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    Supaul Assembly Seat 2025: भरपूर विकास के बाद भी बाढ़ पलायन की समस्याएं बरकरार, क्या बोल रही जनता?

    Updated: Wed, 09 Jul 2025 03:07 PM (IST)

    सुपौल विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व 35 वर्षों से विजेंद्र प्रसाद यादव कर रहे हैं। उनके कार्यकाल में सुपौल को जिले का दर्जा मिला और विकास हुआ पर पलायन गरीबी और पिछड़ेपन जैसी समस्याएं अब भी बनी हुई हैं। विपक्ष का कहना है कि विकास सिर्फ कागजों पर है जबकि स्थानीय लोगों का मानना है कि रोजगार के लिए पलायन अब भी जारी है।

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    भरपूर विकास के बाद भी बाढ़ पलायन की समस्याएं बरकरार, क्या बोल रही जनता?

    भरत कुमार झा, सुपौल। सन 1990 में जब कांग्रेस की हुकूमत का राज्य में पुरजोर विरोध हुआ, तब जनता दल उम्मीदवार के रूप में विजेंद्र प्रसाद यादव सुपौल विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े और विजयी घोषित हुए। तब से आज तक सुपौल का प्रतिनिधित्व इन्हीं के हाथों रहा और ये अब तक के अपने कार्यकाल में अधिकांश समय सत्ता के शीर्ष पर रहे।

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    जनता दल का विभाजन यानी जदयू और राजद का जब गठन हुआ तो ये जदयू में शामिल हुए और वर्तमान समय तक जदयू में ही बने हैं। लगातार 35 वर्षों तक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का रिकार्ड इन्होंने अपने नाम किया है। सरकार राजग की बनी हो या फिर महागठबंधन की, इनका दर्जा हमेशा दूसरे या तीसरे नंबर पर ही रहा। इनका नाम क्षेत्र में विकास के पर्याय के रूप में लिया जाता है।

    भले ही सत्ता में काबिज रहना ही कारण हो अथवा लगातार प्रतिनिधित्व, लेकिन क्षेत्र के विकास का क्रेडिट जनता इन्हीं को देती है। जब सूबे में बिजली एक बड़ी समस्या थी उस समय भी सुपौल जैसे सुदूर क्षेत्र को 22 से 23 घंटे बिजली की सुविधा मिला करती थी। आज पूरे सूबे में बिजली की स्थिति में काफी सुधार हुआ है, लेकिन सुपौल की बिजली की आज भी मिसाल दी जाती है।

    यह भी पढ़ें- Kurhani Assembly Seat 2025: चकाचक सड़कों में समस्याएं गुम, कुढ़नी में अभी बहुत काम की है जरूरत

    सुपौल को जिले का दर्जा, जिले का इंफ्रास्ट्रक्चर, सर्वांगीण विकास, सड़कों का जाल, कई उच्च स्तरीय पुल इन्हीं के प्रयास से हुआ। क्षेत्र का भरपूर विकास होने के बावजूद अब भी कई समस्याएं मुंह बाये खड़ी हैं। उद्योग का विकास और बाढ़-विस्थापन का निदान नहीं होने के कारण पलायन विवशता बनी हुई है। हर साल यहां से बड़ी संख्या में लोगों का पलायन होता है। गरीबी और पिछड़ापन भी इसका एक बड़ा कारण है।

    विद्वानों का कहना है कि गरीबी खत्म करनी है तो पावर और कम्युनिकेशन को दुरुस्त कर लिया जाए। हमने इसे प्राथमिकता के तौर पर लिया। सड़क और रेल के मामले में हम मजबूत होते जा रहे हैं। छह हाइवे हमारे जिले से गुजर रहे हैं। हमारा इलाका देश के अन्य प्रदेशों से सीधे तौर पर जुड़ता जा रहा है। तीन बड़े पुल का निर्माण हो रहा है। नए रेलखंड का निर्माण हुआ है। गाड़ी भी चलने लगी है। पहले हमलोग अंग्रेज वाली रेल लाइन पर ही यात्रा करते थे। कम्युनिकेशन बढ़ा तो किसानों की आमदनी बढ़ गई। जब मैं पहली बार यहां से विधायक बना तो सुपौल एक अनुमंडल था,आज संपन्न जिला है। पहले विधानसभा था आज लोकसभा है। - विजेंद्र प्रसाद यादव, मंत्री, बिहार सरकार

    इस ओर नहीं हुआ काम-

    • अस्पताल के बड़े-बड़े भवन बने, पर विशेषज्ञ डॉक्टर और सुविधा का अभाव, मरीज बाहर जाने को मजबूर।
    • जिले से छह-छह हाइवे गुजरने के बावजूद एक ट्रामा सेंटर आज तक स्थापित नहीं किया जा सका।
    • भले इंजीनियरिंग कॉलेज खुल गए हों, मेडिकल कॉलेज का निर्माण कार्य चल रहा हो, लेकिन दूसरा सरकारी कॉलेज नहीं खुल सका।
    • महिला कॉलेज का जहां सरकारीकरण नहीं हुआ वहीं दूसरा बालिका विद्यालय भी नहीं खोला जा सका।
    • रोजगार के लिए परदेस का सहारा, किसी उद्योग धंधे का नहीं होना।
    • कोसी विस्थापितों का दंश, बाढ़ के निदान का आज भी मलाल है।

    पांच वर्षों की उपलब्धियां-

    • सुपौल में नगर भवन और इंडोर स्टेडियम का निर्माण एवं सुपौल स्टेडियम का कायाकल्प।
    • जिले में मेडिकल कालेज, महिला आइटीआइ, मरौना में आइटीआइ और दलित छात्रावास का निर्माण।
    • तिल्हेश्वर स्थान का कायाकल्प, तिल्हेश्वर और लोरिक महोत्सव की शुरुआत।
    • परसरमा-अररिया फोरलेन सड़क, पुलिस लाइन के आगे से बायपास का निर्माण।
    • कोसी नदी में मुंगरार-डुमरिया पथ में पुल, पिपराखुर्द से नरहैया बलवा जाने वाली सड़क पर पुल निर्माण।

    सुपौल विधानसभा क्षेत्र पर एक नजर

    • पुरुष मतदाता-1,64,251
    • महिला मतदाता-1,53,722
    • थर्ड जेंडर-3
    • कुल मतदाता-3,18,016

    दो प्रखंड, 39 पंचायत, एक नगर निकाय

    सुपौल विधानसभा क्षेत्र में सुपौल सदर एवं मरौना दो प्रखंड क्षेत्र आते हैं। सुपौल सदर प्रखंड में कुल 26 व मरौना में 13 पंचायतें हैं। एक नगर परिषद क्षेत्र सुपौल आता है।

    35 वर्षों का विकास सिर्फ कागजों और घोषणाओं में : विपक्ष

    पिछले विधानसभा चुनाव में प्रतिद्वंद्वी रहे कांग्रेस प्रत्याशी मिन्नत रहमानी का कहना है कि सुपौल विधानसभा क्षेत्र के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। 35 वर्षों में जिस विकास की बात की गई, वह सिर्फ कागजों और घोषणाओं तक सिमट कर रह गई है। क्षेत्र में गन्ना, मखाना और जूट आदि की अपार संभावनाएं होने के बावजूद आज तक एक भी कारखाना स्थापित नहीं किया जा सका।

    किसान और स्थानीय लोग आज भी कच्चा माल औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर हैं। बेटियां उच्च शिक्षा के लिए दूसरे जिलों या राज्य से बाहर जाने को विवश हैं। कोसी विकास प्राधिकरण सिर्फ फाइलों और कोर्ट के आदेशों तक सीमित रहा। तीन दशक से कोई ठोस पहल नहीं हुई। महत्वाकांक्षी डगमारा पनबिजली परियोजना पर वर्षों से करोड़ों रुपये डीपीआर बनाने में ही खर्च कर दिए।

    लोहिया नगर में रेलवे ढाला तक बनने वाला एकमात्र ओवरब्रिज भी अधूरा पड़ा है। मरौना प्रखंड सदर प्रखंड से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है लेकिन 70 किलोमीटर अधिक दूरी तय करनी पड़ती है।

    क्या कहते हैं लोग?

    सुपौल का विकास कागज पर हुआ है। हमलोग विगत 30 वर्षों ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। हमलोग दलित समाज से आते हैं, लेकिन कोई सुध लेने वाला नहीं है। हर वर्ष बाढ़ से हमलोग परेशान होते हैं कोई ठोस समाधान अब तक नहीं निकाला गया। चट्टान टोली के पीछे कोसी बांध को जोड़ने वाली पुलिया को बनाने के लिए हमलोग 30 वर्षों से बोलकर थक गए, लेकिन बार-बार आश्वासन के बावजूद नहीं बन पाया। - संजय भारती पासवान, समाजसेवी

    वहीं, सुपौल के रामपुकार सिंह बताते हैं कि यहां पलायन की स्थिति ऐसी हो गई है कि महज दो वक्त की रोटी के लिए लोग बिहार से बाहर जा रहे हैं। बिहार सरकार में लगातार मंत्री होने के बावजूद हमारे सुपौल को उद्योग से नहीं जोड़ा जा सका। सुपौल के बगल दरभंगा में बड़े-बड़े अस्पताल होने के बावजूद वहां एम्स और हवाई अड्डा दोनों खोला गया जबकि सुपौल में एम्स की सख्त जरूरत थी।

    कोसी की कोख में बसा सुपौल जिले अगर आज विकास के मानचित्र पर॥ अपनी जगह बनाई है तो उसमें मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव का योगदान रहा है। छोटे पुल-पुलिया से लेकर बड़े-बड़े पुल व सड़कों का निर्माण कर जहां यातायात सुविधा को बेहतर बनाया गया है। वहीं जिले में शिक्षा व स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर करने में भी कोई कंजूसी नहीं बरती है। इसलिए तो ये अपने विधानसभा के ही नहीं बल्कि पूरे जिले के विश्वकर्मा कहे जाते हैं। - रामलखन चौधरी

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