Raksha Bandhan 2025: राखी बांधते समय जरूर पढ़ें ये मंत्र, बहन-भाई इन बातों का रखें विशेष ध्यान
रक्षाबंधन 9 अगस्त को मनाया जाएगा। यह पर्व भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है। द्रौपदी ने कृष्ण की उंगली पर साड़ी बांधकर उनकी मदद की थी। आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र के अनुसार यह पर्व देवलोक से धरती पर आया है। इंद्राणी ने इंद्र को रक्षा सूत्र बांधा था। राखी बांधते समय येन बद्धो बलिराजा मंत्र का जाप करना चाहिए।

संवाद सूत्र, करजाईन बाजार (सुपौल)। श्रद्धा, विश्वास एवं भाई-बहन के अटूट प्रेम का पर्व रक्षाबंधन 9 अगस्त यानि शनिवार को आयुष्मान योग में मनाया जाएगा। राखी का आध्यात्मिक, धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है। यह स्नेह का वह अमूल्य बंधन है जिसका बदला धन से नहीं चुकाया जा सकता।
महाभारत के अनुसार, द्रोपदी भगवान श्री कृष्ण को भाई मानती थी। एक बार कृष्ण भगवान की अंगुली कट गई। द्रोपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर मधुसूदन की अंगुली पर एक पट्टी बांध दी। चीरहरण होने पर कृष्ण भगवान ने उनकी लाज रखी और जीवनभर उनकी सहायता की।
रक्षाबंधन का महात्म्य बताते हुए आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है। आचार्य ने बताया कि देवलोक का रक्षाबंधन पर्व धरती पर भी शुरू हुआ। रक्षाबंधन के चलन के बीच सबसे गंभीर परिवर्तन इस रूप में हुआ कि रक्षा से अभिमंत्रित धागों को देवलोक में पत्नी द्वारा पति की कलाई पर बांधा जाता रहा, जबकि धरती पर बहन द्वारा भाई की कलाई पर बांधा जाने लगा।
देवलोक में सर्वप्रथम रक्षा के धागों को पत्नी इंद्राणी द्वारा अपने पति इंद्र को बांधा गया था। इसे ही पति रक्षा सूत्र भी कहा गया है। आचार्य ने बताया कि प्राचीन काल में एक बार देव और असुरों में 12 वर्षों तक भीषण युद्ध हुआ। ऋग्वेद में इस युद्ध के बारे में विशेष उल्लेख है। इसी युद्ध को वैदिक इतिहास में देवासुर संग्राम के नाम से जाना जाता है।
इस संग्राम के प्रारंभिक चरणों में देवराज इंद्र की पराजय हुई। देवता लोग कांतिहीन हो गए। इंद्र भी विजय की आशा छोड़कर रणभूमि से भाग खड़े हुए और अमरावती नामक तीर्थ में जा छिपे। अपनी पराजय से चिंतित होकर इंद्र ने गुरु बृहस्पति से परामर्श किया और दानवों से प्राणांतक युद्ध करने की मंशा बताई तथा इंद्र ने यह आशंका जताई कि दानव बली और मायावी हैं।
युद्ध में इंद्र को मारे जाने का भी खतरा है। इसी को लेकर देव गुरु बृहस्पति ने श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षा विधान करने के लिए कहा। इसके लिए उन्होंने इंद्र की धर्मपत्नी इंद्राणी को इस विधान की पूर्ण विधि भी बताई एवं मंत्र भी बताया। देव गुरु बृहस्पति के निर्देशानुसार श्रावण पूर्णिमा को प्रात:काल ही रक्षा विधान को विधिवत संपन्न किया और देव पुरोहितों द्वारा किए जा रहे स्वस्तिवाचन के बीच इंद्राणी ने इंद्र की दाईं कलाई पर रक्षा की उस पोटरी को बांध दिया जिसे बृहस्पति ने अभिमंत्रित किया था।
इसी रक्षा सूत्र के बल पर इंद्र की दानवों से रक्षा हो पाई और उन्होंने उन पर विजयश्री भी प्राप्त किया। इस देवासुर संग्राम युद्ध में देवताओं की ओर से युद्ध करने के लिए धरती से भी कई तेजस्वी राजा लोग गए हुए थे।
उन्होंने जब रक्षा मंत्र, रक्षा विधान और रक्षाबंधन की ऐसी महिमा देखी तो सहज मानव स्वभाव से प्रेरित होकर वे इस अनुष्ठान को धरती पर भी ले आए तथा इसे यहां प्रचलित किया। इस विधान में सबसे बड़ा बदलाव यह हुआ कि धरती पर इसे बहन द्वारा भाई की कलाई पर बांधा जाने लगा।
इन मंत्रों के साथ बांधें राखी
आचार्य ने कहा कि भाई को पूर्वाभिमुख यानि पूर्व दिशा की ओर बिठाएं तथा बहन का मुंह पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए। इसके बाद भाई के माथे पर टीका लगाकर दाहिने हाथ पर बहनें रक्षा सूत्र यानि राखी बांधे।
उन्होंने कहा कि शास्त्रों के अनुसार, रक्षा सूत्र बांधे जाते समय ''येन बद्धो बलिराजा, दानवेंद्रो महाबलः तेनत्वाम प्रति बद्धनामि रक्षे, माचल-माचलः'' मंत्र पढ़ें।
साथ ही रक्षा सूत्र (राखी) बांधने के बाद भाई की आरती उतारें, फिर भाई को मिठाई खिलाएं। बहन यदि बड़ी हों तो छोटे भाई को आशीर्वाद दें और यदि छोटी हों तो बड़े भाई को प्रणाम कर आशीर्वाद ग्रहण करें।
रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त
भद्रा में रक्षाबंधन और होलिका दहन नहीं हो सकता यह शास्त्राज्ञा है, इसलिए राखी बांधने का शुभ मुहूर्त 9 अगस्त यानि शनिवार को प्रातःकाल 7 बजकर 5 मिनट से दोपहर 1 बजकर 30 मिनट तक है।
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