सपना नहीं हुआ साकार, डगमारा को नहीं मिल सका आकार
लगभग दो दशक से लंबित राज्य की सबसे बड़ी बिजली परियोजना डगमारा विद्युत परियोजना को बंद कर दिया गया है।

जागरण संवाददाता, सुपौल : लगभग दो दशक से लंबित राज्य की सबसे बड़ी बिजली परियोजना डगमारा विद्युत परियोजना को बंद कर दिया गया है। अब इस पर काम नहीं होगा। प्राप्त जानकारी अनुसार सुपौल में कोसी नदी पर प्रस्तावित डगमारा बिजली घर से उत्पादन लागत अधिक होने के कारण राज्य सरकार ने यह फैसला किया है। दरअसल राज्य मंत्रिमंडल से मंजूरी मिलने के बाद डगमारा पनबिजली परियोजना के निर्माण की प्रक्रिया शुरु की गई थी। डगमारा में 7.65 मेगावाट की कुल 17 यूनिटें बननी थी। 130 मेगावाट का उत्पादन होना था। परियोजना की डीपीआर केंद्रीय विद्याुत प्राधिकरण को मंजूरी के लिए भेजी गई थी। लेकिन प्राधिकरण ने डगमारा की डीपीआर को वापस कर दिया।
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कोसी क्षेत्र के लिए वरदान साबित होती परियोजना
परियोजना को नेशनल हाईडल पावर कारपोरेशन (एनएचपीसी) के हवाले किए जाने, एनएचपीसी की टीम द्वारा स्थल निरीक्षण किए जाने और स्थल को उपयुक्त तथा संतोषप्रद बताए जाने के बाद इसके लिए राशि विमुक्त कर दिए जाने से उम्मीदों को बल मिलने लगा था। उक्त परियोजना बिहार सरकार द्वारा एनएचपीसी को सुपुर्द कर दिया गया था। परियोजना के तहत 730 मीटर का बराज बनना था। परियोजना का कैचमेंट एरिया 61 हजार 972 वर्गमीटर था। विशेषज्ञों की राय में यह परियोजना कोसी क्षेत्र के लिए वरदान साबित होती। बिजली उत्पादन के क्षेत्र में जिला आत्मनिर्भर बनता। साथ ही बाढ़, सिचाई सहित कई समस्याओं का भी समाधान हो जाता।
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परियोजना पर एक नजर
126 मेगावाट उत्पादन क्षमता वाली डगमारा परियोजना को कोसी बराज से 31 किमी की दूरी पर निर्माण का प्रस्ताव किया गया। परियोजना का विस्तृत प्रतिवेदन दिसंबर 2011 में केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण को सौंपा गया। इस पर केंद्रीय जल संसाधन विभाग और केद्रीय जल आयोग की सैद्धांतिक सहमति भी मिल चुकी। कई बार विवादों में उलझे इस परियोजना का सर्वेक्षण कार्य भी पूर्व में ही पूरा किया जा चुका है। कोसी स्थित हनुमाननगर बराज के निर्माण के बाद वर्ष 1965 में केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष श्री कंवरसेन के द्वारा डगमारा में दूसरे बराज की आवश्यकता पर बल दिया गया था ताकि कोसी के कटाव की विभीषिका को निचले स्तर पर भी नियंत्रित किया जा सके। 1971 में बिहार जल संसाधन विभाग के द्वारा गठित तकनीकी समिति ने भी उक्त प्रस्ताव पर अपनी सहमति दी तथा बराज के कारण बने ऊंचे जलस्तर में जल विद्युत परियोजनाओं की संभावनाओं को भी इसके साथ जोड़ा गया। वर्ष 2007 में परियोजना निर्माण में एशियन डवलपमेंट बैंक द्वारा रुचि दिखाई जाने के बाद डगमारा परियोजना के लिए विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन बनाने का कार्य केंद्रीय जल संसाधन विभाग की एजेंसी वैपकास को दिया गया। वैपकास द्वारा बनाए गए विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन को 2010 में केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण में अनुमति के लिए जमा किया गया। प्रतिवेदन की जांच के दौरान प्रस्तावित परियोजना के फलस्वरूप नेपाल के बड़े क्षेत्र में डूबे होने के कारण केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने उक्त परियोजना पर अपनी सहमति नहीं दी तथा केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय, केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण, केंद्रीय जल आयोग भारत सरकार के द्वारा परियोजना को और निचले स्तर पर ले जाने का सुझाव दिया गया। उक्त परिपेक्ष्य में डगमारा परियोजना को और नीचे लाकर वर्तमान बराज से करीब 31 किमी की दूरी पर निर्माण का प्रस्ताव किया गया। इस संबंध में परियोजना के विस्तृत प्रतिवेदन दिसंबर 2011 में केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण को सौंपा गया तथा इस पर केंद्रीय जल संसाधन विभाग एवं केंद्रीय जल आयोग की सैद्धांतिक सहमति मिली। परियोजना की स्वीकृति के संबंध में दिनांक 25.04.2012 को केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण में परियोजना की तकनीकी स्वीकृति के लिए अंतर मंत्रालयीय समिति में विस्तृत चर्चा हुई तथा परियोजना पर आगे की कार्रवाई के लिए सहमति बनी।
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