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    Bihar News: सेकेंड चांस में बदली जिंदगी, पढ़ाई छोड़ चुके लोग अब पूरी कर रहे शिक्षा

    Updated: Wed, 23 Jul 2025 05:04 PM (IST)

    पश्चिम चंपारण के चनपटिया में सेकेंड चांस अभियान शिक्षा से वंचित महिलाओं के जीवन में बदलाव ला रहा है। जीविका और प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन की पहल से 55 वर्षीय निर्मला देवी और 35 वर्षीय रीता देवी जैसी महिलाओं ने मैट्रिक परीक्षा पास की है। 2026-27 सत्र में 500 और लोगों को परीक्षा दिलाने का लक्ष्य है।

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    चनपटिया के कुमारबाग स्थित परीक्षा केंद्र के बाहर प्रवेश पत्र के साथ परीक्षार्थी।

    आलोक कुमार चौबे, चनपटिया (पश्चिम चंपारण)। उम्र के आधे पड़ाव में लोग जिम्मेदारियों से मुक्त होकर सामान्य जीवन चाहते हैं। कई बातों को लेकर अरुचि होने लगती है, लेकिन बिहार के पश्चिम चंपारण में शिक्षा को लेकर उत्साह दिख रहा है। चनपटिया की 55 वर्षीया निर्मला देवी ने उस उम्र में अपने सपनों को उड़ान देने की ठानी, जब चार बच्चों में दो बेटियों की शादी कर दी।

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    परिस्थितियों की विवशता के कारण 1987 में ही पढ़ाई छोड़ चुकीं निर्मला को दोबारा पढ़ने का मौका मिला तो साबित किया कि सेकेंड चांस में जिंदगी कैसे बदलती है। उन्होंने 2024 में मैट्रिक परीक्षा पास की। सेकेंड चांस में ही चनपटिया की रीता देवी (35) के जीवन में बदलाव आया है। वर्ष 2007 में पहली बार मैट्रिक की परीक्षा दी थी, लेकिन सफल नहीं हो सकीं।

    कुछ समय बाद शादी हो गई तो घर-गृहस्थी की जिम्मेदारियों में उलझ गईं। 2014 में जीविका से जुड़ीं और सेकेंड चांस में 2024 में मैट्रिक परीक्षा के लिए पंजीकरण कराया और पास हो गईं। अब जीविका के प्रखंड कार्यालय में कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन के रूप में हेल्प डेस्क पर काम कर रही हैं। प्रतिमाह 2500 मानदेय मिल रहा है। तीन बच्चों की मां रीता अब आगे पढ़ना चाहती हैं। यह बदलाव जीविका और प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन आफ इंडिया की पहल से आया है।

    चनपटिया की ही 45 वर्षीया इंदु देवी, 38 वर्षीया सरोज देवी व अनीता भी इस बदलाव को महसूस कर रही हैं। इंदु कहती हैं, पारिवारिक कारणों से 28 वर्ष पहले पढ़ाई छोड़ दी थी। मैट्रिक पास नहीं होने का मलाल था, लेकिन अब ऐसा नहीं रहा। वर्ष 2024 में शुरू 'सेकेंड चांस' अभियान ग्रामीण शिक्षा की तस्वीर बदल रहा है।

    जनवरी, 2024 में प्रथम संस्था की ओर से मिला था प्रस्ताव

    जीविका के प्रखंड परियोजना प्रबंधक मनोज कुमार रजक बताते हैं कि जनवरी, 2024 में प्रथम संस्था की ओर से विशेष परीक्षा कार्यक्रम का प्रस्ताव मिला था। संस्था प्रतिनिधि अमृता कुमारी और आलोक कुमार के साथ मिलकर इसकी रूपरेखा तैयार की गई थी। जीविका दीदियों को दोबारा पढ़ाई की ओर लौटाना चुनौतीपूर्ण कार्य था।

    हमने गांवों में घूमकर बात की और प्रोत्साहित किया। जैसे-जैसे काउंसिलिंग सत्र और लाइब्रेरी के माध्यम से जानकारी फैली, लोगों में जागरूकता और उत्साह बढ़ता गया। वर्ष 2025 में कुल 33 दीदियों ने पंजीकरण कराया था, जिनमें 28 ने नेशनल इंस्टीट्यूट आफ ओपन स्कूलिंग (एनआइओएस) से मैट्रिक की परीक्षा दी थी।

    मनोज बताते हैं कि इन महिलाओं ने साबित किया है कि प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती है। मौके की तलाश होती है। सेकेंड चांस अभियान ने शिक्षा से वंचित महिलाओं को फिर से सपने देखने और उन्हें पूरा करने का अवसर दिया है। इस पहल का उद्देश्य ऐसी महिलाओं और युवाओं को दोबारा शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ना है जो किसी कारणवश मैट्रिक की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाईं।

    चनपटिया स्थित जीविका लाइब्रेरी को इस कार्यक्रम का केंद्र बनाया गया है। समूह, ग्राम संगठन और संकुल संघों के सहयोग से बैठकें की गईं और समुदाय को जानकारी दी गई कि वे एनआइओएस के जरिए मैट्रिक की परीक्षा दोबारा दे सकते हैं।

    सत्र 2026-27 में 500 महिला-पुरुषों को परीक्षा दिलाने का लक्ष्य

    वर्ष 2025 में परीक्षा के लिए 33 लोगों का चयन हुआ था, जिनमें 30 महिलाएं और तीन पुरुष थे। इनकी उम्र सीमा 16 से 55 वर्ष थी। अप्रैल-मई में चनपटिया के कुमारबाग स्थित नवोदय विद्यालय में आयोजित परीक्षा में 28 विद्यार्थी शामिल हुए थे, जिनमें 12 महिलाएं और एक पुरुष ने सफलता पाई।

    बाकी 15 विद्यार्थी एक-दो विषय में पुनः परीक्षा देकर अगली बार पूरी तरह पास हो सकेंगे। सत्र 2026-27 में 500 महिला-पुरुष को मैट्रिक की परीक्षा दिलाने का लक्ष्य रखा गया है। साथ ही, जिन्होंने मैट्रिक की परीक्षा में सफलता प्राप्त की है, उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए प्रेरित किया जा रहा है।

    परीक्षा में ऐसी महिलाएं शामिल थीं, जिन्होंने खेती-पशुपालन और घर संभालने के बाद पढ़ाई के लिए समय निकाला। एक साल तक जीविका लाइब्रेरी और कार्यालय सभागार में आनलाइन और आफलाइन क्लास कराई गई। नियमित टेस्ट, विषयवार रूटीन और गहन अनुश्रवण के जरिये पढ़ाई सुनिश्चित की गई। जीविका संकुल संघ, जूम और जीविका कार्यालय के सहयोग से तैयारी की। प्रखंड परियोजना प्रबंधक बताते हैं कि अगले वर्ष के लिए लक्ष्य बड़ा रखा गया है, इसके अनुरूप तैयारी की जा रही है। साथ ही, अन्य प्रखंडों के लिए माडल प्रस्तावित किया जा रहा ताकि इसका विस्तार हो सके।

    शिक्षा को लेकर लोगों में काफी जागरूकता आई है। जीविका दीदियों की यह उपलब्धि इसी का परिणाम है। ये समाज के लिए प्रेरणास्रोत बन रही हैं। यह सकारात्मक बदलाव है। - रवींद्र कुमार, जिला शिक्षा पदाधिकारी, पश्चिम चंपारण