परसागढ़ी के लाल ने बिना जोताई उगाई मक्का की फसल
बिना खेत की जोताई किए अगर कोई गेहूं के दाने बो दे तो लोग उसका मजाक ही उड़ाएंगे। ऐसा ही हुआ जदिया थाना क्षेत्र की परसागढ़ी दक्षिण पंचायत के वार्ड नं 05 निवासी लाल राय उर्फ लाल मास्टर के साथ। उन्होंने जब बिना जोताई किए खेत में मक्का की फसल लगाई तो मजाक उड़ाने वालों की कमी नहीं रही।

सुपौल। बिना खेत की जोताई किए अगर कोई गेहूं के दाने बो दे तो लोग उसका मजाक ही उड़ाएंगे। ऐसा ही हुआ जदिया थाना क्षेत्र की परसागढ़ी दक्षिण पंचायत के वार्ड नं 05 निवासी लाल राय उर्फ लाल मास्टर के साथ। उन्होंने जब बिना जोताई किए खेत में मक्का की फसल लगाई तो मजाक उड़ाने वालों की कमी नहीं रही। जब उनकी खेत में फसल लहलहाने लगी और पैदावार भी अच्छा हुआ तो इस तरह खेती करनेवालों की कतार लग गई है। आज 40 किसान इनकी विधि से न सिर्फ खेती कर रहे हैं बल्कि लोगों को इस तरह खेती करने की सलाह भी दे रहे हैं। इस विधि से खेती कर किसानों को कम खर्च में बचत अधिक हो रही है।
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धुन के पक्के हैं लाल
अपने धुन के पक्के लाल बताते हैं कि बात 2016 की है जब उन्होंने पहली बार एक दुकान से गिनती के 50 मकई के बीज खरीदकर अपने खेत के मेड़ पर लगाया। उन्होंने देखा कि बिना जोताई के रोपे गए 46 बीज से पौधे निकल आए हैं। बस यहीं से उन्होंने बिना जोताई किए खेती करने का फैसला लिया और चार बीघा जमीन में बिना जोताई किए मक्का की फसल लगाई। उन दिनों उनकी इस हरकत को देख कर आसपास के किसान मजाक उड़ाते थे। चार बीघा में 36 क्विटल मकई उपज आने के साथ ही लोगों का उनके प्रति सोच बदलने लगा। उसके बाद उन्होंने गेहूं की खेती भी इसी आधार से की। 2020 में जब उन्होंने इस पद्धति धान की खेती की तो असफल हो गए। लाल राय का कहना है कि इस बार वे फिर से इसी पद्धति से धान की खेती करेंगे और सफल भी होंगे।
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कैसे होती है बिना जोताई के बोआई
उन्होंने बताया कि यह पद्धति गहरी जमीन में अपनाई जा सकती है। धान कटने के साथ जब जमीन में काफी नमी रहती है तो बीज को छिड़ककर पैरों से उसे दबा दिया जाता है। ऐसा करने से बीज जमीन के अंदर चला जाता है इससे इसके चिड़ियों के द्वारा चुगे जाने का खतरा भी नहीं रहता है और बीजों को अंकुरण के लिए उचित माहौल भी मिलता है।
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घट जाती है खेती की लागत
लाल ने बताया कि इस पद्धति से खेती करने के कई फायदे हैं। खेत जोताई का पूरा खर्च बच जाता है। बिना जोताई वाले खेत के पटवन में समय कम लगता है इससे सिचाई के खर्च में बचत के अलावा पानी की भी बचत होती है। मजदूर आदि का खर्च भी कम हो जाता है। बताया कि एक बीघा मकई लगाने में आम तौर पर 20 हजार की लागत आती है जबकि इस पद्धति से खेती करने में एक बीघा में ज्यादा से ज्यादा 09 हजार की ही लागत आती है।
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कहते हैं स्थानीय किसान
स्थानीय किसान अनिल राय, दीपक साह आदि बताते हैं कि जब लाल राय ने पहली बार इस तरीके से खेती की तो लोग उनका मजाक उड़ाते थे। जब पैदावार हुई तो लोग इनसे जानकारी लेने लगे। आज गांव के 40 से अधिक किसान उनके बताए तरीके से खेती कर रहे हैं। आवश्यकता पड़ने पर वे किसानों को जानकारी भी उपलब्ध कराते हैं।
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कोट-
स्थल पर बीएओ और को-ऑर्डिनेटर भेजा जा रहा है। विस्तृत जानकारी आने के बाद मैं खुद निरीक्षण करूंगा।
-समीर कुमार, जिला कृषि पदाधिकारी
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