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    Hajipur: निस्‍वार्थ सेवाभाव की मिसाल बनीं 'ANM अनुराधा', इनकी कर्मठता पर बन चुकी है डाक्‍यूमेंट्री फिल्‍म

    By Ravi Shankar ShuklaEdited By: Prateek Jain
    Updated: Mon, 02 Jan 2023 06:00 PM (IST)

    अक्सर सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल उठाए जाते हैं लेकिन आज भी कई ऐसे सरकारी कर्मी हैं जिनकी कर्तव्यनिष्ठा की लोग प्रशंसा करते नहीं थकते हैं। ऐसे कर्मियों की सेवा की बदौलत महकमे के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ता है। कुछ ऐसी ही है ANM अनुराधा की कहानी...

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    सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में एएनएम को प्रशिक्षण देतीं अनुराधा

    हाजीपुर, रवि शंकर शुक्ला: अक्सर सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल उठाए जाते हैं, लेकिन आज भी कई ऐसे सरकारी कर्मी हैं; जिनकी कर्तव्यनिष्ठा की लोग प्रशंसा करते नहीं थकते हैं। ऐसे कर्मियों की सेवा की बदौलत महकमे के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ता है।

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    सरकारी स्वास्थ्य सेवा में अपनी कर्तव्यनिष्ठा की बदौलत एक एएनएम की चर्चा हर जुबान पर है। एएनएम अनुराधा पिछले छह साल से भगवानपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के लेबर रूम में काम कर रही हैं। लेबर रूम में लोगों की असाधारण सेवा के लिए उन्हें इस क्षेत्र में सम्मानित राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल अवार्ड के लिए भी नामित किया जा चुका है।

    अनुराधा पर बन चुकी है डाक्‍यूमेंट्री फिल्म 

    अनुराधा को इस पुरस्कार के लिए ऐसे ही नामित नहीं किया गया, बल्कि यह इनकी कर्तव्यनिष्ठा और स्किल की वजह से मिली है। जिससे न जाने इन्होंने कितनी प्रसूताओं और नवजात की जान बचाई है। वहीं, इनकी सेवा की तत्परता इस बात से दिखती है कि वह पांच साल के अपने बेटे को अकेले छोड़ ड्यूटी पर निकल जाती थीं। अपनी स्किल्स की बदौलत ही अनुराधा को 2021 में महिला दिवस के उपलक्ष्य में पटना में वैशाली जिले के लिए मेंटर के रूप में भी प्रशिक्षण मिला। अनुराधा की इन ढेर सारी उपलब्धियों के लिए उन पर एक डाक्यूमेंट्री भी बन चुकी है, जिसका प्रसारण राष्ट्रीय चैनल पर भी प्रसारित किया जा चुका है।

    अनुराधा ने 900 ग्राम वजन के बच्चे की बचाई जान

    अनुराधा कहती हैं कि 2019 में करहरी पंचायत की एक महिला प्रसव के लिए आयी थी। बच्चे का वजन मात्र 900 ग्राम था। एक माह तक मैंने उसे लगातार फालोअप कर उसकी मां को फोन पर कंगारू मदर केयर और स्तनपान की सलाह देती थी। उसने ठीक एक माह तक मेरे कहे अनुसार कार्य किया। एक महीने में उसी बच्चे का वजन दो किलो 200 ग्राम हो गया। वहीं, पिछले साल एक गरीब महिला को प्रसव के दौरान बच्चा का मुंह फंस गया था, जिससे बच्चे के जन्म के बाद उसकी नाभि को छोड़कर सभी नाड़ी बंद हो गयी थी। ऐसे में अम्बु बैग की सहायता से उसकी सांसें लौटाई। इस तरह की घटनाओं के लिए अमानत का प्रशिक्षण बहुत ही ज्यादा काम आया।

    अनुराधा को परिवार का मिलता है पूरा सहयोग

    अनुराधा कहती हैं कि उनके काम में उनके परिवार का पूरा सहयोग रहता है। बेटे के जन्म के बाद उनके पति ने उनके लिए काफी संघर्ष किया है। एक तरह से उन्होंने घर और बेटे की जिम्मेवारी लेकर मुझे मेरे काम के लिए समर्पित कर दिया। अनुराधा पूरी मुस्तैदी के साथ अपनी सेवा देने के साथ ही वहां तैनात एएनएम को प्रशिक्षण देती हैं और उन्हें कर्तव्यनिष्ठा का पाठ भी पढ़ाती हैं।

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