कैमरे में कैद हुए 3 क्यूट बेबी! VTR से आ रही गुड न्यूज, मध्यप्रदेश-राजस्थान की कर रहा बराबरी
वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (वीटीआर) में समृद्ध अधिवास प्रबंधन के कारण बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है। घास के मैदानों का विस्तार किया जा रहा है जिससे शाकाहारी जीवों की संख्या बढ़ी है। वर्ष 2010 में 50 हेक्टेयर घास का मैदान था जो अब 3000 हेक्टेयर हो गया है। वीटीआर में भोजन श्रृंखला को बेहतर बनाने पर ध्यान दिया जा रहा है जिससे बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है।

जागरण संवाददाता, बेतिया। वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में समृद्ध अधिवास प्रबंधन के चलते पहले जहां एक बाघिन एक दो शावक जनती थी, अब वह तीन-तीन की संख्या में जन (जन्म देना) रही हैं।
अब यह देश के सबसे समृद्ध टाइगर रिजर्व मध्यप्रदेश का कान्हा एवं पेंच, राजस्थान के रणथंभौर टाइगर रिजर्व की श्रेणी में शमिल होने की स्थिति में आ गया है।
इसका सबसे मुख्य कारण वीटीआर क्षेत्र में घास के मैदान को विस्तृत किया जाना है। वीटीआर प्रशासन से सफल पहल से घास के मैदान में तेजी से विस्तार किया जा रहा है।
वर्ष 2010 में जहां वीटीआर 50 में हेक्टेयर में घास का मैदान था, जो बढ़कर पिछले वर्ष 3000 हेक्टेयर में पहुंच गया है। इससे पांच हजार हेक्टेयर बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है।
ताकि यहां शाकाहारी वन्य जीवों की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हो। यहीं कारण है कि शाकाहारी जानवरों की संख्या बढ़ी है।
क्षेत्र निदेशक डा. नेशामणि की मानें तो बाघों की संख्या बढ़ाने के लिए घास के मैदान बढ़ाने के साथ-साथ उसकी सुरक्षा व्यवस्था दुरुस्त कर दिया जाय, तो इसकी संख्या बढ़नी तय है।
ऐसा इसलिए कि बाघ बिल्ली की प्रजाति का वन्य प्राणी है। उसे अनुकूल व्यवस्था मिले तो वह तीन चार की संख्या में बच्चे दे सकते हैं। हाल के दिनों में ट्रैप कैमरे में एक बाघिन के साथ तीन-तीन शावक देखे जा रहे हैं, जो पहले नहीं दिखते थे।
वीटीआर में भोजन श्रृंखला को बेहतर बनाने की हो रही पहल
बाघों एवं अन्य वन्य प्राणियों के लिए अधिवास प्रबंधन बेहतर बनाने के लिए स्वस्थ भोजन श्रृंखला को विकसित करना सबसे बड़ा काम है। इसे मध्य में रखकर वीटीआर प्रशासन इस पर काम कर रहा है।
इसके परिणाम भी सुखद मिल रहे हैं। यही कारण है कि यहां बाघों की संख्या में संतोषजनक वृद्धि हुई है। इसे देखते हुए भोजन श्रृंखला को और अधिक बेहतर बनाने की पहल की जा रही है।
वीटीआर में जंगली खरपतवारों को जलाने की जगह उसे उखाड़ा जा रहा है, ताकि उनका समूल नाश हो सके। ऐसा करने से जानवरों के उपयुक्त अन्य वनस्पति अच्छी तरह से फल-फूल पाती हैं।
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