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    Sonpur Mela 2025 : उद्घाटन की परंपरा टूटी, इतिहास में दर्ज हुआ बदलाव, यह रहा कारण

    By Gangesh GunjanEdited By: Vyas Chandra
    Updated: Sun, 09 Nov 2025 05:53 PM (IST)

    विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेले का उद्घाटन इस बार कार्तिक माह की बजाय मार्गशीर्ष माह में हुआ, जिससे सदियों पुरानी परंपरा टूट गई। धार्मिक गुरुओं से सलाह न लेने के कारण संतों ने नाराजगी जताई और सुविधाओं की कमी पर असंतोष व्यक्त किया। विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections 2025) के कारण तिथियों में बदलाव किया गया, जिससे श्रद्धालुओं और दुकानदारों को परेशानी हुई। धार्मिक पक्ष को गौण किए जाने से संतों में असंतोष है।

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    स्‍नान करते हाथी और कुश्‍ती लड़ते पहलवान। जागरण

    जागरण संवाददाता, हाजीपुर। विश्व प्रसिद्ध हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेले का रविवार को आधी-अधूरी तैयारियों के बीच उद्घाटन किया गया।

    इस उद्घाटन के साथ ही मेले ने अपना ही इतिहास बदल डाला, क्योंकि कार्तिक माह में उद्घाटन की सदियों पुरानी परंपरा इस बार सरकारी निर्णय से टूट गई।

    सोनपुर मेला कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर शुरू होता है, लेक‍िन बार मेले का उद्घाटन मार्गशीर्ष (अगहन) महीने में हुआ। जिस तिथि को यह उद्घाटन हुआ, उसे धार्मिक दृष्टि से कोई विशेष शुभ तिथि नहीं माना जाता।


    पर्यटन विभाग और जिला प्रशासन ने उद्घाटन तिथि बदलने से पहले हरिहर क्षेत्र तीर्थ के मठाधीशों, संतों, मठ-मंदिरों के पुजारियों और सर्वज्ञ ब्राह्मणों से कोई सलाह-मशविरा नहीं की।

    तिथि परिवर्तन से धार्मिक परंपराओं पर असर पड़ा। संतों ने स्वयं सड़कों पर झाड़ू लगाई। सफाई, पानी व बिजली की कमी पर नाराजगी जताई। इस वर्ष भी नदी किनारे संतों के शिविर और पंडाल लगाने की उचित व्यवस्था नहीं हो सकी।

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    पूर्णिमा पर स्‍नान करने वाले नहीं घूम सके मेला 

    कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर जब लाखों श्रद्धालु गंगा-गंडक संगम पर स्नान करने पहुंचे, उस समय मेला का उद्घाटन नहीं हुआ था। इस कारण लोग मेला नहीं घूम सके। इसका खामियाजा दुकानदारों को भुगतना पड़ा।  

    विधानसभा चुनाव की वजह से बदलनी पड़ी तिथियां 

    इस बार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections 2025) की तैयारियों ने भी सोनपुर मेले की परंपरा पर असर डाला। 

    विधानसभा चुनाव को देखते हुए सारण के जिलाधिकारी अमन समीर की अध्यक्षता में 7 अक्तूबर को सोनपुर अनुमंडल सभागार में बैठक हुई।

    बैठक में आम सहमति से निर्णय लिया गया कि मेला का शुभारंभ 9 नवंबर तथा समापन 10 दिसंबर को किया जाएगा।
    इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि पहले से तय 3 नवंबर की जगह 9 नवंबर को उद्घाटन हुआ।

    चूंकि उद्घाटन कमिश्नर स्तर के अधिकारी द्वारा किया गया, इसलिए भीड़ उस स्तर की नहीं रही जो आमतौर पर राजनीतिक नेताओं के उद्घाटन समारोहों में देखी जाती है।

    हालांकि, डीएम अमन समीर के प्रयासों से मेला को खूबसूरत और व्यवस्थित बनाने की दिशा में काम हुआ है। उनकी उपलब्धि यह रही कि मेलावधि (32 दिन) में कोई कटौती नहीं की गई। फिर भी, धार्मिक पक्ष को गौण किए जाने की बात संतों और श्रद्धालुओं के बीच असंतोष का कारण बनी हुई है।

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    गज-ग्राह चौक और संत रामलखन दास मार्ग रहे उदास 

    उद्घाटन के दिन 9 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा स्नान समाप्त होने के बाद जब श्रद्धालु मेला पहुंचे, तो गज-ग्राह चौक से लेकर संत रामलखन दास मार्ग तक सन्नाटा पसरा रहा।

    गज-ग्राह चौक और हरिहरनाथ थाना मार्ग पर न तो कोई भीड़ थी, न संतों का प्रवचन। पूरे साधु गाछी क्षेत्र में स्थायी मठ-मंदिरों को छोड़कर कहीं से भी धार्मिक ध्वनि नहीं सुनाई दी।

    संतों का कहना है कि यह सब धार्मिक तिथि को नजरअंदाज करने का परिणाम है। पहले ही श्री गजेंद्र मोक्ष देवस्थानम दिव्य देश पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी लक्ष्मणाचार्य ने तिथि परिवर्तन पर नाराजगी व्यक्त कर दी थी।