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    सैकड़ों वर्षो के इतिहास में पहली बार नहीं लगेगा सोनपुर मेला

    By JagranEdited By:
    Updated: Sun, 22 Nov 2020 06:51 PM (IST)

    सैकड़ों वर्षो के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाला विश्व विख्यात हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला इस वर्ष नहीं लगेगा ।

    सैकड़ों वर्षो के इतिहास में पहली बार नहीं लगेगा सोनपुर मेला

    शंकर सिंह , सोनपुर :

    सैकड़ों वर्षो के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाला विश्व विख्यात हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला इस वर्ष नहीं लगेगा । भूमि सुधार एवं राजस्व मंत्री रामसूरत राय के बयान के बाद यह स्पष्ट हो गया है। कारण है कोरोना महामारी। स्थिति चाहे जो भी हो इस ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मेले की स्थापित परंपरागत श्रृंखला की इस बार एक कड़ी खंडित हो गयी। मेले के नहीं लगने से सरकारी राजस्व की तो क्षति होगी ही, इसके साथ ही जम्मू कश्मीर, हरियाणा, पंजाब तथा यूपी के सहारनपुर, कानपुर, नीरपुरा व हरिद्वार आदि जगहों से यहां गर्म कपड़ों के लगभग दो माह से अधिक समय तक कारोबार करने आने वाले व्यापारियों को भी भारी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ेगा । वे लोग इस बड़े मेले को ध्यान में रखते हुये महीनों पहले से आर्डर देकर अपना माल तैयार करवाते हैं। इस उम्मीद पर कि सारा माल हरिहर क्षेत्र मेला में खप जायेगा, और ऐसा होता भी है ।

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    पशुओं की खरीद बिक्री को अगर इसमें जोड़ दिया जाये तो केवल मेले के 32 दिनों की सरकारी अवधि में ही एक अनुमान के मुताबिक लगभग 200 करोड़ से ऊपर का कारोबार हो जाता है। अकेले घोड़ों के कारोबार का आंकड़ा ही 20 करोड़ रुपये से ज्यादा का हुआ करता है। यहां केवल बिहार से ही नहीं बल्कि यूपी के पूर्वी जिलों से भी अच्छी नस्ल के घोड़े लाये जाते रहे हैं, कितु इस बार यह कारोबार नहीं हो सकेगा। इस मेले के नहीं लगने से कमोबेश दस हजार से अधिक लोगों का रोजगार बाधित होगा। इनमें बाहर से आने वाले छोटे-बड़े लगभग दो हजार दुकानदारों और उनके साथ आने वाले कर्मियों के साथ साथ स्थानीय मजूदरों, कामगारों, जमीन मालिकों, फूल मालियों, कुंभकारों, उपले व सूप बेचने तथा बांस बल्ली बेचने वालों की बड़ी जमात शामिल है। इसके अलावा डेढ़ के करीब आटो, रिक्शा, ई रिक्शा तथा यात्रियों को ढोने वाले वाहनों को भारी क्षति उठानी होगी। हरिहर क्षेत्र मेला कृषि मेला के रूप में भी विख्यात रहा है और सबसे बड़ी बात कि इस मेले से ही बिहार के विभिन्न जिलों के 50 हजार से ऊपर किसान परिवार कृषि उपकरण की खरीद किया करते हैं, उन्हें इस बार निराश होना पड़ेगा । इसके साथ ही कृषि बागवानी से जुड़े नर्सरी के कारोबारियों को भी नुकसान होगा ।केवल कार्तिक पूर्णिमा स्नान के लिये ही यहां दस लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं का आगमन होता है। उसके बाद सरकारी आंकड़े की माने तो इस मेले में प्रतिदिन तकरीबन 40 से 50 हजार दर्शकों का आवागमन होते रहता है। इस बीच-खरीद बिक्री का सिलसिला भी जारी रहता है। इस मेले की शुरुआत कब से हुयी इसका कोई प्रमाणिक साक्ष्य नहीं मिलता। लेकिन ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि एक जमाने में यह मेला जंगी हाथियों का बहुत बड़ा केन्द्र हुआ करता था। मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य, मुगल बादशाह अकबर तथा 1857 गदर के नायक बाबू वीर कुंवर सिंह ने भी इसी मेले से हाथियों की खरीद की थी।