Supaul News: अवैध बालू खनन से उपजाऊ जमीन हो रही बंजर, ग्लोबल वार्मिंग की आशंका
सुपौल के लौकहा बाजार में चौघारा-सहरसा मार्ग के पास अवैध बालू खनन से उपजाऊ भूमि बंजर हो रही है। किसान थोड़े से लाभ के लिए जमीन ठेकेदारों को दे रहे हैं जिससे दीर्घकालिक खतरा उत्पन्न हो रहा है। खनन विभाग की निगरानी पर सवाल उठ रहे हैं। ग्रामीणों ने अवैध खनन रोकने और दोषियों पर कार्रवाई की मांग की है अन्यथा भविष्य में गंभीर समस्याएँ आ सकती हैं।
संवाद सूत्र, लौकहा बाजार (सुपौल)। सदर प्रखंड अंतर्गत अमहा पंचायत के सपरदाहा गांव के समीप चौघारा-सहरसा मुख्य मार्ग से सटे क्षेत्र में अवैध रूप से बालू खनन का मामला गंभीर रूप से सामने आ रहा है।
स्थानीय लोगों के अनुसार, इस इलाके में जमीन के 10 से 15 फीट नीचे तक मशीनों से बालू का खनन किया जा रहा है, जिससे उपजाऊ जमीन भूमि धीरे-धीरे बंजर में तब्दील हो रही है।
लोगों का मानना है कि इस प्रकार के अंधाधुंध खनन न केवल कृषि योग्य भूमि को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि इससे जल स्तर पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है, जो आने वाले वर्षों में ग्लोबल वार्मिंग और सूखा जैसी समस्याओं को और बढ़ावा देगा।
किसानों की मजबूरी या लालच
स्थानीय किसानों की मानें तो कुछ लोग थोड़े से आर्थिक लाभ के लिए अपनी उपजाऊ जमीन को खनन के लिए ठेकेदारों को दे रहे हैं।
इससे तत्काल आर्थिक फायदा तो होता है, लेकिन दीर्घकालिक रूप से यह क्षेत्र की कृषि व्यवस्था और पर्यावरण के लिए खतरे की घंटी है।
एक किसान ने नाम न छापने की शर्त पर बताया ठेकेदार अच्छी कीमत देते हैं, जिससे कुछ समय के लिए राहत मिलती है, पर जमीन की उर्वरता पूरी तरह नष्ट हो जाती है।
खनन विभाग की भूमिका पर सवाल
हालांकि खनन एवं भूतत्व विभाग की ओर से यह दावा किया जा रहा है कि अमहा और लौकहा पंचायतों के बालू घाटों का विधिवत बंदोबस्त किया गया है।
अमहा घाट पर संवेदक द्वारा एक सूचना पट्ट भी लगाया गया है, जिसमें यूनिट 4 का जिक्र है और संवेदक का नाम भी अंकित है।
बावजूद इसके अवैध रूप से गहराई तक खनन किए जाने की गतिविधियां विभागीय निगरानी की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करती हैं।
जनहित में कार्रवाई की मांग
स्थानीय ग्रामीणों और पर्यावरण प्रेमियों ने खनन विभाग से मांग की है कि इस अवैध खनन पर तत्काल रोक लगाई जाए और दोषियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए।
साथ ही यह भी मांग की जा रही है कि किसानों को जागरूक किया जाए ताकि वे थोड़े लाभ के लिए अपने भविष्य और पर्यावरण से समझौता न करें।
यदि समय रहते इस पर रोक नहीं लगाई गई, तो भविष्य में इस क्षेत्र में खेती की जमीन समाप्त हो सकती है और भूमिगत जल स्तर में गिरावट जैसी गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
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