्छता और सुरक्षा को लेकर अब भी जागरूकता की कमी है, Savlon Swasth India Mission एक ऐसे बदलाव का हिस्सा बना है जो बचपन से ही सुधार की नींव रखता है। यह सिर्फ एक अभियान नहीं, बल्कि समाज में एक सोच बदलने का प्रयास है – हाथों की सफाई और व्यक्तिगत स्वच्छता को जीवन का हिस्सा बनाने का। जब भी हम बीमार पड़ते हैं, तो डॉक्टर का सबसे पहला सवाल होता है कि आपका हैंड हाइजीन कैसा है? 2018 के एक सर्वे में पाया गया कि भारतीय जनसंख्या का केवल 35.82% हिस्सा ही खाने से पहले हाथ धोने के नियम का पालन करता है। इसका सबसे बड़ा कारण है जागरूकता की कमी, और इसी दिशा में Savlon Swasth India Mission ने हाथों की सफाई को अपनी प्राथमिकता बनाकर लोगों को जागरूक करने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
किसी संदेश को असरदार बनाना हो, तो उसे केवल बताया नहीं जाता, बल्कि लोगों की जिंदगी का हिस्सा बनाया जाता है। ITC का Savlon Swasth India Mission एक ऐसा ही उदाहरण है, जिसने हैंड हाइजीन को न केवल एक आदत, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन में बदल दिया। 2016 में शुरू हुआ यह अभियान अब तक 37,000 से अधिक स्कूलों और 10 मिलियन से ज़्यादा बच्चों तक पहुँच चुका है। इसकी अनूठी और रचनात्मक मुहिम ने इसे हर घर तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभाई है।
आइए जानते हैं कि कैसे एक छोटे से आइडिया ने लोगों की सोच बदल दी।
भारत में ज़्यादातर स्कूल टीचर्स और अभिभावकों की सबसे बड़ी परेशानी यही रही है कि उनके बच्चे अक्सर बीमार पड़ जाते हैं और स्कूल नहीं जा पाते। जब इस समस्या का असली कारण जानने की कोशिश की गई, तो पता चला कि ज़्यादातर बच्चे खाने से पहले हाथ साबुन से नहीं धोते। इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए सैवलॉन हेल्दी हैंड्स चॉक स्टिक्स की शुरुआत हुई। इसमें साबुन को चॉक के साथ मिला दिया गया, जिससे बच्चे जब भी इससे लिखते, तो उनके हाथों में चॉक के साथ-साथ साबुन भी लग जाता। इससे स्कूलों में बच्चों के अंदर हाथ धोने की आदत को बढ़ावा मिला, साथ ही उनके स्वास्थ्य में सुधार भी देखने को मिला।
ITC के savlon swasth india mission ने यह सोचा कि बच्चे दिनभर स्कूल में सिर्फ पढ़ते ही नहीं, बल्कि खेलते भी हैं। तब ऐसा क्या किया जाए कि हाथ धोने की प्रक्रिया में कोई रुकावट न आए? एक बात और थी कि एक उम्र के बाद बच्चों को चॉक के बजाय पेन का इस्तेमाल करना पड़ता है, अब उन बच्चों को हाथ धोने के लिए कैसे प्रेरित किया जाए? इसी कारण Savlon swasth india mission सिर्फ चॉक स्टिक्स तक ही सीमित नहीं रहा। चॉक स्टिक्स की बेजोड़ सफलता के बाद, Savlon swasth india mission ने कदम बढ़ाया Id guard की तरफ। Id Guard अभियान के अंतर्गत Savlon swasth india mission ने बच्चों के आईडी कार्ड को ही पोर्टेबल हैंडवॉश में बदल दिया। रिसर्च के अनुसार, 6-12 साल की उम्र के बच्चे हाथ धोने में लापरवाही बरतते हैं। इस पहल ने स्कूलों में स्वच्छता सुनिश्चित करने में मदद की और यह अभियान 10 राज्यों के 5000 से अधिक स्कूलों में सफलतापूर्वक लागू किया जा चुका है। और सबसे मज़ेदार बात यह हुई कि अब बच्चों को साबुन की छीना-झपटी नहीं करनी पड़ेगी, क्योंकि अब सभी बच्चों के पास उनका अपना हैंडवॉश होगा।
लेकिन स्कूल टीचर्स और माता-पिता की बातें बच्चे एक समय के बाद सुनना बंद कर देते हैं, पर वही बात उनका कोई हीरो कहे, तो वे उसे तुरंत मान लेते हैं। क्रिकेट के बादशाह सचिन तेंदुलकर ने इस अभियान में सहयोग दिया। जब किसी बड़े संदेश को घर-घर तक पहुंचाने की बात आती है, तो कई बार चेहरे से ज्यादा आइडिया असर करता है। सभी को पता है कि सचिन के लिए उनके हाथ कितने महत्वपूर्ण हैं। सैवलॉन हैंड एंबेसडर अभियान में सचिन तेंदुलकर का चेहरा नहीं, बल्कि उनके हाथों की हरकत और आवाज को दिखाया गया, जिससे यह समझाया गया कि हैंड हाइजीन क्यों ज़रूरी है। इस कैंपेन ने 20 मिलियन से अधिक लोगों तक सोशल मीडिया और टीवी के माध्यम से अपनी पहुंच बनाई।
बात क्योंकि बच्चों की थी, तो उनकी प्रेरणा भी ऐसी होनी चाहिए थी, जो उनके बालमन पर गहरी छाप छोड़ सके और लंबे समय तक उन्हें प्रेरित करे। इसी सोच के साथ, Savlon Swasth India Mission ने संपर्क किया फुट आर्टिस्ट स्वप्ना ऑगस्टीन से। केरल की फुट आर्टिस्ट स्वप्ना ऑगस्टीन, जिनके लिए उनके पैर ही उनका सब कुछ हैं, उन्होंने भी इस मिशन में अपना योगदान दिया। "No Hands Unwashed" कैंपेन के जरिए उन्होंने यह संदेश दिया कि अगर वे अपने पैरों को भी साबुन से धो सकती हैं, तो हम अपने हाथों को क्यों नहीं? यह एक मजबूत संदेश था, जिसने लाखों लोगों को प्रेरित किया। WHO की रिपोर्ट के अनुसार, सही तरीके से हाथ धोने से 40% तक संक्रामक बीमारियों से बचा जा सकता है, और इस कैंपेन ने यही बात सटीक तरीके से प्रस्तुत की।
Savlon Swasth India Mission: एक सीख, जो घर-घर तक पहुंची
हाइजीन केवल एक आदत नहीं, बल्कि एक ज़िम्मेदारी है। Savlon swasth india mission ने यह साबित कर दिया कि जब अभियान की स्टोरीटेलिंग में ज़मीनी स्तर पर कनेक्शन हो, तो यह सिर्फ़ ब्रांड प्रमोशन तक सीमित नहीं रहता, बल्कि एक बड़े सामाजिक बदलाव की ओर बढ़ता है। इस मिशन ने अब तक 100 मिलियन से अधिक भारतीयों तक पहुंच बनाई है और यह संख्या लगातार बढ़ रही है। यह केवल एक ब्रांड की पहल नहीं, बल्कि एक जनांदोलन बन चुका है – हाथ धोना, बीमारियों को रोकना। ये मिशन सिर्फ एक समय तक की सीमित यात्रा नहीं है, बल्कि यह एक निरंतर प्रवाह है, जो हर नए कदम के साथ और मजबूत होता जा रहा है। यह अभियान हमें याद दिलाता है कि स्वच्छता सिर्फ एक आदत नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है, जो हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। इस अभियान का लक्ष्य भविष्य के हर बच्चे को स्वच्छ और सुरक्षित पर्यावरण देना है, जिसमें हाथों की सफाई एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। क्योंकि एक छोटी सी आदत – हाथ धोना – एक बड़े परिवर्तन की आधारशिला बन सकती है।
Note:- यह आर्टिकल ब्रांड डेस्क द्वारा लिखा गया है।
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